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________________ 'अन्तकद्दशा', प्रश्नव्याकरण, “निरयावतिका" और उत्तराध्ययन, और पद्यकाव्य विषयक सूचना भी आधुनिक इतिहास ग्रंथों में के अतिरिक्त आगमेतर कृतियों का विवरण इस प्रकार है :- मिलने लगी है । आयुर्वेद, कोष, व्याकरण, अलंकार शास्त्रदर्शन पर संघदासगणि-धर्मदासगणिकृत 'वसुदेवहिण्डी' (प्राकृत, पाँचवीं भी जैन साहित्यकारों के योगदान अविस्मरणीय हैं। भी शताब्दी) आचार्य जिनसेनकृत "हरिवंशपुराण (संस्कृत, आठवीं रा अपभ्रंश साहित्य में महाकाव्य, खंडकाव्य, मुक्तक, गद्य एवं शताब्दी) स्वयंभूकृत 'रिट्ठणेमिचरिउ' (अपभ्रंश, आठवीं शताब्दी) कथा साहित्य के लिए डॉ. हरिवंश कोछड का 'अपभ्रंश-साहित्य' गुणभद्रकृत 'उत्तरपुराण' (महापुराण) (संस्कृत, नवीं शताब्दी) द्रष्टव्य है । 'भारतीय ज्ञानपीठ' द्वारा प्रकाशित "भारतीय ज्योतिष" पुष्पदंतकृत 'तिसट्ठी महापुरीसगुणालंकार' (अपभ्रंश, दसवीं शताब्दी) में जैन लेखकों का योगदान स्पष्ट है । मानसागर द्वारा रचित महासेन आचार्यकृत 'प्रद्युम्नचरित' (संस्कृत, दसवीं शताब्दी) “मानसागरी" ज्योतिष का अपूर्वग्रंथ हैं, जिसे सभी ज्योतिषाचार्य आचार्यसोमकीर्ति विरचित 'प्रद्युम्नचरित' (संस्कृत दसवीं शताब्दी) सम्मान देते हैं। ' .. हेमचंद्राचार्यकृत" त्रिपष्टिशलाका पुरुष चरित (संस्कृत, ग्यारहवीं आधुनिक युग में व्याकरण, दर्शन, कोष ज्योतिष आदि शताब्दी) धवलकृत 'हरिवंशपुराण' (अपभ्रंश, ११ वीं शताब्दी) विषयों पर यद्यपि बहुत ही कम लिखा जा रहा है तथापि काव्य के दामादरकृत णामिणाहचारउ' (अपभ्रश १३वा शताब्दा) दवद्रसूारकृत क्षेत्र में लेखनी अविराम गति से चल रही है । प्रसन्नता की बात है 'कण्हचरिय (प्राकृत १३वीं शताब्दी) यशः कीर्तिविरचित - कि हिंदी और अंग्रेजी भाषा में विपुल साहित्य का प्रकाशन होने 'हारवशपुराण' एव पाडवपुराण (अपभ्रश पद्रहवा शताब्दा) लगा है । अनेक शोध पत्रिका इस क्षेत्र में साहित्य की सेवा कर लखमदेवकृत 'नेमिनाहचरिउ (अपभ्रंश १५वीं शताब्दी उत्तरार्ध (लिपिकाल) श्रुतकीर्ति विरचित 'हरिवंशपुराण' (अपभ्रंश लिपिकाल १५वीं शताब्दी उत्तराध) कविसिंहकृत 'पज्जुण्णचरिउ' प्रतिलिपिकाल १९८८ में भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा प्रकाशित आचार्य विद्यासागर १५वीं शताब्दी, अंतिमदशक) रइधूकृत 'नेमिणाहचरिउ' (अपभ्रंश, का 'मूकमाटी' हिंदी महाकाव्य अपने प्रकार का एक अनूठा सोलहवीं शताब्दी) शुभचंद्रकृत 'पांडवपुराण' (संस्कृत), ब्रह्मजिनदास महाकाव्य है। और ब्रह्मनेमिदत्तकृत 'हरिवंशपुराण' रलचंद्रगणिकृत 'प्रद्युम्नचरित' म प्रस्तुत लेख में सूचनामात्र ही प्रस्तुत की गयी है । जैन देवप्रभसूरिकृत' पांडवपुराण (सभी १६वीं से १९वीं शताब्दी के आगमसाहित्य और आगमेतर साहित्य का सांगोपांग विवेचन और मध्य प्रसिद्ध हैं।) विवरण लेख की सीमा में समा पाना असंभव है । अभी हरिवंशपुराण और सूरसागर के तुलनात्मक अध्ययन के आवश्यकता है शोध और अन्वेषण की । शास्त्रभंडारों में शताब्दियों अवसर पर शास्त्रभंडारों में जाने का अवसर मुझे मिला है । से रखे