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वैचारिक अहिंसा अनेकान्तवाद
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अहिंसक व्यक्ति आग्रही नहीं होता । उसका प्रयत्न होता है कि वह दूसरों की भावनाओं को ठेस न पहुंचावे । वह सत्य की तो खोज करता है, किन्तु उसकी कथन शैली में अनाग्रह एवं प्रेम होता है । अनेकांतवाद व्यक्ति के अहंकार को झकझोरता है। उसकी आत्यन्तिक दृष्टि के सामने प्रश्नवाचक चिह्न लगाता है । अनेकान्तवाद यह स्थापना करता है कि प्रत्येक पदार्थ में विविध गुण एवं धर्म होते हैं । सत्य का सम्पूर्ण साक्षात्कार सामान्य व्यक्ति द्वारा एकदम सम्भव नहीं हो पाता । अपनी सीमित दृष्टि से देखने पर हमें वस्तु के एकांगी गुण-धर्म का ज्ञान होता है । विभिन्न कोणों से देखने पर एक वस्तु हमें भिन्न प्रकार की लग सकती है तथा एक स्थान से देखने पर भी विभिन्न दृष्टियों की प्रतीतियां भिन्न हो सकती हैं।
१६ फरवरी, १६८० को सूर्यग्रहण के अवसर पर काल के एक ही क्षण भारतवर्ष के विभिन्न स्थानों पर व्यक्तियों को सूर्यग्रहण के समान दृश्य की प्रतीति नहीं हुई । कारवार, रायचूर एवं पुरी आदि स्थानों में जिस क्षण सूर्यग्रहण हुआ जिसके कारण पूर्ण अंधेरा छा गया, वहीं बम्बई में सूर्य का ८५ प्रतिशत भाग, दिल्ली में ५८ प्रतिशत भाग तथा श्रीनगर में ४७ प्रतिशत भाग दिखाई नहीं दिया ।
भारतवर्ष में ही सूर्यग्रहण के आरम्भ एवं समाप्ति के समय में भी अन्तर रहा । कारवार में सूर्यग्रहण मध्याह्न २.१७.२० बजे आरम्भ हुआ तो भुवनेश्वर में २.४२.१५ पर तथा कारवार में ४.५२.१० पर समाप्त हुआ तो भुवनेश्वर में ४.५६.३५ पर। पूर्ण सूर्यग्रहण की अवधि रायचूर में २ मिनट ४२ सेकंड रही तो भुवनेश्वर में यह अवधि केवल ४६ सेकंड की ही रही।
'स्याद्वाद' अनेकांतवाद का समर्थक उपादान है; तत्त्वों को व्यक्त कर सकने की प्रणाली है; सत्य कथन की वैज्ञानिक पद्धति है । मिथ्या ज्ञान के बन्धनों को दूर करके स्याद्वाद ने ऐतिहासिक भूमिका का निर्वाह किया, एकांतिक चिन्तन की सीमा बतलायी । आग्रहों के दायरे में सिमटे हुए मानव की अन्धेरी कोठरी को अनेकांतवाद के अनन्त लक्षण सम्पन्न सत्य - प्रकाश से आलोकित किया जा सकता है । आग्रह एवं असहिष्णुता के बंद दरवाजों को स्याद्वाद के द्वारा खोलकर अहिंसावादी रूप में विविध दृष्टियों एवम् सन्दर्भों से उन्मुक्त विचार करने की प्रेरणा प्रदान की जा सकती है ।
यदि हम प्रजातंत्रात्मक युग में वैज्ञानिक पद्धति से सत्य का साक्षात्कार करना चाहते हैं तो अनेकांत से दृष्टि लेकर स्याद्वादी प्रणाली द्वारा कर सकते हैं; विचार के धरातल पर उन्मुक्त चिन्तन तथा अनाग्रह, प्रेम एवं सहिष्णुता की भावना का विकास कर सकते हैं । इस प्रकार विश्व-धर्म के रूप में जैन धर्म एवं दर्शन की आधुनिक युग में प्रासंगिकता को आज व्याख्यावित करने की महती आबश्यकता है। यह मनुष्य एवं समाज दोनों की समस्याओं का अहिंसात्मक समाधान है। यह दर्शन आज की प्रजातंत्रात्मक शासन व्यवस्था एवं वैज्ञानिक सापेक्षवादी चिन्तन के भी अनुरूप है। आदमी के भीतर की अशांति, उद्वेग एवं मानसिक तनावों को यदि दूर करना है तथा अन्ततः मानव के अस्तित्व को बनाये रखना है तो जैन दर्शन एवं धर्म की मानव की प्रतिष्ठा, प्रत्येक आत्मा की स्वतंत्रता तथा प्रत्येक जीव में आत्मशक्ति की स्थापना को विश्व के सामने रखना होगा। जैन धर्म एवं दर्शन मानव मात्र के लिए समान मानवीय मूल्यों की स्थापना करता है । सापेक्षवादी सामाजिक संरचनात्मक व्यवस्था का चिन्तन प्रस्तुत करता है, पूर्वाग्रह रहित उदार दृष्टि से एक-दूसरे को समझाने और स्वयं को तलाशने-जानने के लिए अनेकान्तवादी जीवन-दृष्टि प्रदान करता है, समाज के प्रत्येक सदस्य को समान अधिकार एवं स्व-प्रयत्न से विकास करने का साधन जुटाता है ।
अनेकान्तवाद, सत्य और अहिंसा
पहले मैं मानता था कि मेरे विरोधी अज्ञान में हैं। आज मैं विरोधियों को प्यार करता हूँ क्योंकि अब मैं अपने को विरोधियों की दृष्टि से देख सकता हूँ। मेरा अनेकान्तवाद, सत्य और अहिंसा इन युगल सिद्धान्तों का ही परिणाम है।
- महात्मा गांधी, हरिजन, २१ जुलाई, १९४६ से उद्धृत
जैन तत्व चिन्तन : आधुनिक संदमं
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