SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 36
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ घाहिल की चार संधियों की रचना 'पउमसिरी चरिउ' में पंचाणुव्रत कथाओं में सहजरूप में प्राप्त हो जाती है। हिन्दी जैन साहित्य में का माहात्म्य बताया गया है। संस्कृत और प्राकृत की कथाओं का अनेक लेखकों और कवियों ने अपभ्रंश जैन कथा साहित्य में श्रीचन्द का महनीयस्थान है। अनुवाद किया है। एकाध लेखक ने पौराणिक कथाओं का आधार उनका तिरपन संधियों का उपदेश प्रधान कथा संग्रह 'कथाकोश' लेकर अपनी स्वतंत्र कल्पना के मिश्रण द्वारा अद्भुत कथा साहित्य अपभ्रंश कथा साहित्य में मील का पत्थर सिद्ध होता है। बारहवीं का सृजन किया है। इन हिन्दी कथाओं की शैली बड़ी ही प्रांजल, शती के उत्तरार्ध और तेरहवीं के प्रारम्भ के रचयिता श्रीधर की तीन सुबोध और मुहावरेदार है। ललित लोकोक्तियाँ, दिव्य दृष्टान्त और रचनाएँ-सुकुमाल चरिउ, पासणाह चरिउ, और भविसयत्तचरिउ भाषा, सरस मुहावरों का प्रयोग किसी भी पाठक को अपनी ओर आकृष्ट शैली और कथा की दृष्टि से परम्परा का अनुमोदन करती हैं। देवसेनगणि करने के लिए पर्याप्त है.” की अट्ठाइस संधियों की 'सुलोचनाचरिउ' कृति, सिंह की पन्द्रह सन्धियों वा अध्यात्मयोगी उपाध्याय श्री पुष्करमुनिजी द्वारा प्रणीत १११ भागों की 'पज्जुण्णचरिउ' कृति, हरिभद्र की 'णेमिणाहचरिउ', जिसमें संगृहीत में संकलित कहानियाँ अनेक दृष्टिकोण से महनीय हैं। एक सौ ग्यारह 'सनत्कुमारचरित' दृष्टि पथ पर आता हैं जो कथानक की दृष्टि से पूर्ण भागों में विभक्त उपाध्यायश्री की ये जैन कथाएँ कथा साहित्य की स्वतंत्र रचना प्रतीत होती है तथा धनपाल द्वितीय की 'बाहुबलिचरिउ' महत्ता में चार चाँद लगाती हैं। व्यावहारिक जगत में वस्तु के सहीरूप आदि रचनाएँ उल्लेखनीय हैं। इसके अतिरिक्त पन्द्रहवीं शती के उत्तरार्ध को जानना, उस पर विश्वास करना और फिर उस पर दृढ़ता पूर्वक तथा सोलहवीं शती के पूर्वार्ध के रचनाकार रइधू की कथात्मक रचनाएँ आचरण करना-जीवन निर्माण, सुधार और उन्नत बनाने का राजमार्ग - पासणाहचरिउ, सुकोसलचरिउ, धण्णकुमारचरिउ, सम्मितनाहचरिउ प्रशस्त करती है। यदि ठाणं की शैली में कहूँ तो - दर्शन एक है। - महत्त्वपूर्ण हैं। नरसेन की 'सिखिलचरिठ', हरिदेव की - सम्यग्दर्शन - १, ज्ञान एक है - सम्यग्ज्ञान - १, और चारित्र एक मयणपराजयचरिउ; यशकीर्ति की चंदप्पहचरिउ, माणिक्यराज की है - सम्यक् चारित्र - १। इस प्रकार तीनों मिलकर बने १११ और 'णायकुमार चरिउ और अमरसेनचरिउ' कृतियाँ परम्परा से चली आ सम्यग्दर्शन ज्ञान-चरित्र की त्रिपुटी सीधा मुक्ति का सर्वकर्मक्षय का रही कथाओं पर आधृत हैं सिवाय 'मयणपराजयचरिठ' के ये प्रतीकात्मक मार्ग है, धार्मिक जगत में। इस दृष्टि से जैन कथाओं के समस्त भागों और रूपकात्मक कथाकाव्य हैं। में संकलित कथाएँ धार्मिक तो हैं ही, साथ ही जीवन निर्माण में भी अपभ्रंश का कथा साहित्य प्राकृत की ही भांति प्रचुर तथा समृद्ध भरपूर सहायक हैं। है।"" अनेक छोटी-छोटी कथाएँ व्रत सम्बन्धी आख्यानों को लेकर उपसंहार या धार्मिक प्रभाव बताने के लिए लोकाख्यानों को लेकर रची गई हैं। विश्व के वाङ्मय में कथा साहित्य अपनी सरसता और सरलता अकेली रविव्रत कथा के सम्बन्ध में अलग-अलग विद्वानों की लगभग के कारण प्रभावक और लोकप्रिय रहा है। भारतीय साहित्य में भी