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वस्तुतः किसी कृति का मौलिक अनुवाद अपने-आप में चुनौती भरा कार्य है। सामान्यतः अनुवाद की परम्परा तो सुदीर्घ काल से चली आ रही है परन्तु अधिकांश अनुवादित कृतियों में मूल ग्रन्थ का आस्वाद देखने को नहीं मिलता। मूल ग्रन्थ जैसा आनन्द अनुवादित करने वाले विवेचक की विद्वत्ता पर बहुत कुछ निर्भर करता है। विश्व की अनेक भाषाओं में उत्तम कोटि के अनुवादों का प्रायः अभाव ही देखा गया है । इस दृष्टि से कानड़ी काव्य अपराजितेश्वर शतक का श्री श्री १०८ आचार्यप्रवर देशभूषण जी महाराज कृत हिन्दी अनुवाद निश्चय ही अद्भुत, अनूठा और गुरु गम्भीर कार्य है। हिन्दी भाषा और साहित्य के फलक को विस्तार देने की दृष्टि से ऐसे मौलिक अनुवाद आज तक विरल ही देखने में आये हैं।
कानड़ी काव्य अपराजितेश्वर शतक का विवेच्य हिन्दी अनुवाद जहां एक ओर अनुवादकला की अपने आप में कसौटी है वहां मौलिक रसास्वादन की दृष्टि से एक आदर्श अनुवाद कृति है। इस अनुवाद में सरसता, स्वाभाविकता, मृदुलता, प्रभावोत्पादकता और मनोज्ञता आदि अनेकानेक गुणों का प्रादुर्भाव देखकर विद्वान् अनुवादक श्री १०८ आचार्य देशभूषण जी महाराज की ऋषि-तुल्य साधना
और तपस्या का स्मरण हो जाता है। निश्चय ही इस अनुवाद की अनूठी संरचना के मूल में आचार्य श्री की साहित्य, दर्शन और धर्म के प्रति गहरी आस्था और तपश्चर्या का बहुत बड़ा हाथ है । प्रस्तुत अनुवाद एक सिद्ध पुरुष की अमृतवाणी का प्रताप है जिसमें एक ओर परिव्राजक धर्म के अनन्य अनुष्ठान कर्ता की धामिक चेतना की दिव्य ज्योति का अक्षय स्रोत प्रवाहित है तो दूसरी ओर महान् आत्मचेता की निर्मल, निश्छल और दिव्य आत्मा की महान् छवि का रूपांकन भी अपनी समस्त संवेदनाओं के साथ उपलब्ध है। बहुभाषाभाषी, शास्त्रज्ञ, विद्वान् और जैन धर्म की अपराजेय प्रतिभा से समृद्ध श्री १०८ आचार्य देशभूषण जी महाराज ने कानड़ी काव्य अपराजितेश्वर शतक का हिन्दी अनुवाद दो खण्डों में प्रस्तुत करके जहां असंख्य जैन धर्मानुयायियों का कल्याण किया है वहां बावन करोड़ हिन्दी भाषाभाषियों के प्रति भी उपकार किया है। अन्यथा हिन्दी का बहुत बड़ा पाठक वर्ग इस कानड़ी कृति के रसास्वादन से वंचित ही रह जाता।
विवेच्य कृति के कुल १२७ पद्यों वाले मूल काव्य ग्रन्थ के प्रस्तुत अनुवाद को विद्वान् अनुवादक ने अनेकानेक ग्रन्थों के पुष्ट प्रमाणों के उद्धरणों द्वारा समृद्ध बनाकर अनुवाद में मौलिकता का अद्भुत समावेश किया है। आचार्य श्री देशभूषण जी महाराज के दिव्य प्रवचनों के अनुरूप ही उनके साधनाशील मौलिक ग्रन्थों और अनुवादों में भी आत्मशोधन की अद्भुत क्षमता और सामर्थ्य विद्यमान है । ऐसे महापुरुषों एवं विद्वान् संतों के प्रत्यक्ष दर्शन और कृति समागम से भटकती आत्माओं को निजात्म रस में अवगाहन करने का सौभाग्य निरन्तर सुलभ होता रहे, प्रत्येक मानवतावादी ऐसी कामना तो कर ही सकता है।
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आचार्यरल श्री देशभूषण जी महाराज अभिनन्दन ग्रन्थ
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