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________________ त्वन वर्तमान युग के प्राकृत के महान जर्मन वैयाकरण डा० पिशल ने विशाल ग्रन्थ Comparetive Grammar of the 'Prakrit Language में संस्कृत से प्राकृत के उद्गम' का खण्डन करते हुए प्राकृत तथा वैदिक भाषा के सादृश्य के द्योतक कतिपय उदाहरण प्रस्तुत किये हैं, जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं : प्राकृत भाषा वैदिक भाषा तण स्त्रीलिंग षष्ठी के एकवचन का रूप 'आए' आय तृतीया बहुवचन का रूप एहि एभिः बोहि (आज्ञावाचक) बोधि ता, जा, एत्थ तात्, यात्, इत्था अम्हे अस्मे वगहि वग्नुभिः सद्धि सघ्रीम् बिउ घिसु पेंस रुक्षव रुक्ष उपर्य क्त विवेचन से यह सिद्ध होता है कि प्राकृतों का उद्गम वैदिक भाषा-काल से प्राग्वर्ती किन्हीं बोलचाल की भाषाओं या बोलियों से हुआ, जैसे कि उन्हीं में से किसी बोली के आधार पर वैदिक भाषा अस्तित्व में आई। विदुः प्राकृत के प्रकार प्राकृत जीवित भाषाएं थीं। भिन्न-भिन्न प्रदेशों में बोले जाने के कारण स्वभावतः उनके रूपों में भिन्नता आई । उन (बोलचाल की भाषाओं या बोलियों) के आधार पर जो साहित्यिक प्राकृतें विकसित हुई; उनमें भिन्नता रहना स्वाभाविक था। इस प्रकार प्रादेशिक या भौगोलिक आधार पर प्राकृतों के कई भेद हुए। उनके नाम प्रायः प्रदेश-विशेष के आधार पर रखे गये। आचार्य भरत ने नाट्यशास्त्र में प्राकृतों का वर्णन करते हुए मागधी, अवन्तिजा, प्राच्य सूरसेनी, अर्धमागधी, वाह्लीका और दक्षिणात्या नाम से प्राकृत के सात भेदों की चर्चा की है। प्राकृत के उपलब्ध व्याकरणों में सबसे प्राचीन प्राकृतप्रकाश के प्रणेता वररुचि ने महाराष्ट्री, शौरसेनी, मागधी और पैशाची ; इन भेदों का वर्णन किया है । चण्ड ने मागधी को मागधिका और पेशाची को पैशाचिकी के नाम से उल्लिखित किया है। छठी शती के सुप्रसिद्ध काव्यशास्त्री दण्डी ने काव्यादर्श में प्राकृतों की भी चर्चा की है। उन्होंने महाराष्ट्री (महाराष्ट्राश्रया), शौरसेनी, गौड़ी और लाटी; इन चार प्राकृतों का उल्लेख किया है। 1. ......This Sanskrit was not the baris of the Prakrit dialects, which indeed dialect, which, on political or religious grounds, was rained to the states of a literary medium, But the difficulty is that it does not seem useful that all the Prakrit dialects sprang out from one and the same source. At least they could not have developed out of Sanskrit, as is generally held by Indian Scholars and Habber, Lassen, Bhandarkar and Jacoby, All the Prakrit languages have a series of comman grammatical and lexical characteristics with the vedic language and such are significantly missing from Sanskrit. २. मागध्यवन्तिजा प्राच्या सूरसेन्यर्धमागधी । वाह्रीका दाक्षिणात्या च सप्त भाषा: प्रकीर्तिताः।। -नाट्यशास्त्र; १७-१८ प्राकृतप्रकाश, १०.१-२, ११, १, १२. ३२ पैशाचिक्यां रणयोलेनौ। मागधिकायाँ रसयौल शौ। -प्राकृत-लक्ष ण ३. ३८-३६ महाराष्ट्राश्रयाँ भाषां, प्रकृष्टं प्राकृतं बिदुः । सागरः सूक्तिरत्नाना, सेतुबन्धादि यन्ममयम् ।। शौरसेनी च गौडी च, लाटो चान्या च तादृशी। याति प्राकृतमित्येवं, व्यवहारेषु सन्निधिम् ।। -काव्यादर्श, २३४-३५ जैन तत्त्व चिन्तन आधुनिक सन्दर्भ १५६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012045
Book TitleDeshbhushanji Aacharya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorR C Gupta
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year1987
Total Pages1766
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size56 MB
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