चले आ रहे ग्रंथों की पूरी अनुक्रमणिकाओं को विस्तार देने राजस्थान के शास्त्र भंडारों में अनेक ग्रंथों की नामावली से कुछ की आवश्यकता है | साहित्य के क्षेत्र में संकोच या संकीर्णता हिंदी के नाम भी द्रष्टव्य हैं । (ये सभी रचनाएँ तेरहवीं शताब्दी से त्याज्य होती है । तभी तो साहित्य अपने वास्तविक अर्थ में सभी बीसवीं शताब्दी के मध्य लिखी/लिपिबद्ध की गयी हैं ।) : का हित कर पायेगा । जैन साहित्य रलाकर है, इसमें गोता लगाने वाले की क्षमता पर फल और रत्न की प्राप्ति निर्भर है। सुमतिगणिकृत 'नेमिनाथरास' कवि देल्हण (देवेंद्रसूरि) कृत 'गयसुकुमाल रास' कवि सच्चारूकृत 'प्रद्युम्नचरित' सोमसुन्दरसूरिकृत अंत में यह निःसंकोच कहा जा सकता है कि रस अलंकार 'रंगसागरनेमिफागु' धनदेवगणिकृत "सुरंगाभिधनेमिफागु" छंद, काव्यभेद, दर्शन, धर्मशास्त्र, संगीत, कोष, कथा, पद्य, गद्य, ब्रह्मजिनदासकृत हरिवंशपुराण जयशेखरसूरिकृत 'नेमिनाथकागु' चंपू अनेकार्थ काव्य, पुराण, महाकाव्य, खंडकाव्य, हिंदी, संस्कृत, कविशोधीकृत 'बलिभद्रचौपाई' मुनिपुण्यरतनकृत "नेमिनाथरास" प्राकृत, अपभ्रंश, कन्नड आदि भाषाओं के रूप में जैन साहित्य ने ब्रह्मरायमल्लकृत 'बलभद्रबेलि' शालिवाहन कृत 'हरिवंशपुराण' भारतीय वाङ्मय के अंगप्रसंग को शक्ति दी है, उसे पुष्ट किया नरेंद्रकीर्तिकृत 'नेमिश्वर चन्द्रायण' कनककीर्तिकृत 'नेमिनाथ रास' है । कहीं कहीं तो जैन दर्शन का 'अहिंसावाद' भारत ही नहीं देवेंद्रकीर्तिकृत 'पद्युम्नबन्ध' मुनिकेसर सागरकृत 'नेमिनाथरास' विश्व साहित्य में अपना विशिष्ट स्थान रखता प्रतीत होता है।" बुलाकीदास कृत 'पांडवपुराण' नेमिचंद्रकृत 'नेमीश्वररास' वैदिकी हिंसा हिंसा न भवति" जैसे वाक्यों के सामने जैन अहिंसा अजयराजपारसीकृत 'नेमिनाथ चरित्र' खुशालचन्दकालाकृत की विजय वैजयन्ती आज भी अलग 'हरिवंशपुराण' तथा उत्तरपुराण जयमलकृत 'नेमिनाथ चरित्र' ही फहरती हुई दिखाई पड़ती है । रतनभानुकृत 'नेमिनाथरास' विजयदेवसूरिकृत नेमनाथरास मनरंगलाल समग्रतः जैन साहित्य के बिना पल्लीवालकृत 'नेमचन्द्रिका' मन्नालालकृत 'प्रद्युम्नचरित' मुनिचौथमलकृत भारतीय साहित्य की पूर्णता की 'भगवाननेमिनाथ और पुरुषोत्तम कृष्ण (प्रकाशित) । उपलब्ध कल्पना गगन - कुसुमावचय के पुराण साहित्य की सूची पं. परमानंद शास्त्रीने अपने इतिहास में दी समान है। है । इसके अतिरिक्त महाकाव्यों का परिचय "संस्कृत साहित्य का इतिहास" में डॉ. वाचस्पति गैरोला ने प्रस्तुत किया । गद्यकाव्य श्रीमद् जयन्तसेनसूरि अभिनन्दन ग्रंथ / विश्लेषण (१११) खाते-खाते दिन गया, सोते-सोते रात । जयन्तसेन मनन करो, क्या रहना निज हाथ ।। www.jainelibrary.org Jain Education International For Private & Personal Use Only
SR No.012046
Book TitleJayantsensuri Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Lodha
PublisherJayantsensuri Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1991
Total Pages344
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size88 MB
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