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________________ | या तो भीतों से या गीतों से आचार्य सुशील सूरीश्वरजी महाराज जगत् में अनेक जीव जन्म लेते हैं और मरते हैं, फिर भी उनका जिसकी अठारह देशों के अधिपति परमार्हत् महाराजा कुमारपाल ने नाम-निशान तक नहीं रहता। आज पर्यन्त अनेक राजा, महाराजा, कलिकालसर्वज्ञ आचार्य भगवान श्री हेमचन्द्रसूरीश्वरजी महाराज के चक्रवर्ती आदि महारथी हो चुके हैं फिर भी उनमें से कइयों का सदुपदेश से निर्माण कराया था, जो एक गगनचुम्बी जिनालय है, जिसके नाम-निशान तक नहीं है। शिखर के भीतर प्रायः इक्कीस मंजिले हैं । उक्त मन्दिर काष्ठ से निर्मित जो महापरुष अपना जन्म जगत के उद्धार के लिये धर्म को है परन्तु खूबी यह है कि चाहे जितनी भयंकर अग्नि लग जाये तो भी दीन-दुःखी एवं अशरण की रक्षार्थ, देश एवं समाज के लिए अहिंसा उस काष्ठ में से जल ही प्रवाहित होता रहता है। मलनायक के रूप सत्य और ब्रह्मचर्य आदि गुणों के परिपालनार्थ निज जीवन समर्पित ने महाप्रभावशाली श्री अजितनाथ प्रभु की भव्य प्रतिमा है। इसका कर गये, अपनी आत्मा की बलि दे गये, पुण्योदय से प्राप्त लक्ष्मी के निर्माण कराने वाले महाराजा कुमारपाल आज नहीं रहे फिर भी अपने सदपयोग का लाभ ले गये और भावी पीढी का महान उपकार करते अमर यश के रूप में तारंगाजी को छोड़ गये। गये, उन्हीं महापुरुषों के अमर नाम विश्व इतिहास के पृष्ठों पर स्पक्षिरों ऐसे तो अनेक उदाहरण हैं कि पुण्योदय से प्राप्त लक्ष्मी का में अंकित हैं। भीतों के रूप में सदुपयोग करके अपना यश सदा-सदा के लिये नाम दो प्रकार से अमर रह सकते हैं- 'एक तो भीतों से और चिरस्थायी एवं चिरस्मरणीय कर गये। स्थलाभाव के कारण ऐसे दूसरे गीतों से' और वे भी उत्तम कार्य करने से स्वर्णाक्षरों में और अमर यश के केवल तीन उदाहरण ही प्रस्तुत हैं, परन्तु ऐसे महापुरुषों निकृष्ट कार्य करने से काले अक्षरों में। के असंख्य उदाहरण उपलब्ध हैं। (१) सुयशस्वी वस्तुपाल एवं तेजपाल महामन्त्री चले गये, फिर __ अब गीतों तथा गाथाओं में किस प्रकार अमर नाम रह सकता भी उनका ज्वलन्त यश आब पर आज भी विद्यमान है। भारतवर्ष में है कि जिन्होंने जन्म लेकर ऐसे सुकृत किये हों कि उनके चले जाने जितने जैनों के मन्दिर हैं उनमें सूक्ष्म एवं आकर्षक नक्काशी के लिए पर भी महापुरुषों ने उनके नाम ग्रन्थों में गूंथ लिये हों। गीतों तथा वस्तुपाल तथा तेजपाल द्वारा निर्मित्त भव्य जिनालय सर्व प्रथम हैं। गाथाओं आदि में वे नाम स्वतः ही बोल रहे हैंतीर्थंकर भगवान के पाँचों कल्याणक उनमें इतनी उत्तम प्रकार से (१) पूज्य श्री भगवती सूत्र में श्री महावीर स्वामी भगवान से उत्कीर्ण हैं जो सचमुच अद्वितीय हैं और जिनमें गुम्बज आदि की 'भन्ते' कहकर श्री गौतम स्वामी महाराज ने ३६००० प्रश्न पूछे थे नक्काशी भी सचमुच अत्यन्त ही अद्भुत तथा अद्वितीय है। और भगवान ने 'गोयमा' कहकर उन प्रश्नों के उत्तर दे दिये थे । उस भारतीय एवं विदेशी वहाँ आकर घण्टों तक ऊँची दृष्टि से उनका प्रत्येक प्रश्न की संग्राम सोनी ने एक-एक सोनैयों से पूजा की थी। निरीक्षण और अवलोकन करके उनकी मुक्त कण्ठ से प्रशंसा करते इस प्रकार ३६००० प्रश्नों की ३६००० सोनैयों से पूजा करने वाले संग्राम सोनी तो आज नहीं रहे, परन्तु महापुरुषों द्वारा रचित ग्रंथों में उनका नाम अमर रह गया। का त्रैलोक्य दीपक मन्दिर सर्वोपरि है जो मारवाड़ के धरणाशाह एवं (केवल साढ़े बारह दोकड़ों में जीवनयापन करने वाले पुणिया रलाशाह पोरवाल ने निन्नाणवे लाख सोनैये व्यय करके नलिनी गुल्म श्रावक की एक सामायिक की तुलना में मगध-सम्राट् श्रेणिक की की आकृतिके १४४४ खम्भों एवं ८४ तहखानों से युक्त निर्माण कराया राज्य-ऋद्धि का भी क्या मूल्य था? पूणिया की सामायिक की तुलना था और मूलनायक के रूप में इस अवसर्पिणी के आद्य तीर्थंकर श्री में ढाई द्वीप की ऋद्धि का ढेर भी नगण्य है। ऐसी अनुपम शास्त्रोक्त ऋषभदेव भगवान के भव्य जिनबिंबों को स्थापित किया था। उनके विधिपूर्वक सामायिक करने वाला पूणिया श्रावक तो अब नहीं रहा ही परिवारजन आज भी प्रतिवर्ष उक्त जिनालय पर ध्वज चढ़ाते हैं। परंतु शास्त्रों में उनका अमर नाम रह गया। वे स्वयं तो चले गये परन्तु अपनी ज्वलन्त कीर्ति राणकपुरजी तीर्थ के म (३) कलिकालसर्वज्ञ श्री हेमचन्द्राचार्य के सदुपदेश से तीर्थ रूप में छोड़ गये। सार्वभौम श्री सिद्धिगिरि का विशाल संघ लेकर आने वाले अठारह (३) भारतवर्ष में सर्वाधिक ऊँचाई पर यदि कोई मन्दिर है तो देशों के अधिपति परमार्हत् महाराजा कुमारपाल सिद्धगिरि तीर्थ पर इन्द्रमाल का चढ़ावा बोलते समय लाख-लाख रुपयों की बोली बोल वह श्री तारंगाजी तीर्थ पर स्थित श्री अजितनाथ प्रभु का जिनालय है, रहे थे। बाहड़ एवं उदायन जैसे महामन्त्री उनकी टक्कर सह रहे थे। श्रीमद जयंतसेनसरि अभिनंदनाथावाचना ८६ ज्ञान कला है, कर्म की, जानत ज्ञानी सर्व । जयन्तसेन उसे समझ, व्यर्थ करो मत गर्व ॥ www.jainelibrary.org Jain Education International For Private & Personal Use Only
SR No.012046
Book TitleJayantsensuri Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Lodha
PublisherJayantsensuri Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1991
Total Pages344
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size88 MB
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