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चित्र (igure) में मान लो कि
छोटी जीवा AB=a, समानान्तर बड़ी जीवा CD=b,
तथा जीवाओं के बीच की दूरी LN=h. जिनभद्र द्वारा कथित नियम के अनुसार हमें निम्न गणितीय सूत्र प्राप्त होता है
वृत्तीयखण्ड ABFDCEA का क्षेत्रफल
K=[/Fo+by ]......(1)
सूत्र (1) अपने ढंग का अनूठा है जोकि अन्यत्र देखने में नहीं आया। विद्वानों को अभी तक उसकी उपपत्ति कठिन प्रतीत होती रही है । लेकिन हम यहाँ उसकी एक सरल उपपत्ति देंगे जो इस प्रकार है
हम जानते हैं कि उपयुक्त वृत्तीय खण्ड के अन्तनिहित समलम्ब चतुर्भुज (trapezium) ABHDCGA का सहा क्षेत्रफल होगा
T= = (a+b)h......(2) यद्यपि जिनभद्र ने वत्तीय खण्ड के सन्दर्भ में सूत्र (2) का भी उल्लेख किया है (बृहत्क्षेत्रसमास, अ० 1, गा० 64), किन्तु उसका उपयोग नहीं किया, क्योंकि वे जानते थे कि सूत्र (2) का उपयोग करने पर हमें वृत्तीयखण्ड के वास्तविक क्षेत्रफल से कहीं न्यून फल मिलेगा। अतः वे एक ऐसे सूत्र की खोज में थे जो सूत्र (2) मे अधिक फल दे । और सूत्र (1) ऐसा ही है क्योंकि
(40)(a +87)-(a)
अर्थात्
(GH) = (a+6)-( ....... (3) लेकिन प्रश्न यह उठा होगा कि क्या सूत्र (1) वास्तविक क्षेत्रफल से भी अधिक फल नहीं देता ? इसका विवेचन इस प्रकार है।
किसी भी वृत्त में उसकी एक जीवा (chord, c) तथा उसके बाण (height of the segment, g) में यह प्राचीन सूत्र सर्वविदित था -
___4g (2R-g)=C.......(4) यहाँ वृत्त की त्रिज्या (radius) का मान है। यह सूत्र (4) जिनभद्र को भी ज्ञात था (बहत्क्षेत्रममास, अ० 1, गाथा
जन प्राच्य विद्याएँ
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