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मलयगिरि पर उत्पन्न होने वाला चन्दन का पेड़ समस्त वृक्षी (वनस्पतियों) में श्रेष्ठ है। कमल का पुष्प सभी पुष्पों में उत्तम माना जाता है, समस्त पर्वतों में सुमेरु पर्वत श्रेष्ठ है, समस्त पाषाणों में रत्न श्रेष्ठ होता है, समस्त देवों में इन्द्र श्रेष्ठ है, समस्त इन्द्रों से भगवान् जिनेन्द्रदेव सर्वश्रेष्ठ होते हैं, क्योंकि उन्होंने समस्त आत्मशत्रुओं को परास्त करके सर्वज्ञ वीतराग परमात्मपद प्राप्त कर लिया है।
जिस प्रकार पतझड़ आने पर वृक्ष के पत्ते वृक्ष से टूट-टूटकर अपने आप गिर जाते हैं, उसी प्रकार सभी ऐश्वर्य आदि पदार्थ काल आने पर नष्ट हो जाते हैं । परन्तु शील (ब्रह्मचर्य) ऐसा सुन्दर आभूषण है जो कभी नष्ट नहीं होता, सदा साथ देता है।
मनुष्य जन्म, उत्तम वंश की प्राप्ति, धन सम्पन्न होना, दीर्घ आयु, नीरोग शरीर मिलना, अच्छे मित्रों की प्राप्ति, अच्छी कन्या, सती पत्नी, भगवान् तीर्थकर में भक्ति होना, विद्वत्ता, सुजनता, इन्द्रियों पर विजय, योग्य पात्र को दान दे सकने की सामर्थ्य-ये. तेरह गुण पुण्य के बिना संसारियों को मिलने दुर्लभ हैं ।
जिसके हृदय में काम का वेग उदय हुआ है वह मनुष्य समस्त गुणों से पतित हो जाता है। उसमें न विद्वत्ता रह जाती है और न मनुष्यता रहती है, न वह अपने विमल कुल का स्मरण करता है और न उसकी वाणी में सत्य रहता है।
0 उसी समय तक अनेक प्रकार के मन्त्र-यन्त्र-तन्त्र सहायता करते हैं, जब तक प्राणों का पुण्य प्रबल है। जिस प्रकार गाड़ी के चक्रों की कील निकल जाने पर गाड़ी नही चल सकती, और गिर पड़ती है, उसी प्रकार पुण्य का समय निकल जाने पर प्राणी की गति पंगु (लंगड़ी) हो जाती है । उसके सभी उपाय, सभी साधन उस समय व्यर्थ हो जाते हैं।
C मूर्ख लोग पत्थर में से तेल निकालना चाहते हैं, मृगमरीचिका में से जल लेना चाहते हैं, रेत की ढेरी में मेरु की 'कल्पना करते हैं, मोक्ष सुख और इन्द्रिय-सुखों को एक समान समझते हैं, कृत्रिम सुख में वास्तविक सुख की भावना करते हैं । किन्तु क्या किसी ग़लत स्थान में किसी वस्तु की भावना करने से वह वहाँ प्राप्त हो सकती है?
D जो मनुष्य जन्म लेकर बाल सफेद होने तक अपने जीवन में संसार की विषय-वासना का अनुभव करते हुए भी भगवान् के चर गकमलरूपी धन को अपने हृदय में सुरक्षित रखता है और मरण पयन्त उसे निकलने नहीं देता, वही मनुष्य इस संसार में धन्य है।
संसार में यौवन, धन-सम्पत्ति, प्रभुत्व और अविवेक इनमें से प्रत्येक बात मनुष्य को अंधा बना देती है। फिर यदि ये चारों एक स्थान पर मिल जायें अर्थात् किसी एक ही व्यक्ति को ये चारों प्राप्त हो जाएँ तो फिर उसके बिगाड़ का कहना ही क्या है !
0 पति के अनुकूल यदि स्त्री हो तो धर्म, अर्थ, काम से तीन पुरुषार्थ मोक्ष के साधन बन जाते हैं। यदि पति-पत्नी में विसंगति (असमानता) होती है तो दोनों लोक बिगड़ जाते हैं ।
0श्रेष्ठ दयामय धर्म ही सम्पूर्ण प्राणियों के लिए शरणभूत (रक्षक) है, अन्य कोई नहीं । दयामय धर्म ही जिनेन्द्र देव ने समस्त प्राणियों के लिए सुख का कारण बतलाया है। इसके अतिरिक्त अन्य कोई धर्म ऐसा नहीं है। ऐसा विश्वास करके जिसने उस धर्म को ग्रहण किया है, वही बुद्धिमान है ।
सद्धर्म ग्रहण करने में कुल और जाति का कोई बन्धन नहीं है । सदाचार वृत्ति से जो चलता है, उसकी दुनिया में ख्याति होती है किन्तु केवल उत्तम कुल में जन्म लेने मात्र से कोई पूज्य नहीं होता।
परम्परा से चले आ रहे कुल-धर्म को कोई नहीं देखता । ब्राह्मण आदि जाति उच्च है, अमुक जाति नीच है, लोग ऐसा मानते हैं किन्त इस तरह मोक्ष की परिपाटी नहीं बन सकती । क्योंकि ब्राह्मण होने पर भी बहुत से लोगों में नीच और पाप की वत्ति देखी जाती है, कहीं-कहीं नीच कुल के व्यक्ति भी अपने उच्च आचार-विचार के कारण जगत्मान्य बन जाते हैं । भीलों में भी कोई-कोई सदाचारी मिलते हैं। सद्धर्म की दृष्टि से सभी तपोधन नहीं हो सकते । बहत-से साधु का वेष धारण करके तपस्वी और आचारवान् नहीं होते । साधु-साधु में भी अन्तर है। इसी तरह गृहस्थों में भी अन्तर है। महातपस्वी और कुलतपस्वियों में अन्तर है । दोनों समान नहीं हैं । सद्गृहस्थ की अपेक्षा कुलिंगी साधु गये-बीते हैं। जैन गृहस्थ की क्रिया मोक्ष का कारण होती है, जबकि कुलिंगी की क्रिया संसार-वृद्धि का कारण है।
छली-कपटी लोग शुद्ध सोने में अपने लाभ के लिए चांदी-तांबा-पीतल को मिलाकर उसे असली सोने के नाम पर बेचते हैं. इसी प्रकार दृष्ट लोग धर्म में अधर्म मिलाकर उसे धर्म के नाम पर चलाते हैं और पाप मार्ग की प्रवृत्ति कराते हैं।
अमृत-कण
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