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करने का अवसर प्राप्त हुआ। मैं एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण तथ्य श्रीचरण से पा सका हूँ कि व्यक्ति को समाज में अपनी क्षमता से अधिक कार्य करना चाहिए और अफ्नी आवश्यकता से कम लेना चाहिए । संयम, साधना और तपश्चर्या ही जिनके जीवन का लक्ष्य है ऐसे आचार्यचरण पूजनीय हैं । आपका अभिनन्दन ग्रन्थ इस दिशा में एक स्तुत्य प्रयास है। मेरी शुभकामनायें ।
-डॉ० अनन्तकुमार गुप्ता
बाजार गुलियान, दिल्ली
卐 यह जानकर प्रसन्नता हुई कि आपके संपादन में आचार्य श्री देशभूषण जी महाराज
का विशाल एवं भव्य ग्रन्थ प्रकाशित किया जा रहा है। आचार्य श्री देशभूषण जी भारतीय सन्त परम्परा की आध्यात्मिक ज्ञान-धारा के सच्चे प्रतिनिधि हैं। उन्होंने अपने तप, संयम और साधना के बल पर धर्म की रचनात्मक क्षमता और लोक-मंगल भावना को उभारा और प्रदीप्त किया है । वे धार्मिक महापुरुष होने के साथ-साथ बहुभाषाविद् साहित्यकार और मानव-मन की एकता के सूत्रकार हैं। अपनी साधनात्मक अनुभूति और रचनात्मक प्रतिभा से उन्होंने राष्ट्र की अखण्ड भावधारा को मुखरित किया है। उनका साधनाशील, तपोनिष्ठ व्यक्तित्व हमारा मार्गदर्शन करता रहे और वे शतायु हों, यही मङ्गल कामना है।
-डॉ० नरेन्द्र भानावत राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर
卐 इस अलौकिक साहित्यिक अनुष्ठान एवं ऐतिहासिक अभियान की सफलता हेतु
अनेकानेक बधाइयाँ । साहित्य-मनीषी, वरेण्य विद्वान्, बेजोड़ अनुवादक, वाग्मी वक्ता, श्रमण वैभव, जैनाचार्य रत्न श्री देशभूषण जी महाराज के प्रवचनों में प्राचीन भाषाओं का वैभव, वर्तमान भाषाओं की जीवन्तता और लोकभाषाओं की अलौकिक माधुरी पग-पग पर झलकती है। मानवीय जीवन को संस्कृति, नीति और अध्यात्म के नये आयाम देना आपके प्रवचनों का लक्ष्य है। आचार्यश्री की अनेक गुण-गरिमाएँ इस अभिनन्दन ग्रन्थ के चरम सोपान एवं पर्यायवाची बनें, ऐसी शुभकामना है।
-माणकचन्द नाहर निदेशक, सेठ बस्तावर रिसर्च इंस्टीट्यूट, मद्रास
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आचार्यरत्न श्री देशभूषण जी महाराज अभिनन्दन ग्रन्थ :
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