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=30,67,20,000x6=1,84,03,20,000 वर्ष प्रलय-काल 17,28,000 वर्ष का होता है। 6 मन्वन्तर बीत कर 7वें मन्वन्तर के आरम्भ के पूर्व 7 प्रलय बीत चुके। इसीलिए प्रलय का कुल समय-17,28,000X7=1,20,96,000 वर्ष । इसलिए 1,84,03,20,000X1,20,96,000=1,85,24,16,000 वर्षों के पश्चात् वैवस्वत मन्वन्तर आरम्भ हआ। एक मन्वन्तर 71 महायुगों का होता है, जिसके 27 महायुग बीत चुके हैं । एक महायुग 43,20,000 वर्ष का होता है । इसीलिए 27 महायुगों का समय =43,20,000X27=11,66,40,000 वर्ष । अर्थात 1,85,24,16,000X11,66,40,000=1,96,90,56,000 वर्षे सातवें मन्वन्तर के 28वें महायुग के प्रारम्भ के पूर्व
बीत चुके हैं।
अब 28वें महायुग के कलियुग का समय यह है
सतयुग का मान =17,28 000 वर्ष त्रेता का मान =12,96,000 वर्ष द्वापर का मान = 8,64,000 वर्ष
ये तीनों युग बीत चुके, इसलिए इन तीनों का योग = 38,88,000 वर्ष
अर्थात 1,96,90,56,000+38,88,000=1,97,29,44,000 वर्ष के बाद वैवस्वत मन्वन्तर के 28वें महायुग में कलियुग का प्रारम्भ हुआ ।
भाद्रपद कृष्ण 13 रविवार को अर्द्धरात्रि के समय कलियुग की उत्पत्ति हुई थी। ईस्वी सन् 1980 तक कलिगत वर्ष=5,081 सबों का योगफल-1,97,29,44,000+5,081=1,97,29,49,081 वर्ष
कल्प के प्रारम्भ से आज के दिन तक उपयुक्त वर्ष बीत चुके हैं। इसे ही सृष्टि-संवत् कहा जाता है। मोटे शब्दों में वर्तमान कल्पकाल में लगभग दो अरब वर्ष सृष्टि को बने हो चुके हैं।
ईगलैंड के प्रसिद्ध भौतिकी विज्ञानी 'सर जेम्स जीन्स' ने भी अपनी पुस्तक 'The Mysterious Universe' में पृथ्वी की आयु 2 अरब वर्ष ही अनुमान की थी। उनकी गणना का आधार निम्न प्रकार था।
प्रारम्भ में जब हाइड्रोजन और ऑक्सीजन मिल कर जल रूप हुए तो वह जल शुद्ध जल था। उसमें किसी प्रकार के Salts (नमक) मिश्रित नहीं थे। संसार की हजारों नदियां प्रत्येक वर्ष समुद्रों में जो जल ले जाती हैं उसमें नमक मिश्रित होते हैं। पहले तो यह हिसाब लगाया गया कि संसार की समस्त नदियां समुद्र में प्रति वर्ष कितना नमक ले जाती हैं। फिर यह हिसाब लगाया गया कि संसार के समस्त समुद्रों में लवण की कितनी मात्रा है । ये दोनों बातें जानकर सहज ही यह हिसाब लगाया जा सकता है कि इतना नमक नदियां कितने वर्षों में लायी होंगी। उत्तर मिला- लगभग दो अरब वर्ष में ।
किन्तु आजकल जो नयी खोजें हुई हैं, उनसे वैज्ञानिक इस निष्कर्ष पर पहुँचे हैं कि पृथ्वी की आय दो अरब वर्ष नहीं, चार अरब साठ करोड़ वर्ष है जो ब्रह्मा के एक अहोरात्र (चार अरब बत्तीस करोड़ वर्ष) के बहुत सन्निकट है। जब चन्द्रमा पृथ्वी से अलग हुआ था तो उसकी गति भिन्न थी और यह गति अब घट गयी है और जिस गति से यह घट रही है, उसका हिसाब लगाने से सृष्टि की आयु चार अरव साठ करोड़ वर्ष निश्चित होती है।
जैन मान्यता के अनुसार यह लोक छः द्रव्यों का समुदाय है, अर्थात् यह ब्रह्माण्ड छः पदार्थों से बना है-जीव, अजीव (Matter and Energy), धर्म (Medium of Motion) वह माध्यम जिसमें होकर प्रकाश की लहरें एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँचती हैं, अधर्म (Medium of Rest) यानी Field of force, आकाश और काल (Time)। जैन ग्रन्थों में जहां जहां धर्म द्रव्य का उल्लेख आया है वहां-वहां धर्म शब्द का एक विशेष पारिभाषिक अर्थ में प्रयोग किया गया है। यहां धर्म का अर्थ न तो कर्तव्य है मौर न उसका अभिप्राय सत्य, अहिंसा आदि सत्कार्यों से है। 'धर्म' शब्द का अर्थ है एक अदृश्य, अरूपी (Non-Material) माध्यम, जिसमें होकर जीवादि भिन्न-भिन्न प्रकार के पदार्थ एवं ऊर्जा गति करते हैं। यदि हमारे और तारों के बीच में यह माध्यम नहीं होता तो वहां से आने वाला प्रकाश, जो लहरों के रूप में धर्म द्रव्य के माध्यम से हम तक पहचता है, वह नहीं आ सकता था और ये सब तारे अदृश्य हो जाते ।
यह माध्यम विश्व के कोने-कोने में और परमाणु के भीतर भरा पड़ा है। यदि यह द्रव्य नहीं होता, तो ब्रह्माण्ड में कहीं भी गति नजर नहीं आती। यह एक सामान्य सिद्धान्त है कि किसी भी वस्तु के स्थायित्व के लिए उसकी शक्ति अविचल रहनी चाहिए।
आचार्यरत्न श्री देशभूषण जी महाराज अभिनन्दन अन्य
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