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प्रयास किया है । अपरिग्रह, अहिंसा, अनेकान्तवाद आदि मान्यताओं के सन्दर्भ में सामाजिक एवं आर्थिक समस्याओं की विभीषिका के उपशमनार्थ अनेक उपयोगी सुझाव प्रस्तुत किए गए हैं । इसी प्रकार आधुनिक समाज में बढ़ती हुई अपराध वृत्ति का मनोविश्लेषण प्रस्तुत करते हुए जैन सिद्धान्तों की उपादेयता पर प्रकाश डाला गया है साथ ही आधुनिक न्यायव्यवस्था के परिपेक्ष्य में जैन सिद्धान्तों के नैतिक मूल्यों का महत्त्व उभारा गया है।
जैन धर्म दर्शन की सामान्य प्रवृत्तियों के सन्दर्भ में मानव समाज की व्यापक समस्याओं से केन्द्रित होते हुए अधिकांश लेखक यह प्रतिपादित करना चाहते हैं कि आज समाज में विषमता, वर्गसंघर्ष, वैचारिक तनाव, परमाणु शक्ति के हिंसक प्रयोग आदि से सम्बन्धित जो विश्व स्तर की मानव-समस्याएं रही हैं जैन धर्म और दर्शन के सिद्धान्त इस असन्तुलन को समाप्त करने में सहायक हो सकते हैं। इन समस्याओं के परिप्रेक्ष्य में विचारकों ने जैन धर्म और दर्शन के सिद्धान्तों की व्याख्या करने में जो उदारता एवं व्यापक दृष्टिकोण अपनाया है उससे ऐसा लगता है कि आज जैन धर्म और दर्शन शास्त्रीयता की दीवारों को तोड़कर मुक्त चिन्तन के आयाम ले चुका है। आज का विचारक जैन धर्म और दर्शन को किसी परम्परा अथवा सम्प्रदाय की सीमाओं में रखकर ही व्याख्यायित नहीं करना चाहता बल्कि समूचे राष्ट्र और विश्व की समस्याओं का समाधान भी उनमें देख रहा है। ऐसा लगता है जैन धर्म और दर्शन में आज भी मौलिक चिन्तन गतिशील है।
मोहनचन्द
संस्कृत विभाग, रामजस कालेज, दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली।
जैन तत्त्व चिन्तन : आधुनिक संदर्भ
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