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३४ : सरस्वती-वरवपुत्र पं. बंशीधर व्याकरणाचार्य अभिनन्दन-प्रग्य
__ एक उपजातिमें, उसीमें जनमे और विवाहित सदस्य रह गये । अन्य व्यक्ति उसमें प्रवेश नहीं पा सके। एक उपजातिका आचार-विचार, खान-पान, रीति-रिवाज दूसरी उपजातिसे भिन्न रहने लगा। वैवाहिक क्रियायें अपनी-अपनी उपजातिमें ही सम्पन्न होने लगीं ।१४ जैन उपजातियोंका उद्भव
आचार्य जिनसेनके महापुराणमें आजीविकाके भेदसे चार वर्ण बताये गये हैं-१. ब्राह्मण, २. क्षत्रिय, ३. वणिक् (वैश्य) और ४. शूद्र। इनमें वणिक् वर्णका कार्य न्यायपूर्वक धनोपार्जन करना कहा गया है।" मध्यपदेशके दूबकुण्ड स्थानसे प्राप्त संवत् ११४५ के यक प्रशस्तिलेख में ऐसे वणिक्वंशका उल्लेख है, जिसके एक श्रावकको 'श्रेष्ठी' पदसे विभूषित बताया गया है। यहाँ उल्लेखनीय तथ्य यह है कि वह श्रावक जिनेन्द्रका अर्चक और सम्यग्दृष्टि था। वह चारों प्रकारके पात्रोंको दान देता था।६ अहारसे प्राप्त संवत् १२०३ (ई० ११४६) के एक मूर्ति-लेखमें वैश्य अन्वयके श्रावकोंको जिनेन्द्रकी नित्य वन्दना करते हुए बताया गया है।१७
इन उल्लेखोंके आधारसे कहा जा सकता है कि वणिक् या वैश्य एक ही वर्णके श्रावक थे। इनमें एक वर्ग ऐसा था, जिसके श्रावक जिनेन्द्रकी आराधना करते थे। व्यापार इनकी आजीविकाका साधन था। इस वर्गके आचार-विचारमें कालान्तरमें शिथिलताने जन्म लिया, जिससे अपनी विशुद्धि बनाये रखनेके लिए इस वर्गके लोग छोटे-छोटे वर्गों में विभाजित हो गये। इनमें कुछ वर्गोके नाम उनकी निवास-भूमियोंके नामपर रखे गये । जैसे चित्रकूटके जैन वैश्योंने अपने वर्गका नाम 'चित्रकुटान्वय' रखा। इसीप्रकार गुर्जर देशके श्रावकोंने अपने वर्गका नाम 'गुर्जरान्वय', अवधके निवासियोंने 'अवधपुरान्वय', वर्द्धमानपुरके वासियोंने 'वर्द्धमानपुरान्वय', खण्डेलाके निवासियोंने 'खण्डेलवालान्वय' नाम रख लिए। कालान्तरमें ये नाम जैनोंकी उपजातियाँ बन गयीं और ये अपने-अपने वर्गोंमें सीमित हो गयीं। इनके विवाह आदि व्यवहार अपने वर्गमें ही होने लगे । इस प्रकार शनैः शनैः प्रत्येक वर्गके आचार-विचार, खान-पान और रीति-रिवाज भिन्न-भिन्न हो गये। यह कबसे हआ, यह अन्वेषणीय है । पर सबका धर्म एक रहा, जिससे वे एक-दूसरेसे सम्बद्ध रहे। गोलापूर्व :
गोलापूर्वान्वय' के उत्तरपद ‘अन्वय' की विवेचना करनेके पश्चात् विवेच्य है पूर्वपद-गोलापूर्व । इसमें भी दो पद हैं-गोला और पूर्व ।
इनमें 'गोला' कोई स्थान-विशेष रहा है । गोलापूर्वान्वयी जैन मूलतः इसी स्थानके निवासी थे। यह स्थान वर्तमानमें कहाँ है, इस सम्बन्धमें विद्वानोंकी निम्न धारणाएँ हैं--
डॉ जगदीशचन्द्र जैन-आपने इसे दक्षिणमें गुष्टूर जिलेकी गल्लक नदीपर स्थित 'गोलि' स्थानसे समीकृत किया है। अपनी एक अन्य कृतिमें एक 'गोल्ल' देशका उल्लेख करते हुए आपने उसे गोदावरी नदीके आसपासका प्रदेश बतलाया है। यहाँके निवासी काले और कठोर वचनभाषी होते हैं। चैत मासमें भी यहाँ ठंड पड़ती है ।१९
पं० परमानन्द शास्त्री -आपने ‘गोला' स्थानको ‘गोल्लागढ़', वर्तमान गोलाकोटसे समीकृत किया है। उन्होंने गोल्लागढ़की स्थिति खनियाधाना स्टेट (अब मध्यप्रदेश) में निर्देशित की है ।२० .
श्री प्रभुलाल पोहरी-आपने वर्द्धमानपुराणमें कहे गये 'गोयलगढ़' को ग्वालियर किलेके अभिलेखोमें उल्लिखित 'गोइलगढ़' से समीकृत किया है और “गोलापूर्वान्वय' का उद्भव ग्वालियरसे बताया है ।२१
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