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________________ १७. वेदना और निर्जरा। त्रयात्मक अस्तित्व चेतन और अचेतन-इन दोनों द्रव्यों का अस्तित्व त्रयात्मक है। उसके तीन अंग हैं-ध्रौव्य, उत्पाद और व्यय । अस्तिकाव्य द्रव्य का ध्रौव्य अंश है। पांच द्रव्य अस्तिकाय वाले हैं१. धर्मास्तिकाय २. अधर्मास्तिकाय ३. आकाशास्तिकाय ४. पुद्गलास्तिकाय ५. जीवास्तिकाय अस्तिकाय का अर्थ है-प्रदेश-राशि । पुद्गलास्तिकाय की सबसे छोटी इकाई परमाणु है। वियुक्त-अवस्था में परमाणु और संयुक्त अवस्था में प्रदेश कहलाता है। दो परमाणुओं के मिलने से बना हुआ स्कंध द्विप्रदेशी-स्कंध कहलाता है। पुद्गलास्तिकाय को छोड़कर शेष चार अस्तिकाय अविभागी हैं। इनका एक ही स्कन्ध होता है। उसका कोई भी भाग कभी पृथक नहीं होता, इसलिए चार अस्तिकायों के प्रदेश होते हैं, परमाणु नहीं होते । अवगाह की दृष्टि से एक परमाणु एक प्रदेश के तुल्य होता है। एक जीवास्तिकाय के असंख्य प्रदेश होते हैं और वे सब चैतन्यमय होते हैं। धर्मास्तिकाय और अधर्मास्तिकाय के असंख्य प्रदेश होते हैं । आकाश के अनन्त प्रदेश होते हैं। इनका अपनाअपना विशेष गुण है । धर्मास्तिकाय के सभी प्रदेशों में गति में सहयोगी बनने की क्षमता है। अधर्मास्तिकाय के सभी प्रदेशों में स्थिति में सहयोगी बनने की क्षमता है। आकाश के प्रदेशों में अवगाह देने की क्षमता है । पुद्गलास्तिकाय के परमाणुओं और प्रदेशों में वर्ण, गंध, रस और स्पर्श की क्षमता है। इन पांचों अस्तिकायों के अपने-अपने विशेष गुण हैं । वे गुण अपने-अपने द्रव्य से कभी पृथक् नहीं होते और न कभी एक-दूसरे में परिवर्तित होते हैं। पांचों अस्तिकायों की द्रव्य राशि (Mass) भी ध्रुव है। पुद्गलास्तिकाय विभागी-द्रव्य है, इसलिए कभी परमाणु संयुक्त होकर स्कंध निमित्त कर देते हैं और कभी वियुक्त होकर वे परमाणु बन जाते हैं। अविभागी अस्तिकायों का एक प्रदेश भी कम हो तो वे अस्तिकाय नहीं कहलाते । उनका पूर्ण स्कंध ही अस्तिकाय कहलाता है । गौतम ने भगवान् महावीर से पूछा'भंते ! धर्मास्तिकाय के एक, दो, तीन आदि प्रदेशों को धर्मास्तिकाय कहा जा सकता है ?' भगवान् ने कहा--'गौतम ! नहीं कहा जा सकता।' 'भंते ! उन्हें धर्मास्तिकाय क्यों नहीं कहा जा सकता?' 'गौतम ! चक्र का खंड चक्र कहलाता है, या पूरा चक्र चक्र कहलाता है ?' 'भंते ! चक्र का खंड चक्र नहीं कहलाता, पूरा चक्र चक्र कहलाता है।' 'गौतम ! छत्र का खंड छत्र कहलाता है या पूरा छत्र छत्र कहलाता है? 'भंते ! छत्र का खंड छत्र नहीं कहलाता, पूरा छत्र छत्र कहलाता है।' 'गौतम ! चर्मरत्न का खण्ड चर्मरत्न कहलाता है या पूरा चर्मरत्न चर्मरत्न कहलाता है ?' 'भंते ! चर्म रत्न का खण्ड चर्मरत्न नहीं कहलाता है, पूरा चर्मरत्न चर्मरत्न कहलाता है।' 'गौतम ! दंड का खण्ड दंड कहलाता है या पूरा दंड दंड कहलाता है ?' 'भंते ! दंड का खंड दंड नहीं कहलाता, पूरा दंड दंड कहलाता है।' 'गौतम ! दुष्यपट्ट का खंड दुष्यपट्ट कहलाता है या पूरा दुष्यपट्ट दुष्यपट्ट कहलाता है ?' 'भंते ! दुष्यपट्ट का खंड दुष्यपट्ट नहीं कहलाता, पूरा दुष्यपट्ट दुष्यपट्ट कहलाता है ?' 'गौतम ! आयुध का खण्ड आयुध कहलाता है या पूरा आयुध आयुध कहलाता है ?' 'भंते ! आयुध का खंड आयुध नहीं कहलाता, पूरा आयुध आयुध कहलाता है।' 'गौतम ! मोदक का खंड मोदक कहलाता है या पूरा मोदक मोदक कहलाता है ?' 'भंते ! मोदक का खंड मोदक नहीं कहलाता, पूरा मोदक मोदक कहलाता है।' १. ठाणं, २१ आचार्यरत्न श्री देशभूषण जी महाराज अभिनन्दन प्रन्थ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012045
Book TitleDeshbhushanji Aacharya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorR C Gupta
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year1987
Total Pages1766
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size56 MB
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