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________________ २ / व्यक्तित्व तथा कृतित्व : ३३ डॉ० अर्गलके अनुसार जाति समान वर्ग के कुटुम्बोंका समूह होती है। इसका अपना निजी नाम होता है । विवाह आदि अपने समूहमें ही होते हैं । इसका उद्भव किसी पौराणिक देवता या पुरुषसे बताया जाता है ।" आचार्य जिससेनने केवल नामकर्मसे उत्पन्न मनुष्यजातिका ही अस्तित्व स्वीकार किया है। उन्होंने आजीविका भेदसे उसके चार भेद बताये हैं । यहाँ यह भी दृष्टव्य है कि आचार्य सोमदेव सूरिने जातियोंकी अनेकताका भी उल्लेख किया है तथा उन्हें अनादि बताया है । १° तात्पर्य यह है कि 'अन्वय' का अर्थ यहाँ जाति या उपजातिपरक विवक्षित है । मूर्तिलेखों में जातिपरक अन्वयोंके उल्लेख : मध्यप्रदेश की प्राचीन प्रतिमाओं, मन्दिरों और शिलाखण्डोंसे उनतीस अन्वयोंके नामोल्लेख प्राप्त हुए हैं । उनकी संख्या निम्न प्रकार है क्र० नाम अन्वय १. गोलाराडान्वय २. चित्रकुटान्वय ३. दुम्बरान्वय ४. देउबालान्वय ५, नेवान्वय ६. परपाटान्वय ७. परवाडान्वय ८. पुरवाडान्वय ९. मइडितवालान्वय १०. मडवालान्वय ११. माधुरान्वय १२. माधुन्वय १३. माधुवान्वय १४. वेमकान्वय १५. श्रीमाल Jain Education International संख्या १ १ १ १ १ १ १ १ १ १९. लमेचुकान्वय १ २०. वैश्यान्वय १ २१. अवधपुरान्वय १ १ १ क्र० १ नाम अन्वय १६. गुर्जरान्वय १७. प्रागवाटान्वय १८. मेडवालान्वय २२. कुटकान्वय २३. पौरपाटान्वय २४. गर्गराटान्वय २५. वर्द्धमानपुरान्वय २६. खण्डेलवालान्वय २७. जैसवालान्वय २८. गृहपत्यन्वय २९. गोला पूर्वान्वय For Private & Personal Use Only संख्या २ २ २ २ २ ३ ३ ४ ५ इनमें कुछ अन्वयोंके उल्लेख अशुद्ध और पुनरुक्त भी हो सकते हैं । महाकवि आशाधरने भो तीन अन्वयोंका उल्लेख किया है। उनके नाम हैं-पोरवाल, बधेरवाल और खण्डेलवाल | इनमें पोरवालको पुरवाडान्वयसे समोकृत किया जा सकता है । उपजातियों का उद्भव प्राचीन साहित्य और अभिलेखोंमें मध्यकालसे पूर्व उपजातियोंके नाम - निर्देश न मिलनेसे प्रतीत होता है कि इस समय तक चार वर्णोंकी व्यवस्था सुचारुरूपसे चलती रही है । वर्णाश्रित सामाजिक व्यवस्था में कालान्तरमें शिथिलता आई । समाजके आचार-विचार में परिवर्तन हुआ और वह उपजातियोंके उद्भवका कारण बना । १२ २-५ 19 १२ १९ २६ www.jainelibrary.org
SR No.012047
Book TitleBansidhar Pandita Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain
PublisherBansidhar Pandit Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages656
LanguageHindi, English, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size18 MB
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