SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 320
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ हो, ईसाई हो, चाण्डाल हो, अंग्रेज हो, कोई भी हो, सभी जैन धर्म का पालन कर सकते हैं। है। हां, संक्षेप में जैन धर्म के विषय की बातें इस प्रकार हैं : १. जगत् अनादि है। २. आत्मा अमर है । ३. ४. जैन धर्म का सिद्धान्त बहुत गम्भीर है। अतः उसका पूरा परिचय तो जैन धर्म के प्राचीन ग्रन्थों के अध्ययन से हो सकता ५. ६. ७. ८. ε. आत्मा अनन्त है । आत्मा ही परमात्मा होता है। आत्मा ही कर्म बांधता है । आत्मा ही कर्म तोड़ता है । कर्म ही संसार है । कर्म का क्षय ही मुक्ति है। कर्म खुद जड़ है। १० १०. ११. १२. Jain Education International १३. १४. अशुद्ध भावों से कर्म बंधते हैं । शुद्ध भावों से कर्म टूटते हैं । स्वर्ग, नरक और मोक्ष है । पुण्य, पाप है । जांत-पांत कोई नहीं । १५. शुद्ध आचरण ही श्रेष्ठ है । १६. जैन-शासन का माहात्म्य संसार में केवल जैन धर्म ही सारे दुःखों को दूर कर सकता है। जैन धर्म क्या है, यदि आप लोग इसे अच्छी तरह समझ लें तो यह बात आसानी से समझ में आ जायगी कि यही धर्म हमारा कल्याण कर सकता है। इसलिये आचार्य अमितगति ने कहा है अहिंसा ही सबसे बड़ा धर्म है । मृत्यूत्पत्ति वियोगसंगमभयष्यायाधिशोकादयः, सूते जिनशासनेन सहसा संसारविच्छेदिना । सूर्यव समस्तलोचनपथप्रध्वंसबद्धोदया, हन्यन्ते तिमिरोत्कराः सुखहरा नक्षत्रविक्ष पिणा ॥ १६ ॥ जैसे नक्षत्रों को छिपाने वाले सूर्य के द्वारा सबकी आंखों में देखने की शक्ति को रोकने वाले, सुख हरने वाले, अन्धकार के समूह नष्ट हो जाते हैं, इसी प्रकार संसार का नाश करने वाले जैनशासन के द्वारा मृत्यु-जन्म, संयोग-वियोग, भय-रोग, आधि-शोक आदि एकदम दूर हो जाते हैं । आचार्य ने यहाँ जैन शासन का माहात्म्य बताया है। उन्होंने जैन शासन की उपमा सूर्य से की है। जैसे सूर्य अन्धकार का नाश कर देता है, उसी प्रकार जैन शासन संसार के जन्म-मरण, भय शोकादि दुःखों का नाश कर देता है । संसार में जितने धर्म हैं, वे किसी व्यक्ति विशेष द्वारा स्थापित किये गये हैं और उस धर्म का नाम भी उसी व्यक्ति विशेष नाम के ऊपर रक्खा गया है, जैसे बुद्ध द्वारा स्थापित किया हुआ धर्म बौद्ध धर्म कहलाया, विष्णु का धर्म वैष्णव, ईसा का धर्म ईसाई आदि । किन्तु प्रश्न यह है कि क्या धर्म को कोई व्यक्ति बना सकता है ? वास्तव में व्यक्ति धर्म को नहीं बनाता, अपितु धर्म व्यक्ति को बनाता है । धर्म के कारण व्यक्ति महान् बनता है, व्यक्ति के कारण धर्म महान् नहीं बनता । बुद्ध ने धर्म नहीं बनाया बल्कि धर्म ने बुद्ध को महात्मा बनाया। ईसा ने धर्म स्थापित नहीं किया, बल्कि धर्म ने ईसा को महान बनाया। तब फिर बुद्ध और ईसा, विष्णु और शिव ने जो धर्म स्थापित किया; वह सब क्या था ? वास्तव में वे सब महापुरुष थे, किन्तु इन्होंने धर्म की स्थापना नहीं की । धर्म की स्थापना की भी नहीं जा सकती । स्थापना होती है अपने मत की। अतः बौद्ध, ईसाई आदि मत तो हो सकते हैं, सम्प्रदाय भी हो सकते हैं, किन्तु धर्म नहीं हो सकते । धर्म तो आत्मा का स्वभाव है और आत्मा का स्वभाव किसी के द्वारा स्थापित नहीं किया जा सकता, उसका प्रारम्भ नहीं किया जा सकता । जैन धर्म किसी व्यक्ति द्वारा चलाया या स्थापित किया हुआ नहीं है । यह तो जिनों का धर्म है। जिन का अर्थ है वे व्यक्ति जिन्होंने अपने आत्मा के राग-द्वेष मोहादि शत्रुओं को जीत लिया हो। जो आत्मा के इन विकार रूपी शत्रुओं को जीत लेते हैं, वे शुद्ध निर्विकार वीतराग हो जाते हैं, उन्हें आत्म-दर्श न होने लगता है, उन्हें आत्मा के शुद्ध स्वरूप की उपलब्धि हो जाती है । वे व्यक्ति चाहे कोई भी हों, उनका नाम 'जिन' या 'अरहन्त' कहलाता है। वे सब लोगों को आत्मा के शुद्ध रूप और उसकी प्राप्ति के जो उपाय बताते हैं, वही जैनधर्म कहलाता है। जैन धर्म तो वास्तव में आत्मजयी पुरुषों द्वारा बताया गया वह धर्म है, जिसके द्वारा आत्मा की सम्पूर्ण आचार्यरत्न श्री देशभूषण जी महाराज अभिनन्दन ग्रन्थ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012045
Book TitleDeshbhushanji Aacharya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorR C Gupta
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year1987
Total Pages1766
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size56 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy