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________________ रल धारक अर्थात्, ज्ञान, दर्शन, चारित्र रूप रत्नत्रय को जैन साहित्य के अनुसार जब भगवान ऋषभ देव साधु बने धारण करने वाले, विश्व वेदस्, विश्व तत्व के ज्ञाता, मोक्ष नेता, उस समय उन्होंने चार मुष्टि केशों का लोभ किया था । तीर्थंकर ऋषभ देव ने प्रेम के ऐसे पवित्र वातावरण की सृष्टि की। सामान्यरूप से पाँच मुष्टि केश लोभ करने की परम्परा रही है । थी कि प्रेम की पवित्रता से ओतप्रोत होने के कारण पशुओंको भी भगवान केशों का लोभ कर रहे थे। दोनों भागों के केशों का लोभ मानव के समान माना जाने लगा था। करना शेष था । उस समय इन्द्र की प्रार्थना से भगवान ने उसी ऋषभ देव प्रेम के राजा हैं । उन्होंने उस संघ की स्थापना प्रकार रहने दिया । की है जिसमें पशु भी मानव के समान माने जाते थे और उनको अपने देश में ही नहीं विदेशों में भी ऋषभ देव मानव कोई भी मार नहीं सकता था ।' सम्यता का सूत्रपात करने वाले महापुरुष के रूप में पूज्य रहे हैं । ऋषभ देव का एक नाम केशीया केशरिया जी है । उदयपुर चीनी त्रिपिटकों में उनका उल्लेख मिलता है । जापानी उनको जिले का एक प्रसिद्ध तीर्थ केसरिया नाथ भी है । केसरिया तीर्थ रोकशाब कह कर पुकारते हैं। पर दिगम्बर, श्वेताम्बर एवं वैष्णव आदि सभी सम्प्रदायवाले समान पान मध्य एशिया, मिश्र और यूनान तथा फणिक लोगों की भाषा रूप से श्रद्धा के साथ यात्रा करते हैं । में उन्हें रेशेफ कहा गया जिसका अर्थ सींगोंवाला देवता है जो कि इस क्षेत्र के आदिवासी केसरिया नाथ की शपथ ले कर जो ऋषभ का अपभ्रंश रूप है।" भी वचन देते हैं। उसे वह केसरियानाथजी की आन मानते हैं। का अक्कड़ और सुमेरों को संयुक्त प्रवृत्तियों से उत्पन्न बेबी उस वचन का पालन आदिवासी अपने प्राण देकर भी करते हैं। लोनिया की संस्कृति और सभ्यता बहुत प्राचीन मानी जाती है । इस सन्दर्भ में मान्यता यह है कि सभ्यता के सूत्रपात कार्य क्रम में उनके विजयी राजा (२१२३-२०८१ ई. पू.) के शिला लेखों से ऋषभ देव जिस समय साधना रत थे आदिवासियों ने भी तीर्थंकर ज्ञात होता है कि स्वर्ग और पृथ्वी का देवता वृषभ था । ऋषभ देव से मार्गदर्शन चाहा था तो तीर्थंकर ऋषभ देव ने उन्हें एल्य हित्ती जाति पर भी ऋषभ देव का प्रभाव है । उनका मुख्य वचन का पालन करने की शिक्षा दी थी । प्रथम तीर्थंकर द्वारा दी देवता ऋतु देव था । उसका वाहन बैल था । जिसे तेशुव कहा गई शिक्षा को इन आदिवासियों ने आजतक परम्परागत क्रम में जाता था । जो तित्थयर उसभ का अपभ्रंश ज्ञात होता है। हृदयंगम कररखा है। वास्तविकता यह है कि ऋषभ देव मानव सभ्यता के आदि ऋग्वेद में ऋषभ देव की स्तुति केशी के रूप में की गई है : सूत्रधार हैं। केशी अग्नि, जल, स्वर्ग तथा पृथ्वी को धारण करता है । केशी विश्व के समस्त तत्त्वों का दर्शन कराता है, और केशी ही प्रकाशमान ज्ञान ज्योति कहलाता है। मधुकर-मौक्तिक लोग कहते हैं, हमने परमात्मा की पूजा की, उसके नाम नास्य पशून समानान् हिनस्ति वही की माला फेरी, पर बदले में कुछ नहीं मिला | अरे, जो कुछ केश्यग्निं विषं केशी विभाति रोदसी । मिला है, वह पूजा-भक्ति से, और नाम-स्मरण से ही मिला है। केशी विश्व स्वदृशे केशीदं ज्योतिरुच्यते ॥ मनुष्य-जन्म मिला, पंचेन्द्रियों की पूर्णता प्राप्त हुई, आर्य कुल में ऋग्वेद १०/१३६/१ जन्म मिला, ये क्या कम हैं ? अब तो परमात्मा के प्रति कृतज्ञ जम्बू द्वीप प्रज्ञप्ति वक्षस्कार', सूत्र ३० आचार्य भिक्षु स्मृति ग्रन्थ दि. खं. पृ. ४ बने रह कर पूजा-भक्ति करना है, जिससे परिपूर्णता प्राप्त हो बाबू छोटे लाल जैनस्मृति ग्रन्थ पृ. १०५ सके। - जैनाचार्य श्रीमद् जयंतसेनसूरि मधुकर' ज्ञानी कहते हैं - जीवन सफल बनाओ | पंच परमेष्ठी भगवन्त हमारे जीवन के आधार हैं और बाय-अभ्यंतर जीवन के विकास-कर्ता हैं । हम स्वयं को उनके निकट रख और उन्हें अपने हृदय में प्रतिष्ठित कर जीवन में आने वाले अनेक झंझावतों से अपने को बचायें। अपने जीवन को कलषुताओं से मुक्त कर सर्व प्रकार से वैभव-संपन्न बनायें, शान्तिमय बनायें। हम जीवन को सफलता की ओर ले चलें । यही इन पंच परमेष्ठियों की आराधना के बाद हमें मुख्य रूप से समझना है- सीखना है। मनुष्य ने जगत् में जन्म लिया है तो जीना तो है ही; पर जीना ऐसे है कि जिसके जीने में जीवन का आदर्श रूप निरन्तर दीखता रहे । ज्ञानी पुरुषों ने जीवन का जो लक्ष्य बनाया है, उस लक्ष्य को सामने रख कर हम अपने कार्य करते रहें। ज्ञानियों के वचन अपने जीवन में आदर्श बन जाऐं, वे हमारे आचरण में आ जाएँ, तो हमारा जीवन सफल बन जाए, तो हम नवकार मन्त्र को अपने गले का हार बना लें और उसे संभाल कर रखें। वह हमसे कभी दूर न हो, ऐसी स्थिति हम बनाये रखें, तब अवश्य ही हम सबका जीवन प्रगतिशील हो जाएगा और हम मंजिल तक पहुँच जाएंगे। - जैनाचार्य श्रीमद् जयंतसेनसूरि मधुकर श्रीमद् जयन्तसेनसूरि अभिनन्दन ग्रंथ / विश्लेषण Jain Education International आवश्यकता से अधिक, संचय है अपराध । जयन्तसेन तजो अधिक, पाओ शान्ति अबाय:/ry.org For Private & Personal Use Only
SR No.012046
Book TitleJayantsensuri Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Lodha
PublisherJayantsensuri Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1991
Total Pages344
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size88 MB
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