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________________ 36)। इसी सूत्र (4) का उपयोग करके उपयुक्त दो जीवाओं (AB तथा CD) के ठीक बीचोंबीच की जीबा E F (जोकि मध्यान्तर LN के मध्यबिन्दु M से होकर जायगी) की लम्बाई सरलता से प्राप्त की जा सकती है। हम पायेंगे कि (E F) = (a+64)+-hi......(5) अबचित्र संसा स्पष्ट पतात होता है कि वांछित क्षेत्रफल निकालने के लिए यदि हम सही औसत लम्बाई (effective average length) की जगह जीवा GH लेते हैं तो फल वास्तविक फल से न्यून आयेगा, और यदि जीवा EF लेते हैं तो फल अधिक आयेगा । अत: GH और EF की लम्बाइयों के बीच का मान (intermediate value) लेना उचित होगा। सूत्र (3) और (5) को ध्यान से देखने पर एक ऐसा ही मान होगा (a+be) जिसको चौड़ाई या ऊँचाई से गुणा करने पर जिनभद्र का सूत्र (1) प्राप्त हो जाता है और साथ में उनकी गणितीय प्रतिभा का परिचय भी। करणानयोग के विषयों यथा लोक-अलोक के विभाग, युगों के परिवर्तन तथा चारों गतियों के विवेचन में | जैनाचार्यों ने गणित का विशेषरूप से प्रयोग किया है । धर्मग्रन्थ धवला, तिलोयपण्णत्ति. राजवार्तिक एवं त्रिलोकसार इत्यादि में कितनी ऊंची श्रेणी का गणित प्रयुक्त हुआ है, इसकी संक्षिप्त जानकारी श्र तदेवता भगवत भूतबलि (ई०66-156) द्वारा प्रणीत धवला में संख्या की अपेक्षा द्रव्य-प्रमाण-निर्देश के एक उदाहरण से ही सहज रूप में मिल जाती है (ध. ५/प्र./२२) १. एक २. दस ३. शत ४. सहस्र ५. दस सहस्र ६. शत सहस्र ७. दसशत सहस्र १ | १६. निरब्बुद १० । १७. अहह १८. अबब १००० | १६. अटट १०,००० / २०. सोगन्धिक १००,००० २१. उप्पल १,०००,००० २२. कुमुद १०,०००,००० २३. पुण्डरीक २४. पदुम २५. कथान (१०,०००,०००) | २६. महाकथान (१०,०००,०००) २७. असंख्येय (१०,०००,०००) २८. पणट्ठी (१०,०००,००० | २९. बादाल (१०,०००,०००) ३०. एकट्ठी (१०,०००,०००) (१०,०००,०००)" (१०,०००,०००)" (१०,०००,०००)२ (१०,०००,०००)" (१०,०००,०००)" (१०,०००,०००)५ (१०,०००,०००)" (१०,०००,०००)" (१०,०००,०००) (१०,०००,०००) (१०,०००,०००) =(२५६) =६५५३६ =पणट्ठी -बादाल ६. पकोटि १०. कोटिप्पकोटि ११. नहुत १२. निन्नहुत १३. अखोभिनी १४. बिन्दु १५. अब्बद (श्री जिनेन्द्र वर्णी-रचित जैनन्द्र सिद्धान्त-कोष, भाग २, प० २१४ के आधार से REFERENCES (संदर्भ-ग्रन्थ) Jincratickes (तिनररनकोश:) Vol. I, b, H. D. Friankar. B.O. R. I., Poona, 1944. New Catalogus Catalogorum, Vols. 5 and 7. University of Madras, 1969, 1973, 3. Census of the Exact Sciences in Sanskrit, Series A, Vol. 3, by D. Pingree, Philadelphia, 1976. 4. "Hindu Geometry" by B. Datta and A. N. Singh (revised by K. S. Shukla), Indian J. Hist. Science. Vol. 15 (1980), pp. 161-162. आचार्यरत्न श्री देशभूषण जी महाराज अभिनन्दन ग्रन्थ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012045
Book TitleDeshbhushanji Aacharya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorR C Gupta
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year1987
Total Pages1766
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size56 MB
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