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________________ क्षेत्रफल का माप ज्यामिति के अध्याय के आरंभ में महावीर लिखते हैं कि क्षेत्रफल का माप दो प्रकार का होना चाहिए-व्यावहारिक आवश्यकताओं के लिए सन्निकट पाप और यथार्थ माप । गणित में पारंगत विद्वान कई प्रकार की आकृतियों से परिचित हैं जिनमें त्रिकोण, चतुर्भुज और वक्र देखाओं से बनी आकृतियाँ शामिल हैं। [9, VII, 2-3] इसके बाद आकृतियों के प्रकार का विवरण दिया गया है जैसे, त्रिकोण तीन प्रकार के होते हैं, चतुर्भुज 5 प्रकार के और वक्र रेखाओं से बनी आकृतियाँ 8 प्रकार की होती हैं । बाकी सभी आकृतियाँ इन्हीं आकृतियों से बनती हैं। गणितज्ञों के अनुसार त्रिकोण तीन प्रकार के होते हैं-समबाहु, समद्विबाहु और विषमबाहु । चतुर्भुज समबाहु, दो बराबर भुजाओं वाले, दो विपरीत बराबर भुजाओं वाले, तीन बराबर भुजाओं वाले और विषमबाहु होते हैं। वृत्त, अर्धवृत्त, आयतवृत्त, कम्बुकावृत्त, निम्नवृत्त, उन्नतवृत्त, बाह्य वलय और भीतरी वनय-यह वक्र रेखाओं से बनी आकृतियों के प्रकार हैं। [9, VII, 4-6 | इसके बाद महावीर ने प्रत्येक सन्निकट और यथार्थ आकृतियों के लिए सूत्र बनाए । त्रिकोण और चतुर्भुज के सन्निकट क्षेत्रफल ज्ञात करने का नियम इस प्रकार है-“विपरीत भुजाओं के योगफल के आधे का गुणनफल, त्रिकोण और चतुर्भुज के क्षेत्रफल के बराबर होता है। [9, VIL, 7] ब्रह्मगुप्त ने त्रिकोण और चतुर्भुज के क्षेत्रफल ज्ञात करने के लिए सन्निकट सूत्र बनाये जो क्रमशः इस प्रकार हैं : s=2 और, s= at bd चतुर्भुज का सन्निकट क्षेत्रफल ज्ञात करने का सूत्र मिस्र के विद्वानों को भी ज्ञात था। इसी सूत्र के लिए महावीर ने 11 उदाहरण दिये हैं जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं :"एक त्रिभुज की पार्श्व भुजा, विपरीत भुजा और आधार का माप है 8 दंड । बताओ उसका सन्निकट क्षेत्रफल क्या है ?" [9, VII, 8] "दो समान भुजाओं वाले एक त्रिभुज की समान भुजाओं की लंबाई है 77 दंड । आधार की लंबाई है 22 दंड और 2 हस्त । त्रिभुज का क्षेत्रफल क्या है ?" [9, VII, 9] “3 समान भुजाओं वाले एक चतुर्भुज की प्रत्येक समान भुजा का माप 100 दंड है. आधार का माप है 8 दंड और 3 हस्त। चतुर्भुज का क्षेत्रफल बताओ।" [9. VII, 15] चतुर्भुज का यथार्थ क्षेत्रफल है. S== p-a) (p-b)(p-C) (p-d). [9, VII, 50] Sa+c चित्र : 1 आचार्यरत्न श्री देशभूषण जी महाराज अभिनन्दन अन्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012045
Book TitleDeshbhushanji Aacharya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorR C Gupta
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year1987
Total Pages1766
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size56 MB
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