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________________ ढाई हजार वर्षों में श्री भगवान् महावीर स्वामी की विश्व को देन -आत्म-विश्लेषण का शिलालेख समीक्षक : डॉ. नरेन्द्रनाथ त्रिपाठी हम २१वीं सदी में प्रवेश करने के लिए आतुर हैं किन्तु हम इस बात को नहीं देख रहे कि वह सदी अति वैज्ञानिक एवं अतियांत्रिक होगी। फलतः सौहार्दपूर्ण वातावरण की सम्भावना कम होगी और सामाजिक, धार्मिक एवं अन्य संस्कृतियों के मलीन होने की सम्भावना बढ़ जायेगी। ऐसी स्थिति में अपनी आत्मोन्नति एवं मानव की चरमोन्नति हेतु आचार्य देशभूषण जी महाराज द्वारा सम्पादित 'ढाई हजार वर्षों में श्री भगवान् महावीर स्वामी की विश्व को देन' पुस्तक पठनीय है। महाराज जी ने सरल भाषा में संस्कृत-उर्दू के कथनों द्वारा यह बताने का प्रयत्न किया है कि जैन धर्म की विश्व को क्या देन है। हिंसा किसे कहते हैं ? आज दुनिया जो भोग में लीन है वह जीवन का परम लक्ष्य नहीं है। भारतीय जो सदैव अध्यात्मवादी रहे उन्हें भोगलिप्सा से दूर रहना चाहिए, अन्यथा उन्नति के स्थान पर पतन ही होगा। इस पुस्तक में भगवान् महावीर से सम्बन्धित अनेक घटनाओं का समावेश किया गया है जो जीवन के लिए प्रेरणास्रोत हैं। भगवान् महावीर के 'वचनामृत' आज भी उतने ही उपयोगी एवं प्रभावी हैं जितने आज से २५०० वर्ष पूर्व थे। प्रस्तुत पुस्तक में आचार्य जी ने उन सब कारणों को प्रस्तुत कर हमारी आंखें खोलने का प्रयत्न किया है जिन कारणों से भारत का पतन हुआ। इस ओर भी संकेत किया गया है कि हमारा उत्थान किस प्रकार हो सकता है। हमें बलहीन किसने बनाया? बचपन के संस्कारों का क्या प्रभाव होता है ? हमारी शिक्षा-दीक्षा कैसी हो ? आज शिक्षा हमें जिस प्रकार दिग्भ्रमित कर रही है वह किसी से छिपा नहीं है। अतः शिक्षा को यदि सही दिशा देनी है तो यह पुस्तक उपयोगी सिद्ध होगी। विभिन्न जैन धर्मावलम्बी राजाओं का संक्षिप्त जीवनपरिचय भी इस पुस्तक में प्राप्य है। पुस्तक के अन्त में सिंहावलोकन के अन्तर्गत जैन धर्मावलम्बियों के योगदान एवं उनके गुणों का वर्णन है। चरित्र निर्माण के लिए 'छांदोग्य उपनिषद्' की कथा का उल्लेख भी किया गया है। निष्कर्षतः यह कहा जा सकता है कि परमपूज्य आचार्य देशभूषण जी महाराज द्वारा सम्पादित यह पुस्तक आबाल-गोपाल के लिए तो उपयोगी है ही, पिता, गुरु, नेता, धर्मगुरुओं एवं आज की युवा पीढ़ी के लिए विशेषतया पठनीय है। AWAL सृजन-संकल्प Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012045
Book TitleDeshbhushanji Aacharya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorR C Gupta
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year1987
Total Pages1766
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size56 MB
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