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वर्त्तमानयुग में अहिंसा का महत्त्व
आजकल विज्ञान के चकाचौंध में सारा भूमण्डल किंकर्तव्यविमूढ़ सा हो गया है। विज्ञान के उत्कर्ष के कारण भौतिकवाद का बिगुलनाद इतना प्रखर हो गया है कि आज का मनुष्य उससे अधिक कुछ सोच ही नहीं पाता। फलतः आये दिन मानवीय मूल्यों का इतना बड़ा अवमूल्यन हो चुका है, कि संसार किस कगार पर जा रहा है, किसी को पता नहीं ।
क्या भारत या संसार के अन्य बड़े या छोटे देश, सभी के सभी स्वतः जहां विज्ञान के चरमोत्कर्ष कूप में गिरते जा रहे हैं, मानव को भ्रम सा हो रहा है कि वह उन्नयन के शिखर पर पहुंच रहा है, पहुंच चुका है । परन्तु वास्तविकता इससे सर्वथा दूर, अतिदूर है । आज मनुष्य का मापदण्ड उसकी मानवीय महत्ता से हटकर भौतिक उपलब्धियों तक ही सीमित है। भूतत्वहीन मनुष्य की गणना मात्र रह गयी है। ऐसे समय के विपर्यय में पड़कर मानव-मन-मस्तिष्क और हृदय शून्य से दीख रहे हैं।
ऐसी विषम स्थिति में जगद्गुरु भारत पुनः एक नये जागरण का सन्देश देने को उद्यत न होगा तो संसार का कल्याण कथमपि न
होगा ।
हिंसा की विस्तृत क्रीड़ास्थली के रूप में सारे संसार के साथ भारत के लोग भी परिगणित होते जा रहे हैं । इन्हें पुनः अपने ऋषियों महर्षियों की बातें याद करनी है।
आज भारत ही नहीं अपितु संसार के सभी देश विषम स्थिति से गुजर रहे हैं। भारत में भी धार्मिक अवहेलना, राजनैतिक भ्रष्टता, पारस्परिक प्रेम का अभाव, स्वावस्थता, प्राचीनता के प्रति विद्रोह, नवीनता का अन्धानुकरण तथा बृद्ध युवाजन की विचार धाराओं का असन्तुलन --- ये सभी अकल्याणकारी भाव सर्वत्र व्याप्त हो रहे हैं। इन सबका एक मात्र कारण है अध्यात्मिकता का अभाव, मानवीय मूल्यों का अवमूल्यन, नैतिकता का पतन ।
केवल भौतिकवाद और आधुनिक विज्ञान द्वारा मानव कभी भी सच्चा सुख और शान्ति नहीं प्राप्त कर सकता । विज्ञान की कुछ उपलब्धियों को कोई भी इनकार नहीं कर सकता किन्तु उसका यह अर्थ नहीं है कि मानवता की बलिवेदी पर विज्ञान के पौधे लहलहायें। ऐसा यदि होगा तो यह संसार शीघ्र ही विनाशलीला का क्षेत्र बनकर रह जाएगा। विज्ञान को सुन्दर रूप देने के लिए कला की कसीदाकारी अत्यावश्यक है । तभी तो किसी वैज्ञानिक ने भी कहा है कि विज्ञान कला के सद्भाव और अच्छी भावनाओं के द्वारा जटित और मंडित होकर संसार में सदा आदर के साथ स्वीकृत होता है तभी वह संसार की शोभा बढ़ा सकता है। अन्यथा विज्ञान की चरम उन्नति के साथ ही संसार का सत्यानाश भी ध्रुव है ।
विज्ञान चन्द्रलोक के धरातल का ज्ञान भले प्राप्त कर ले किंतु आधिदैविक और आध्यात्मिक रहस्यों का पता उसे नहीं लग
सकता।
श्री कामेश्वर शर्मा "नयन"
अतः भौतिकवाद और विज्ञान के साथ-साथ अध्यात्मवाद और धर्मनीति का समुचित समन्वय करके ही हम संसार के कल्याण की बातें सोच सकते हैं, उसे किमात्मक रूप दे सकते हैं।
भारत धर्मप्राण देश है। यहां बिना धर्म के किसी भी प्रकार का आचरण हो ही नहीं सकता। सभी धर्मों में श्रेष्ठतम धर्म अहिंसा है । अतएव हमारे ऋषियों ने आदि काल से 'अहिंसा परमो धर्मः' का मन्त्र हमें दिया । अहिंसा के मार्ग पर चलकर हमारे मुनियों ने मन्त्र द्रष्टा और स्रष्टा का काम किया था।
आदि देव 'ऋषभ देव' से लेकर भगवान् महावीर तीर्थंकर तक ने इस अहिंसा का व्रतपालन कर संसार को मुक्ति का मार्ग दिखलाया । भगवान् महावीर ने अठारह धर्मस्थानों में सबसे पहला स्थान अहिंसा का बतलाया है। उन्होंने तो यहां तक कहा है कि सभी जीवों के साथ संयमनियम से व्यवहार रखना सबसे बड़ी अहिंसा है । यही अहिंसा सभी सुखों को देने वाली है :
जैन तत्त्व चिन्तन : आधुनिक संदर्भ
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