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84 लाख ऊहांग
84 लाख ऊह 84 लाख लतांग
84 लाख लता 84 लाख महालतांग
84 लाख महालता 84 लाख शिरः प्रकम्पित
गिनती की सीमा 10 शंख है, इसमें 19 अंक होते हैं ।
1 ऊह
1 लतांग
- 1 लता = 1 महालतांग 1 महालता
1 हस्त प्रहेलिका =1 चचिक
84 लाख हस्तलिका
1 'चचक' में वर्षों की अंक संख्या 201 है, जिसमें 56 अंक और 145 शून्य हैं। आजकल स्कूलों में पढ़ाई जाने वाली
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= 1 शिरःप्रकम्पित
हमारे मतानुसार एक कल्पकाल, एक अवसर्पिणी और एक उत्सर्पिणी काल को मिलाकर बनता है । अवसर्पिणी काल में धर्म, कर्म और आयु सब का क्रमशः ह्रास होता जाता है और उत्सर्पिणी काल में इसके विपरीत सब बातों की क्रमशः वृद्धि होती जाती है । अवसर्पिणी और उत्सर्पिणी दोनों की वर्ष संख्या बराबर है। उसको निकालने की विधि यह है-
जन प्राच्य विद्याएँ
413452630308203177749512192 के आगे 20 शून्य लगाने से जो संख्या बनती है, उतने वर्षों का एक व्यवहारपल्योपमकाल होता है ( 1 व्यवहार पल्योपम काल के कुल अंकों की संख्या 47 है) 1
= 1 उद्धारपत्योपम काल
असंख्यातकोटि व्यवहारपत्योपम काल असंख्यातकोटि उद्धारपत्योपम काल
- 1 अद्धापल्योपम काल
10 कोटाकोड़ी (1 पद्म ) व्यवहारपस्योपम काल 10 कोड़ा कोड़ी (1 पद्म) उद्धारपल्योपम काल 10 कोड़ाकोड़ी (1 पद्म) अढापल्योपम काल 10 कोटाकोड़ी (1 पच) व्यवहारसागरोपम हाल 10 कोटाकोड़ी (1 पद्म ) व्यवहारसागरोपम काल 20 कोड़ाकोड़ी (2 पद्म) व्यवहारसागरोपम काल
1] व्यवहारसागरोपम काल
1 उद्धारसागरोपम काल
1 अद्धासागरोपम काल
=1 कल्पकाल
उपयुक्त मान से गणना करने पर 1 कल्पकाल के वर्षों की संख्या 826905260616406355499024384 (27 अंक) के आगे 50 शून्य लगाने से बनती है । (कुल अंक 77 )
उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि हिन्दुओं द्वारा की गयी कल्प की गणना और प्रमाण है । यद्यपि अंकों में कुछ विभिन्नता पायी जाती है, तथापि अंकों की 'स्थान संख्या बड़ा अन्तर नहीं है ।
यह तो हुई काल-गणना की बात। अब हम पहले हिन्दू मतानुसार सृष्टि संवत् की ओर आते हैं। हिन्दुओं का सृष्टिसंवत् उनके संकल्प मन्त्र में दिया हुआ है। संकल्प मन्त्र इस प्रकार है
ॐ
द्वितीये परा
श्री श्वेतवाराहकल्पे वैवस्वत मन्वन्तरे, अष्टाविंशतितमे युगे कलियुगे कलिप्रथम
"
1
चरणे इत्यादि । "
= 1 उत्सर्पिणी काल
= 1 अवसर्पिणी काल
- 1 अवसर्पिणी काल और 1 उत्सर्पिणी काल
अर्थात् -- मैं अमुक शुभ कार्य का कर्ता सत्ब्रह्म के दूसरे प्रहर में, श्वेत वाराह नामक कल्प में, वैवस्वत मन्वन्तर के अट्ठाईस युग में कलि के पहले चरण में (इत्यादि), अपने कार्यारम्भ का संकल्प करता हूँ।
चौदह मन्वन्तर होते हैं, जिनमें वैवस्वत नामक यह सातवाँ मन्वन्तर बीत रहा है। इसलिए छ: मन्वन्तर बीत चुके हैं और एक मन्वन्तर 71 महायुग का होता है, जिनमें से 27 महायुग बीत चुके हैं। 28वें महायुग के तीन युग अर्थात् सतयुग, द्वापर और ता के बीत जाने पर कलियुग के प्रथम चरण में संकल्प करता हूँ ।
हमारी कल्प की गणना दोनों ही 77 अंक 77 दोनों में समान होने से परस्पर कोई
-
उपयुक्त बातों से संकल्प का वर्ष, कल्प के आरम्भ से इस प्रकार मालूम हो जाता है। बिना प्रलयकाल के मन्वन्तर का प्रमाण 30,67,20,000 वर्ष
क्योंकि छः मन्वन्तर बीत चुके हैं इसीलिए छ: मन्वन्तरों का समय
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