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________________ लोगों को आकर्षित करने के लिए बाह्य आडंबर अत्यावश्यक सुलसा ने प्रत्युत्तर दिया बाल जीवों के लिए आपने कहा वह बाह्य आडम्बर जरूरी है, वे नवीनता से ललचाकर उस तरफ आकर्षित होते हैं, लेकिन आंतरिक इच्छा ही यथार्थ लाभ को प्राप्त करवाती है। है । जैसे आत्मज्ञान की तृष्णावाला मनुष्य किसी भी स्थान से महात्मा को प्राप्तकर आत्मज्ञान प्राप्त कर लेता है। कभी आपने सुना है कि तालाब कभी घर-घर जाकर कहता है कि मेरे पास पानी है, आओ ले लो, नहीं तालाब कभी नहीं पुकारता । पानी चाहने वाला स्वयं तालाब को खोजेगा और पानी ले जायेगा । प्यासा सदैव पानी के पास जाता है, पानी कभी चलकर आया नहीं । अन्तरात्मा की अत्यंत प्रेरणा बिना जीव आगे नहीं बढ़ता। हे अंबड ! परमात्मा महावीर देव का उपदेश आत्मा के शुद्ध स्वरूप को बताने वाला है। अंबड सुलसा की धर्म दृढ़ता स्थिरता सुनकर अत्यंत खुश हुआ और धर्म में दृढ़ बना । (पृष्ठ ६४ का शेष) से सत्य और दूसरे अंशों को असत्य कहना अनुचित है। इस प्रकार एकांतवादी दर्शनों की भूल बताकर पदार्थ के सत्य स्वरूप को दर्शनों का कार्य स्याद्वाद करता है। स्याद्वाद का अमर सिद्धांत दार्शनिक जगत में बहुत ऊँचा माना गया है। पाश्चात्य विद्वान डॉ. थामस आदिका भी कथन है कि स्याद्वाद सत्य ज्ञान की कुंजी है । म. गांधीजी कहते हैं- अनेकांतवाद मुझे अत्यंत प्रिय है। उसमें से मैंने मुस्लिम, ईसाई और अन्य धर्मियों के प्रति विचार करना सीखा। पहले मेरे विचारों को किसी के द्वारा गलत माने जाने पर मुझे क्रोध आता था। किंतु अब मैं उनका दृष्टि बिंदु उनकी आंखों से देख सकता हूँ अनेकांतवाद का मूल अहिसा और सत्य का युगल है। स्याद्वाद की उपयोगिता वैज्ञानिक क्षेत्र भी इस सिद्धांत से प्रभावित है। लोहा भारी होने से जल में डूब जाता है, ऐसी एकांत रूढ़ मान्यता है। पर अनेकांत ज्ञान से उसे अन्य दृष्टि से देखने का सुझाव दिया। प्रयास फलित हुआ, परिणामतः लोहे के भार भरकम जलयान समुद्र में चलने लगे। इसीलिए कबीर जी कहते हैं एक वस्तु के नाम बहु, लीजे नाम पिछान । नाम पच्छ न कीजिए, सार तत्त्व ले जान ॥ सब काहूं का कीजिए, सांचा शब्द निहार। पच्छपात न कीजिए, कहे कबीर विचार ॥ श्रीमद जयंतसेनरि अभिनंदन ग्रंथ वाचना Jain Education International ७० अंबड ने सुलसा की परीक्षा लेने के लिए तीनों रूप ब्रह्मा विष्णु महेश और चौथा तीर्थंकर का रूप धारण किया लेकिन स्वयं अंबड की ही परीक्षा हो गयी। आये तो लूटने लेकिन स्वयं ही लुटकर चले गये । और अंबड ने अपना सब मायावी प्रपंच का रहस्य सुनाया से बारबार क्षमा याचना माँगी। सुलसा अंबड ने कहा- वास्तव में सत्संग की महिमा अथाह है। स्वयं आत्म धर्म में दृढ़ होना और दूसरों को भी दृढ़ बनाना, सम्यक्त्व का आभूषण है। सती सुलसा श्राविका ने अपने जीवन में अनेक जीवों को सत्यमार्ग पर लाने का भारी प्रयत्न किया- ऐसी श्राविका होना दुर्लभ है । अरे भव्यात्माओ ! आप भी सुलसा की तरह सम्यक्त्व में दृढ़ बनकर जीवन को सार्थक बनाइये। Ty few pl SUSUR FIREP FILE स्याद्वाद वह सम्राट है जो सामने आते ही कलह, ईर्ष्या, सांप्रदायिकता, संकीर्णता आदि शत्रु भाग जाते हैं। स्याद्वाद विश्व को यही शिक्षा देता है कि जगत के सभी धर्म और दर्शन किसी न किसी अपेक्षा सत्य के अंश हैं किंतु जब वे एक दूसरे से न मिलकर एक दूसरे का तिरस्कार करते हैं तब विकृत हो जाते हैं। उस स्थिति में धर्म या दर्शन अपने अनुयायियों के लिए पाषाण की नौका साबित हो जाते हैं। खुद डूबे व औरों को डुबाने का कार्य करते हैं। लेकिन जो मत-पंथ-दर्शन दूसरे के सत्य के अंशों को पचाने की क्षमता रखता है वह उदार और संगठित बनकर प्रगति करता चला जाता है। यह सिद्धांत ऐसा है जिसमें विभिन्न दर्शनों में स्थित सत्य को समझने की समन्वय की अद्भुत शक्ति रखता है। विश्व में मानव जाति को अपूर्व दिव्य ज्योति प्रदान करके सर्वधर्म समन्वय की सुंदर कला सिखाता है। जब कभी विश्व में शांति का सर्वतोभद्र सर्वोदय राज्य स्थापित होगा वह स्याद्वाद द्वारा ही। यह बात मेरु समान अटल है अचल है क्योंकि मनुष्य के विचारों में व्यापकता, सत्यता और निर्मलता लाने का एकमात्र शुद्धिकरण यंत्र है- स्याद्वाद ! विविधता में एकता / एकता में विविधता का दर्शन कराकर स्याद्वाद ने अपना स्थान सर्वोच्च बनाया है। सिद्धसेन दिवाकरजी की ज्ञान वाटिका से सुरभित पुष्प भी इसी की सौरभ को फैलाने में सहायक बने है उन्हीं के ज्ञान-गर्भित शब्दों में 1 जेण विणा लोगस्स वि ववहारो न निव्वडड़ तस्स भुवणेवक गुरुणो, णमो अणेमंत वायस्स । For Private & Personal Use Only जीव मात्र से प्रेम हो, नहीं किसी से द्वेष । जयन्तसेन धर्म सरल, देता यह सन्देश ॥ www.jainelibrary.org
SR No.012046
Book TitleJayantsensuri Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Lodha
PublisherJayantsensuri Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1991
Total Pages344
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size88 MB
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