एक दर्जन रचनाएँ मिलती हैं। केवल भट्टारक गुणभद्र रचित सत्रह कथाओं का विशालतम साहित्य एक विशिष्ट निधि है। भारतीय कथा कथाएँ उपलब्ध हैं। इसी प्रकार पंडित साधारण की आठ कथाएँ तथा साहित्य में जैन एवं बौद्ध कथा साहित्य अपना विशिष्ट महत्त्व रखते मुनि बालचन्द्र की तीन एवं मुनि विनयचन्द्र की तीन कथाएँ मिलती हैं। श्रमण परम्परा ने भारतीय कथा साहित्य की न केवल श्रीवृद्धि की हैं। अपभ्रंश की इन जैन कथाओं के अनुशीलन से मध्यकालीन है अपित उसको एक नई दिशा दी है। जैन कथा साहित्य का तो भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति का परिज्ञान होता है। मूललक्ष्य ही रहा है कि 'कथा के माध्यम से त्याग, सदाचार, नैतिकता हिन्दी जैन कथाओं के दो रूप हमें प्राप्त होते हैं। प्रथम रूप आदि की कोई सत्प्रेरणा देना।' आगमों से लेकर पुराण, चरित्र, काव्य, है विभिन्न भाषाओं से अनूदित कथाएँ और दूसरा रूप है मौलिकता, रास एवं लोककथाओं के रूप में जैन धर्म की हजारों-हजार कथाएँ जो पौराणिक कथाओं के माध्यम से अभिव्यञ्जित हुआ है। आज विख्यात हैं। अधिकतर कथा साहित्य प्राकृत, संस्कृत, अपभ्रंश, बहुत से सुविज्ञों ने जैन पुराणों की कथाओं को अभिनव शैली में गुजराती एवं राजस्थानी भाषा में होने के कारण और वह भी गद्य-बद्ध प्रस्तुत किया है और इस दिशा में सतत निमग्न हैं। डॉ. नेमिचन्द्र होने से बहुसंख्यक पाठक उससे लाभ नहीं उठा सकता। जैनकथा जैन के कथनानुसार “जैन आख्यानों में मानव जीवन के प्रत्येक साहित्य की इस अमूल्य निधि को आज की लोक भाषा - राष्ट्रभाषा रूप का सरस और विशद् विवेचन है तथा सम्पूर्ण जीवन चित्र विविध हिन्दी के परिवेश में प्रस्तुत करना अत्यन्त आवश्यक है। इस दिशा परिस्थिति-रंगों से अनुरंजित होकर अंकित है। कहीं इन कथाओं में में एक नहीं कई सुन्दर प्रयास भी प्रारम्भ हुए हैं पर अपार अथाह ऐहिक समस्याओं का समाधान किया गया है तो कहीं पारलौकिक कथा-सागर का आलोड़न किसी एक व्यक्ति द्वारा सम्भव नहीं है। जैसे समस्याओं का। अर्थ नीति, राजनीति, सामाजिक और धार्मिक जगन्नाथ के रथ को हजारों हाथ मिलकर खींचते हैं, उसी प्रकार प्राचीन परिस्थितियों कला कौशल के चित्र, उत्तुंगिनी अगाध नद-नदी आदि कथा-साहित्य के पुनरुद्धार के लिए अनेक मनस्वी चिन्तकों के भूवृत्तों का लेखा, अतीत के जल-स्थल मार्गों के संकेत भी जैन दीर्घकालीन प्रयत्नों की अपेक्षा है। लेकिन इसी आवश्यकता की पूर्ति कथाओं में पूर्णतया विद्यमान हैं। ये कथाएँ जीवन को गतिशील, हेतु पूज्य गुरुदेव श्री पुष्करमुनि जी महाराज ने वर्षोंतक इस दिशा में हृदय को उदार और विशुद्ध एवं बुद्धि को कल्याण के लिए उत्प्रेरित महनीय प्रयास किया है। करती हैं। मानव को मनोरंजन के साथ जीवनोत्थान की प्रेरणा इन। श्रीमद जयंतसेनसूरि अभिनंदन पंच/वाचना Jain Education intomational क्रोध भयंकर आग है, समझो जयन्तसेन । हिंसा ताण्डव यह करे, तन मन सब बेचैन । For Private & Personal Use Only Iww.jainelibrary.org
SR No.012046
Book TitleJayantsensuri Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Lodha
PublisherJayantsensuri Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1991
Total Pages344
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size88 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy