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or years before. The answer is that he now remembers having lived at that earlier times, in such a place and circumstances, and having done certain things then and had certain experiences."
"But does anybody now claim similarly to remember having lived on earth a life earlier than his present one?"
"Although reports of such a claim are rare, there are some. The person making them is almost always a young child from whose mind these memories fade after some years. And when he is able to mention detailed facts of the earlier life he asserts he remembers, which eventual investigation verifies but which he had no opportunity to learn in a normal manner in his present life, then the question with which this confronts us is how to account for the veridicality of his memories, if not by supposing that he really did live the earliar life he remembers."
पूर्वभव स्मरण शरीर ही मरता है और नया उत्पन्न होता है, आत्मा न मरता है न जन्म लेता है। वह तो जन्म लेने वाले नये शरीर में नये किरायेदार की तरह रहने लगता है इसी कारण किसी-किसी मनुष्य को अपने पहले जन्म की अनेक बातें दूसरे जन्म में स्मरण हो आती हैं। लगभग १५-१६ वर्ष पहले दिल्ली में एक ६-८ वर्ष की शान्तिदेवी नामक लड़की थी, वह अपने माता-पिता से कहा करती थी कि मैं शीतला घाटी पर मथुरा में रहती थी, एक दिन दिल्ली में आये हुए एक कथा वाचक ब्राह्मण को पहचान लिया कि आप हमारे शीतला घाटी मुहल्ले में भी कथा करने आते थे। इस पर लोगों का ध्यान उसकी ओर आकृष्ट हुआ। तब उस लड़की को मथुरा ले गये, स्टेशन पर उसे छोड़ दिया गया वह अपने आप शीतला घाटी पहुंची और अपने पहले जन्म के मकान में घुस गई । वहां उसने अपने पूर्वभव के पुत्र, पति आदि को पहचान लिया। और अपने कोठे के कोने में कुछ रुपये गाड़ रखे थे वे भी खोदकर निकाल दिखाये। जिससे यह बात सिद्ध हो गई कि उस लड़की को अपने पहले जन्म की घटना सत्य याद थी। ऐसे पूर्वभव के स्मरण वाली अनेक घटनायें प्रकाशित हुआ करती हैं। इससे सिद्ध होता है कि जीव अपने संचित किए हुए कर्मों के अनुसार दूसरे जन्म में सुख दुःख भोगा करता है । इसी तरह ये जीव अनादि काल से जन्म मरण करते हुए चले आ रहे हैं। अनेक स्त्री पुरुषों को कभी-कभी भूत, प्रेत, बाधा सताया करती है जिसमें वे अपने पूर्वभव की घटनायें बतलाते हैं तथा वर्तमान में अपना जन्म व्यन्तर आदि देवों में बतलाते हैं इससे यह बात प्रमाणित होती है कि मनुष्य और पशु योनि के सिवाय देवयोनि भी है। इस प्रकार धार्मिक मनुष्य, पुनर्जन्म, स्वर्ग, नरक, मोक्ष, पुण्य, पाप, कर्म का फल आदि बातों में अपनी आस्तिकता प्रकट करते हुए पाप कार्यों से बचते रहते हैं।
-आचार्य रत्न श्री देशभूषण, उपदेशसार संग्रह, द्वितीय भाग जयपुर, १९८२, पृ० १०० से उद्धृत
जैन तत्त्व चिन्तन : आधुनिक संदर्भ
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