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________________ हो सकती है । दूसरी विशेषता यह है कि जैन शासन में एकान्त दृष्टि नहीं है । एकान्त दृष्टि से पक्ष-व्यामोह हो जाता है, अपने के प्रति आग्रह हो जाता है उस आग्रह के होने पर सत्यान्वेषण की दृष्टि नहीं रहती, बल्कि यह हो जाती है कि जो मेरा है वही सत्य है । क्या इस आग्रह और पक्षपात से कभी सत्य की उपलब्धि हो सकती है और क्या इससे वस्तुतत्त्व का सही प्रतिपादन हो सकता है ? कभी नहीं । इसलिये जैन शासन में नय और प्रमाणों द्वारा अनेकान्त दृष्टि से पदार्थ का कथन किया गया है। संसार में जो कुछ कहा जाता है, वह पूर्ण सत्य नहीं होता, बल्कि सत्यांश होता है क्योंकि कोई शब्द सम्पूर्ण सत्य को कह नहीं सकता । शब्द जो कुछ कहता है, वह सत्यांश होता है और वह किसी अपेक्षा को लेकर ही कहता है। इस सापेक्षता को ही तो अनेकान्त कहते हैं । जैन शासन इसी अनेकान्त का कथन है । अतः वह पदार्थों का अनेक दृष्टियों से सही निरूपण कर सका है । जैन शासन की तीसरी विशेषता यह है कि चूंकि उसमें सारा कथन अनेकान्त को लेकर है; दूसरे एकान्तवादी जैन शासन का खंडन नहीं कर सकते । वह अकाट्य है । इन सब विशेषताओं के कारण जैन शासन ही आत्मा का कल्याण कर सकता है और संसार के जन्म-मरण, आधि-व्याधि आदि को नष्ट कर सकता है। इसीलिये जैसा कि हमने पहले कहा था कि वस्तुतः जिनशासन निज शासन है, आत्मा का धर्म है। दिगम्बर मुद्रा की नैसगिकता जल स्वभाव से शीतल होता है। यदि उसको अग्नि द्वारा गर्म किया जाए तो भी देर तक उसे यों ही छोड़ देने पर वह स्वयं शीतल हो जाता है । जिन स्रोतों से जल उष्ण (गर्म) निकलता है, उस जल की गर्मी भी स्वाभाविक नहीं होती । उस जल के नीचे गन्धक आदि ज्वलनशील पदार्थ की कोई खान होती है जिस कारण स्रोत का यह जल गर्म होता रहता है। किन्तु स्रोत से निकले हुए उस गर्म जल को भी यदि यों ही रख दिया जाए तो वह फिर अपनी स्वाभाविक शीतलता में आ जाता है । इससे सिद्ध होता है कि जल का स्वभाव शीतल है । जीव का स्वभाव भी शीतल है । उसमें जब किसी प्रतिकूल अनिष्ट बात को देखकर, सुनकर या विचार करके भयानक गर्मी का आवेश आता है उस समय यह एकदम अपने वश में नहीं रहता । अपना विवेक, धैर्य, क्षमा, शान्ति खोकर मरने-मारने और ऊलजलूल बकवास करने, गालियां, अपशब्द देने के लिये तैयार हो जाता है, उसके नेत्रों में रक्त उतर आता है, चेहरा लाल हो जाता है परन्तु जीव की यह गर्मी स्वाभाविक नहीं होती, क्रोध कषाय के कारण बनावटी (वैभाविक) होती है। इसी कारण थोड़ी देर तक ही उस गर्मी का प्रभाव रहता है, तदनन्तर वह क्रोधी जीव स्वयं शीतल स्वभाव में आ जाता है । द्वेष भावना चाहे उसके हृदय में भले ही बनी रहे परन्तु क्रोध का आवेश अधिक देर तक नहीं ठहर सकता। यदि किसी मनुष्य में बहुत अधिक देर तक क्रोध बना रहे तो उस क्रोध की गर्मी से पागल हो जायेगा । यहाँ तक कि उसकी मृत्यु भी हो सकती है । इस से प्रमाणित होता है कि क्रोध जीव का स्वभाव नहीं है, विभाव है - विकृत परिणाम है । इसी तरह हिंसा करना जीव का स्वभाव नहीं है, विभाव है । इसीलिये कोई भी हिंसक, वह चाहे मनुष्य हो या पशु, सदा हिंसा नहीं कर सकता। उसे अपने बच्चों, स्त्री मित्र आदि के मारने के क्रूर परिणाम स्वप्न में भी नहीं होते। 1 उनकी रक्षा करने में वह सदा तत्पर रहता है। इसके सिवाय उसके सामने जब कोई दीन जीव आता है और अपने प्राणों की भिक्षा मांगता है तो उसके ऊपर उसको दया भी आ जाती है। उसकी हिंसा नहीं करता । यदि कोई व्यक्ति अहिंसा भाव से रहना चाहे तो वह जन्म भर रह सकता है । अहिंसा के कारण उसका आत्मा क्षुब्ध नहीं होता । सिंह हिंसक अवश्य होता है परन्तु सदा सबकी हिंसा न करता है, न कर सकता है। उधर हिरण, खरगोश को देखो वे अहिंसक प्राणी हैं। जन्म से लेकर मरण पर्यन्त अहिंसक बने रहते हैं। किसी भी प्राणी की हिंसा नहीं करते। इस अहिंसा के कारण उनमें न कोई विकार आता है, न उन्हें कोई कष्ट होता है। इससे सिद्ध होता है कि हिंसा करना जीव का स्वभाव नहीं है । अहिंसा भाव स्वभाव है । १. २. १२ आत्मा के भीतरी कलुष परिणाम को कषाय कहते हैं । यद्यपि क्रोध, मान, माया, लोभ- ये चार ही कषाय प्रसिद्ध हैं, पर इनके अतिरिक्त भी अनेक प्रकार की कषायों का निर्देश आगम में मिलता है ।" - जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश, भाग-२, जिनेन्द्रवर्णी, पृ० ३३ "कर्मों के उदय से होने वाले जीव के रागादि विकारों भावों को विभाव कहते हैं।" जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश भाग-३ जिनेन्द्र वर्णी, पृ० ५६५ Jain Education International For Private & Personal Use Only आचार्य रत्न श्री देशभूषण जी महाराज अभिनन्दन पन्थ www.jainelibrary.org
SR No.012045
Book TitleDeshbhushanji Aacharya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorR C Gupta
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year1987
Total Pages1766
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size56 MB
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