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स्त्री के साथ मिलकर, मन शोधन रूपी स्नेह से युक्त निद्रा रूपी रस्सी को त्याग कर वह सिंह चन्द्रमुनि तपरूपी स्त्री के साथ मग्न होकर तपश्चरण करने लगे।"
प्रबन्ध की कथा अनेक अन्तर्कथाओं से समन्वित है। इन अन्तर्कथाओं के माध्यम से धर्म और दर्शन तथा जीवन को त्याग की ओर उन्मुख करने का उपदेश काव्य का प्रमुख लक्ष्य है। अनेकानेक सूक्तिवचन इसमें सहज रूप से समन्वित हो गए हैं। चितन का आधार निरन्तर यही रहा है कि नरक में पड़े हुए जीवों की रक्षा करने वाला सच्चा साक्षी धर्म ही है। श्रद्धा-पूर्वक धर्माचरण का संदेश देते हुए अर्हत भगवान् द्वारा कहे गए धर्म की अनेक प्रकार से व्याख्या की गई है। क्रोध, मान, माया और लोभ ये चार प्रकार के कषाय पाप कर्म के आस्रव को उत्पन्न करने वाले हैं। उत्तम क्षमा, मार्दव, आर्जव, सत्य, शौच, संयम, तप, त्याग, आकिंचन और उत्तम ब्रह्मचर्य इन दस धर्मों तथा आगम पर श्रद्धा भक्ति स्तुति का उपदेश है। इसी मार्ग से अभ्युदय नाम के निःश्रेयस पद अर्थात् मोक्ष की प्राप्ति सम्भव है। कहीं-कहीं बौद्ध धर्म के अनित्य आत्मवाद का खण्डन भी हुआ है। कवि का मन नगर वर्णन, भवन वर्णन तथा अन्य प्रासंगिक वर्णनों में पर्याप्त रमण करता रहा है। एक उदाहरण पर्याप्त होगा-"उस धरणी तिलक नगर में अधिक से अधिक ऊंचाई में तथा ध्वजाओं से युक्त गोपुर थे और गोपुर के आस-पास बड़ी गलियां थीं। नगर में सुन्दर स्त्रियों की इतनी भीड़ रहती थी कि जिससे आने-जाने में बड़ी बाधा होती थी 'इस प्रकार स्त्रियों तथा पुरुषों के चलनेफिरने में ऐसे शब्द होते थे जैसे पर्वत पर से नदी के पानी के गिरने की आवाज होती है। ''उस महानगर में निवास करने वाली तरुण स्त्रियां सर्वगुण-सम्पन्न व रूप में सुन्दर, मधुर शब्दों से युक्त, एक क्षण में मन्मथ को वश में करने वाली थीं।"उस नगर में वीणा के तथा नृत्य करने वाली स्त्रियों की पैजनी के मधुर शब्द सुनाई दे रहे थे।"
समग्रतः प्रकृति-चित्रण, मानव-सम्वेदनाओं का सम्यक् अध्ययन, जनजीवन के विभिन्न पक्षों के अनेक रम्य पक्षों का उद्घाटन करते हुए यह ग्रन्थ 'सत्य' के प्रतिपादन का ग्रन्थ है । बहुभाषाविज्ञ, सांस्कृतिक अनुचेतना के उद्बोधक महापुरुष श्री देशभूषण जी द्वारा अनूदित एवं व्याख्यायित होकर वामनाचार्य का यह मूल तमिल ग्रन्थ एक संग्रहणीय हिन्दी ग्रन्थ में परिणत हो गया है। धर्म में आस्था को सुदृढ़ करने, भारतीय जन-मानस को सांस्कृतिक धरोहर से सम्पृक्त करने तथा जैन धर्म के जिज्ञासुओं को अन्य स्रोतों से सामग्री का संचयन करने की प्रेरणा देने में इस 'मेरुमंदर पुराण' का निश्चित योगदान होगा।
अम
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Rohit
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