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________________ के बीच भयंकर युद्ध हुआ। उस युद्ध में पहले देवता पराजित होते रहे, अन्त में विजय उन्हीं की हुई। आत्म-साक्षात्कार का साधन : सत्य सत्य से ही देवताओं ने असुरों पर विजय-वैजयन्ती फहराई थी। उनका अप्रतिम यश संबंधित हुआ था। सत्य कष्टों को भी दूर करता है। ऐतरेय ब्राह्मण में मनु के पुत्र नाभानेदिष्ठ का एक मधुर प्रसंग है। नाभानेदिष्ठ ने सत्य बोलकर बहुमूल्य पारितोषिक प्राप्त किया था। इसलिए उसने विज्ञों को यह आदेश दिया कि आप सत्य बोला करें। मानवमात्र भूल का पात्र है । जीवन में भूल होना उतना बुरा नहीं है। यदि जीवन में कोई पाप भी हो गया है और उस पाप को मानव सत्य रूप में स्वीकार कर लेता है तो वह उस पाप से मुक्त हो जाता है। उपनिषत्कार का मन्तव्य है कि सत्य से आत्मा उपलब्ध होता है। सत्य आत्म-साक्षात्कार का साधन है । आत्मानुभूति का हेतु है। सत्य पर चलना कठिन जैन पुराण साहित्य में ऐसे प्रसंग प्राप्त होते हैं, जहां असत्य भाषण से अनेक व्यक्तियों का पतन हुआ है। किंचित् असत्य भाषण भी विविध द्विविधाओं और पतन का कारण बन जाता है। जैसे-राजा वसु ने जान-बूझकर अजैर्यष्टव्यम् पद के मिथ्या अर्थ को सत्य मानकर उसका प्रतिपादन कर दिया था तथा मिथ्या अर्थ के पक्ष में निर्णय कर दिया था, जिससे उसका सिंहासन पृथ्वी में धंस गया था। मानव-जीवन में यदि सत्य-निष्ठा नहीं है तो उसके जीवन में धर्म का कोई अस्तित्व ही नहीं है । धर्म की जड़ सत्य पर आधृत है। सामान्य रूप से सत्य पर दृढ़ रहना सहज नहीं है । सत्य का पथ तलवार की धार पर चलने से भी अधिक कठिन है। तलवार पर दो पैसे लेकर बाजीगर भी चल सकता है, अपनी कला दिखाकर जन-जन के मन को मुग्ध कर सकता है। किन्तु सत्य के मार्ग पर चलना अत्यधिक कठिन है। तलवार की धार पर चलने के लिए सतत जागरूकता अपेक्षित है। बिना तन्मयता के नुकीली धार पर चलना खतरे से खाली नहीं है। जरा-सी असावधानी से धार पैर को काट सकती है। किन्तु सत्य का मार्ग तलवार की धार से भी अधिक तीखा है। किचित्मात्र भी असावधानी यहां नहीं चल सकती। अतः सत्य के पथिक साधक को अत्यन्त जागरूकता के साथ अपने कर्तव्य पथ पर बढ़ना चाहिए। सत्य और आचरण भारत की शासकीय मुद्रा पर सत्यमेव जयते अंकित है। धार्मिक स्थलों पर भी सत्य बोलने के लिए प्रेरणा प्रदान की जाती है। चाहे धर्मनेता हों, समाजनेता हों या राष्ट्रनेता हों-वे सभी सत्य बोलने की प्रेरणा देते हैं और असत्य के परिहार के लिए कहते हैं । पर आज जीवन से और व्यवहार में सत्य कितना अपनाया जा रहा है, यह एक चिन्तनीय प्रश्न है। पाश्चात्य दार्शनिक आर० डब्ल्यू० एमर्सन ने एक बार कहा था-सत्य का सर्वश्रेष्ठ अभिनन्दन यह है कि हम जीवन में उसका आचरण करें। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने भी स्पष्ट शब्दों में कहा-जो व्यक्ति सत्य को जानता है तथा मन, वचन, काया से सत्य का आचरण करता है, वह परमात्मा को पहचानता है। एक दिन वह मुक्ति को भी वरण कर सकता है। सत्य : जीवन का आधार एक पाश्चात्य चिन्तक ने लिखा है कि मानव-जीवन की नींव सत्य पर आधृत है। सत्य सम्पूर्ण जीवन और सृष्टि का एकमात्र आधार है। एमर्सन ने कहा है— सत्य वह है, जिसे सुन्दरतम और श्रेष्ठतम आधार पर मानव अपना जीवन अवस्थित कर सकता है। सत्य का आधार ही सर्वोपरि तथा सर्वश्रेष्ठ आधार है। ___ महाभारत के उद्योगपर्व में यह बताया गया है कि जिस प्रकार नौका के सहारे से व्यक्ति विशाल समुद्र को पार कर जाता है, वैसे ही मानव सत्य के सहारे नरक-तिर्यंच के अपार दुःखों को पार कर स्वर्ग प्राप्त कर लेता है। १. शतपथब्राह्मण, ३/४/२/८ २. शतपथब्राह्मण, ११/५/३/१३ ३. शतपथब्राह्मण, २/५/२/२० ४.बृहदारण्यक-उपनिषद्,३/१/५ ५. 'क्षुरस्य धारानिशिता दुरत्यया, दुर्गपथस्तत् कवयो बदन्ति ।' ६. 'सत्यं स्वर्गस्य सोपान, पारावारस्तु नौरिव ।', महाभारत, उद्योग पर्व आचार्यरत्न श्री देशभूषण जी महाराज अभिनन्दन ग्रन्थ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012045
Book TitleDeshbhushanji Aacharya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorR C Gupta
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year1987
Total Pages1766
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size56 MB
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