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"भगवान महावीर की जन-जीवन को देन" ।
(डॉ. शोभनाथ पाठक)
अतीत के आलोक में भगवान महावीर के पांचव्रतों (सत्य, अहिंसा निउणा दिट्ठा - सव्वभूएसु संजमो । अहिंसा, अस्तेय, अपरिग्रह और ब्रह्मचय) के सम्बल ने उस युग को
जावन्ति लोए पाणा - तस्य अदुव थावरा, इतना संवारा कि हिंसा को अहिंसा का दिशा निर्देश मिला, पाप को पुण्य के परखने की क्षमता मिली, और असत्य को सत्य के समझने
लजाणमजाणं वा, न हणे नो वि घावए ।। (दश वै. सूत्र) की सीख मिली । अनेक आततायी, तथा असामाजिक तत्व, प्रत्येक प्राणी को सबसे अधिक प्रिय उसका प्राण होता है उसे दुष्कर्मों को त्याग कर सत्कर्मों की ओर उन्मुख हुए । भगवान गंवाना वह किसी कीमत पर पसंद नहीं करता फिर ऐसे अनमोल महावीर के आदर्श और उपदेश सामाजिक कल्याण के लिए उस प्राणों को किसी को लूटने का क्या अधिकार है ? तात्पर्य यह है युग में जितने उपयोगी थे उससे कहीं अधिक आज उनकी कि प्रत्येक प्राणी की रक्षा करना, मनुष्य का सबसे बड़ा कर्तव्य है आवश्यकता है।
फिर भी वह उससे विमुख हो जाता है, आखिर क्यों ? इस प्रकार तथ्यतः आज के वैज्ञानिक-विकास तथा भौतिकता के भटकाव
विश्वकल्याण के लिए भगवान महावीर का दिया हुआ "अहिंसा" में उलझी मानसिकता भले ही कृत्रिम साधनों की उपलब्धि से
महामंत्र अत्यधिक उपयोगी है । इसके प्रचार-प्रसार की आज क्षणिक संतोष की अनुभूति करे किंतु रासायनिक अस्त्र, शस्त्रों की
नितान्त आवश्यकता है। दौड़ तथा स्वार्थ और वैभव विलास की बढ़ती भावना मनुष्य को दूर संचार के साधनों से जहाँ आज हमें अनेक सुविधाएँ कहाँ ले जायेगी यह सब सोचकर रोमांच हो जाता है । आज-कल प्राप्त है वहीं अनेक असुविधाएँ भी हैं । आपसी आरोप प्रत्यारोपों जो हिंसा की नई लहर चारों ओर फैल रही है कि निर्दोष लोगों को से सामाजिक विषमता बढ़ती है कि आज एक देश दूसरे देश, और सरेआम मार दिया जाता है, यह निर्ममता की प्रवृत्ति अत्यधिक एक व्यक्ति दूसरे व्यक्तिपर झूठे आरोप लगाकर किसी के जीवन निन्दनीय है । अतः आज भगवान महावीर के आदर्श और उपदेश ___ में विष घोलता है । वास्तव में इस प्रवृत्ति को बदलने के लिए समस्त संसार के लिए वरदान स्वरूप हैं । अब केवल भारतीय भगवान महावीर के "सत्य" सिद्धान्त का सहारा लेना समाज के समाज के लिए ही नहीं, वरन विश्व के समस्त जीवों के लिए लिए अत्यधिक उपयोगी है | महावीर ने कहा है कि - भगवान महावीर के उपदेशों का प्रसार अति आवश्यक हो गया
मुसावाओ यह लोगम्मि, सव्वसाहूहि गरिहिओ।।
अविस्सासौ य मूयाणं, तम्हा मोसं विवज्जए ।। (दश. सू.) आज के हिंसा पूर्ण माहोल में जहाँ किसी का जीवन सुरक्षित नहीं है भगवान महावीर का यह उद्बोधन कितना उपयोगी सिद्ध
संसार के सभी महापुरुषों ने असत्यवादन की घोर निंदा की हो सकता है जिसे आंकना आसान नहीं है, यथा :
है, और बड़े से बड़ा विनाश भी असत्य से हुआ है - फिर भी
मनुष्य असत्य बोलता है । स्वयं को व समाज को दूषित करता सव्वे पाणा पियाउया,
है । कितना आश्चर्य है ? इसलिए महावीर ने हमेशा सत्य ही सुहसाया दुक्खपडिकूला अप्पियवहा ।
बोलने की सीख समाज को दी । उन्होंने यहाँ तक कह दिया कि - पियजीविणो जीविउकामा
"तं सच्चं भयवं" सत्य ही भगवान है । सव्वेसिं जोवियं पियं । (आचा. - सूत्र)
तात्पर्य यह है कि सत्य बोलना, ईश्वर की प्राप्ति है हमारे राष्ट्र का अर्थात् सभी प्राणियों को अपने अपने प्राण प्रिय हैं । सब
प्रतीक भी है "सत्यमेव जयते" अतः सत्य का सहारा ही समाज के सुख चाहते हैं, दुःख सहन करना कोई भी नहीं चाहता । सुखी
लिए श्रेयस्कर है। जीवन जीने की सबकी अभिलाषा होती है, फिर किसी अन्य की 'अस्तेय' का भी महावीर के उपदेशों में प्रमुख स्थान है । हत्या करने या कष्ट पहुँचाने की ओर मनुष्य क्यों प्रवृत्त होता है ? सामाजिक विषमता में एक दूसरे क्या उसे किसी अन्य के पीड़ित करने में संकोच नहीं होता - दया की संपत्ति या साधनों का अपहरण, नहीं आती ? आखिर पाषाण हदय न पसीजने का कारण क्या चुराना, या दीनता, विकास की है ? यह समाज के लिए एक चुनौती है।
प्रक्रिया में बाधक है इसलिए भगवान भगवान महावीर ने अहिंसा को सर्वोच्च प्राथमिकता देकर
महावीर ने कहा है किसभी प्राणियों के प्राण बचाने का आव्हान करते हुए लोगों को चित्तमंतयचित्तं का अप्पं वा उपदेश दिये कि -
जइ वा वह त्थिमं पढमं ठाम, महावीरेण देसियं ।
दंतसोहणमित्तं वि, उग्गहंसि अजाइया ।
श्रीमद् जयन्तसेनसूरि अभिनन्दन ग्रंथ / विश्लेषण
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विचित्र गति है काल की , जान सका नहीं कोय । जयन्तसेन निडर रहो, होनहार सो होय ।।
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