________________
विकास के बीज-मन्त्र : नम्रता और विनय
(जैनाचार्य श्रीमद्विजय जयन्तसेनसूरीश्वरजी महाराज)
जयवन्त जैन शासन
विश्व में जैन शासन जयवन्त है। यह शाश्वत सत्य है। जैन शासन की गहराई में जाकर यदि देखें तो इसमें सबसे बड़ी बात आत्मज्ञान की ही मिलेगी क्योंकि जैनधर्म आत्मधर्म है। आत्मधर्म सदा जयवन्त है। आत्मा अमर है, इसलिये आत्मज्ञान भी अमर है। और जयवन्त है। किसी ने कहा है: 'जब तक आत्मा है, तब तक ज्ञान भी है। आत्मज्ञान की बात करने वाला जैन शासन सदा से विश्व का प्रेरक और उद्धारक रहा है। भौतिक विशेषताओं के कारण ही जैन शासन सब धर्मों में प्रधान और श्रेष्ठ नहीं है, वरन् अपने आध्यात्मिक ज्ञान और विशेषताओं के कारण ही वह सब धर्मों में प्रधान और श्रेष्ठ है। जो आध्यात्मिक विमर्श जैनधर्म ने किया है, वैसा किसी अन्य धर्म ने नहीं: इसीलिए कहा गया है
सर्व मंगल मांगल्यं, सर्व कल्याण कारणम् । प्रधानं सर्व धर्माणां जैनं जयति शासनम् ॥ हमारी अपनी स्थिति
आत्मा के स्वभाव को द्रव्य-गुण- पर्याय को केवल जैन शासन ने ही विस्तारपूर्वक समझाया है। उप्पन्नेइ वा, विगमेइ वा, धुवेइ वा- इस त्रिपदी को ग्रहण कर गणधर भगवन्तों ने द्वादशांगी की रचना की है। द्रव्य की उत्पत्ति विनाश और धौव्य का विशद विवेचन करके पूर्व महर्षियों ने आपस में टकराने वाले अन्य दर्शनों में समझौता कराया है। ऐसा समन्वयवादी शासन हमें प्राप्त हुआ है, यह हमारा अहोभाग्य है। अब हमें अपनी स्थिति पर गौर करना है। इस शासन की छत्रछाया में बैठ कर हमें अपना जीवन-लक्ष्य निर्धारित करना है, अपनी वर्तमान स्थिति पर विचार करना है। जीवन के लक्ष्य को पूरा करने के लिए सम्यग्दर्शन, ज्ञान, चारित्र की आवश्यकता है। पंच परमेष्ठी तो सम्यग्दर्शन, ज्ञान, चारित्र के रत्नत्रय के मूर्तरूप है; इसलिए यदि हम पंच परमेष्ठियों की शरण में जाएँगे तो हमें रत्नत्रय की प्राप्ति के साथ-साथ मंजिल भी प्राप्त हो जाएगी। हमारी स्थिति सुधर जाएगी। भक्तिभावमय आराधना
हम रोज नवकार मन्त्र जाप करते हैं, फिर हम उनके दर्शन से कोरे क्यों रह गये? हमें अब तक सम्यग्दर्शन, ज्ञान और चारित्र की उपलब्धि क्यों नहीं हुई? हम अब तक अंधेरे में क्यों भटक रहे है? कारण स्पष्ट है, हम केवल राम-राम बोल रहे हैं, परमेष्ठियों के साथ तन्मय नहीं हुए हैं। यदि हमें अपने जीवन में प्रकाश लाना है, तो परमेष्ठि भगवन्तों को भक्ति भावपूर्वक भजना होगा। केवल तोता - रटन्त से काम नहीं चलेगा। कथनी और करनी में एकरूपता लानी होगी। परमेष्ठियों को पाने के लिए हमें गहराई में जाना होगा। हम अब तक
श्रीमद् जयंतसेनसूरि अभिनंदन ग्रंथ वाचना
Jain Education International
T
भीतर न पहुँच सके इसीलिए शब्द- केवल शब्द बनकर ही रह गये।
अब हमें अपनी यात्रा की दिशा बदलनी होगी।
THE TE
नवकार मन्त्र
हम जिसकी आराधना कर रहे है, वह नवकार मन्त्र है। उसमें पंच परमेष्ठि भगवन्तों को नमस्कार किया गया है, अतः इसे नमस्कार मन्त्र भी कहते हैं। शास्त्रीय भाषा में इसे पंच मंगल महाश्रुतस्कंध भी कहते हैं। सरल भाषा में इसे नवकार मन्त्र कहते हैं। यह चौदह पूर्वो का समस्त जैनशास्त्रों का सार है।
आचार्य श्री जयंतसेनसूरिजी
नवकार मन्त्र में रही हुई परमेष्ठियों के प्रति नमनपूर्वक संपूर्ण समर्पण की भावना को यदि हम ध्यान में लें, तो हमें यह प्रतीत होगा कि 'नवकार' के समान मंगलकारक अन्य कोई है ही नहीं यह सब प्रकार के पाप कर्मों का नाश करने वाला, सब अमंगलों को दूर करने वाला प्रथम मंगल है।
एसो पंच नमुक्कारो, सव्व पावप्पणासणो । मंगलाणं च सव्वेसिं, पडर्म हवड़ मंगलं ॥
जब ऐसा है, तब फिर आज तक हम इसे क्यों नहीं पा सके? नवकार अब तक हम से दूर क्यों रहा? कारण स्पष्ट है, हम नवकार के इर्द-गिर्द ही चक्कर लगाते रहे। नवकार के भीतर कभी हमने प्रवेश ही नहीं किया। जो कुछ है सो नवकार के भीतर है, बाहर कुछ भी नहीं है और हम है, जो केवल बाहर ही ढूँढ़ते हैं, भीतर प्रवेश ही नहीं करते। फिर हम पायें कैसे? नवकार को पाने के लिए हमें भीतर तक जाना होगा। जितनी गहराई तक हम जाएँगे, उपलब्धि उतनी ही हमारे नजदीक होगी।
For Private & Personal Use Only
मन्त्र- शिरोमणि
नवकार मन्त्र मन्त्र- शिरोमणि है मन्त्राधिराज है। मन्त्र जीवन में आने वाले संकट दूर करता है; पर यह मन्त्राधिराज तो संकट के मूल कारण पाप को ही समूल नष्ट कर देता है। यह सव्वपावप्पणासणो है। यह नवपदात्मक या अड़सठ अक्षरात्मक होते हुए भी - छोटा-सा होते हुए भी, महान् है। जीवन के समस्त अभाव दूर करने वाला है। आत्मतत्त्व और परमात्मत्व का ज्ञान कराने वाला है। संसार में ऐसा कुछ भी नहीं है, जो इसकी शक्ति से परे हो ऐसा कोई रोग नहीं है, जो इससे दूर न हो नवकार मन्त्र आधि-व्याधि और उपाधिजन्य समस्त संतापों का नाश करता है। यह भवरोग-विनाशक है।
अविरति अरु मिथ्यात्व है, कषाय योग प्रमाद । जयन्तसेन तजे बिना, जीवन हो बरबाद Binelibrary.org