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________________ ऐसा कभी हो नहीं सकता । अतः सिद्ध है कि योग्यावस्था के पूर्व आत्मज्योति का प्रकाश नहीं होता है।' अब यदि उपर्युक्त दोष से बचने के लिए यह माना जाय कि वह योग्यावस्था के पूर्व आत्मज्योतिरूप से प्रकाशित नहीं होता है, तो इसका कारण बतलाना चाहिए कि वह क्यों नहीं प्रकाशित होता? यहां भी विकल्प होते हैं कि क्या वह शब्दब्रह्म है कि नहीं? यदि शब्दाद्वैतवादी यह माने कि वह अयोग्यावस्था में नहीं रहता, तो उसे नित्य नहीं मानना चाहिए, क्योंकि वह कभी होता है और कभी नहीं होता। यह नियम है कि जो कदाचित् अर्थात् कभी-कभी होता है, वह नित्य नहीं होता, जैसे-अविद्या । ज्योतिस्वरूप ब्रह्म भी अविद्या की तरह कभीकभी होता है अर्थात् योग्यावस्था में होता है और अयोग्यावस्था में नहीं होता। अतः वह भी अविद्या की तरह अनित्य है। इस प्रकार ब्रह्म और अविद्या का द्वैत भी सिद्ध होता है। अत: शब्दाद्वैत-सिद्धान्त खण्डित हो जाता है।' अब यदि यह माना जाय कि अयोग्यावस्था में शब्दब्रह्म आत्मज्योति रूप से प्रकाशित नहीं होता, फिर भी वह है, तो अभयदेव सूरि की भांति न्यायकुमुदचन्द्र में प्रभाचन्द्र और स्याद्वादरत्नाकर में वादिदेव प्रश्न करते हैं-शब्दाद्वैतसिद्धान्ती बतायें कि शब्दब्रह्म होने पर भी क्यों नहीं प्रकाशित होता? यहां भी दो विकल्प हो सकते हैं। (क) ग्राहक का अभाव होने से वह प्रकाशित नहीं होता? अथवा (ख) अविद्या के अभिभूत होने से? यह मानना ठीक नहीं है कि ग्राहक (ज्ञान) का अभाव होने से वह प्रकाशित नहीं होता, क्योंकि शब्दाद्वैत-सिद्धान्त में शब्दब्रह्म ही ग्राहकरूप है और ग्राहकत्व शक्ति उसमें सदैव रहती है। तात्पर्य यह है कि शब्दब्रह्म में ग्राह्यत्व और ग्राहकत्व दोनों शक्तियां विद्यमान रहती हैं-ऐसा शब्दाद्वैतवादी मानते हैं। इसलिए जैन तर्कशास्त्रियों का कहना है कि जब शब्दब्रह्म में ग्राहकत्व शक्ति सदैव विद्यमान रहती है, तो उसे अयोग्यावस्था में प्रकाशित होना चाहिए। अतः शब्दाद्वैतवादियों का यह तर्क ठीक नहीं है कि ग्राहक (ज्ञान) का अभाव होने से वह प्रकाशित नहीं होता। अविद्या से अभिभूत होने से ब्रह्म होते हुए भी अयोग्यावस्था में वह प्रकाशित नहीं होता—यह विकल्प भी ठीक नहीं है, क्योंकि विचार करने पर अविद्या का अस्तित्व ही सिद्ध नहीं होता। प्रभाचन्द्र ने न्यायकुमुदचन्द्र में विशद रूप से अविद्या पर विचार कर उसका निराकरण किया है । वे प्रश्न करते हैं कि अविद्या ब्रह्म से भिन्न है कि अभिन्न ? यदि अविद्या ब्रह्म से भिन्न है, तो जिज्ञासा होती है कि वह वस्तु (वास्तविक) है अथवा अवस्तु' (अवास्तविक) ? स्याद्वादरत्नाकर और शास्त्रवार्तासमुच्चयटीका में भी इसी शैली के अनुसार अविद्या का निराकरण किया गया है। ____ अविद्या अवस्तु नहीं हो सकती-शब्द-ब्रह्म से भिन्न मानकर अविद्या को अवस्तु नहीं माना जा सकता, क्योंकि अवस्तु वही होती है, जो अर्थक्रियाकारी न हो । अविद्या शब्द-ब्रह्म की भांति अर्थकियाकारी है, इसलिए उसे अवस्तु नहीं माना जा सकता। यदि अर्थक्रियाकारी होने पर भी उसे अवस्तु माना जाता है, तो शब्द-ब्रह्म को भी अवस्तु मानना पड़ेगा। प्रभाचन्द्र के मतानुसार अर्थक्रियाकारी होने पर उसे अवस्तु कहा जाता है, तो इसका तात्पर्य यह हुआ कि अवस्तु अर्थक्रिया का दूसरा नाम है। ___ अविद्या को अर्थक्रियाकारी न मानने से एक दोष यह भी आता है कि वह वस्तुरूप न हो सकेगी और ऐसा न होने पर शब्दाद्वैतवादियों का यह कथन 'अविद्या कलुषत्व की तरह हो जाती है' नहीं बन सकेगा। १. (क) तत्वसंग्रहपञ्जिका, पृ०७४ (ख) सन्मतितर्कप्रकरणटीका, तृतीय काण्ड, पृ० ३८५ २. 'अथ न प्रकाशते, तदा तत्किमस्ति, न वा?', प्रभाचन्द्र : न्या० कु० च०, पृ० १४२ ३. वही ४. (क) 'अथास्ति कस्मान्न प्रकाशते -ग्राहकाभावात् अविद्या भिभूतत्वाद्वा?', प्रभाचन्द्र : न्या. कु० च०, १/५, पृ० १४२ ___ (ख) वादिदेव सूरि, १/७, पृ. ६६ ५. ... ब्राह्मण एव तद्ग्राहकत्वात्, तस्य च नित्यतया सदा सत्वात् ।', वादिदेव सूरि, १/७, पृ० ६६ ६. (क) 'सा हि ब्रह्मणो व्यतिरिक्ता, अव्यतिरिक्ता वा?', प्रभाचन्द्र : न्यायकुमुदचन्द्र, १/५, पृ० १४३ (ब) 'सा हि शब्दब्रह्मणः सकाशाद्भिन्ना भवेदभिन्ना वा ।', वादिदेवसूरि : स्या० र०, १/७, पृ.० ६६ (ग) यशोविजय : शा० वा० स० टी०, पृ० २३७ ७. वही ८. 'तत्कारित्वेऽप्यस्या अवस्तु इति नामान्तरकरणे नाममात्रमिव भिद्येत ।', न्या० कु. १०, १/५, पु०१४३ ६. (क) 'कथमेवम् ‘अविद्यया कलुषत्वमिवापन्नम्' इत्यादि वचो घटेत ?', न्या० कु० च०, १/५, पृ० १४३ (ख) स्या० र०, १/७, पृ०६६ १२० आचार्य श्री देशभूषण जी महाराज अभिनन्दन ग्रन्थ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012045
Book TitleDeshbhushanji Aacharya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorR C Gupta
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year1987
Total Pages1766
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size56 MB
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