________________
जैन साधुओं के पांच महाव्रत बतलाए गये हैं, जो प्रत्येक साधु को, चाहे वह छोटा हो या बड़ा हो, अवश्य पालन करने पड़ते हैं :(१) अहिंसा
मन से, वचन से, शरीर से किसी भी जीव की हिंसा न करना, न दूसरों से कराना, न करने
वालों का अनुमोदन-समर्थन ही करना । (२) सत्य
मन से, वचन से, शरीर से न स्वयं झूठ बोलना, न दूसरों से बुलवाना, तथा न बोलने वालों
का अनुमोदन करना। (३) अचौर्य
मन से, बचन से, शरीर से न स्वयं चोरी करना, न दूसरों से करवाना, न करने वालों का
अनुमोदन करना। (४) ब्रह्मचर्य
मन से, वचन से, शरीर से मैथुन-व्यभिचार न स्वयं करना, न दूसरों से करवाना, न करने
वालों का अनुमोदन करना । (५) अपरिग्रह- मन से, वचन से, शरीर से परिग्रह को पास नहीं रखना।
जैन साधु का जीवन तप और त्याग का इतना कठोर जीवन है कि आज उसके समान कोई दूसरा नहीं मिलेगा। यही कारण है कि जैन साधु संख्या में बहुत थोड़े हैं, जब कि दूसरे वेषधारी साधुओं की देश में भरमार है। आज छप्पन लाख साधु नामधारियों की फौज भारतवर्ष के लिये भार बन चुकी है। परन्तु सच्चा गुरु पद हरेक व्यक्ति धारण नहीं कर सकता। कहा है-गुरु कीजे जान कर, पानी पीजै छान कर ।
शास्त्र-जिसमें हिंसा का उपदेश तथा देवी देवता के सामने बकरा गाय, भैस चढ़ाने से धर्म होता है ऐसा जिसमें वर्णन किया गया हो, और जिस शास्त्र को सुनने मात्र से पाप भाव का बंध होता हो उसको शास्त्र नहीं कहते । इन पापों से रहित अहिंसा मार्ग का जिसमें वर्णन किया गया हो वही प्राणी मात्र का कल्याण करने वाला है। वही सच्चा शास्त्र है ।
___ तुम्हारा कौन-सा धर्म है ? जैन धर्म । धर्म का क्या अर्थ है ? जो दुःख से, दुर्गति से, पापाचार से, पतन से बचाकर आत्मा को ऊँचा उठाने वाला हो, धारणा करने वाला हो, वह धर्म है।
सच्चा धर्म कौन-सा होता है ? जिससे किसी को दुःख न पहुचे, ऐसा जो भी अच्छा विचार अच्छा आचार है, वही सच्चा धर्म है। क्या जैन धर्मं भी सच्चा धर्म है ? हाँ, वह अच्छे विचार और अच्छे आचार वाला धर्म है, इसलिए सच्चा धर्म है।
जैन धर्म का क्या अर्थ है ? जिन भगवान् का कहा हुआ धर्म। जिन भगवान् कौन ? जो राग-द्वेष को जीतकर पूर्ण पवित्र और निर्मल आत्मा हो गये हैं, वे जिन भगवान् हैं श्री महावीर, पार्श्वनाथ आदि ।
जैनधम के क्या दूसरे भी कुछ नाम हैं ? हां, दया धर्म, स्याद्वाद धर्म, अहंत धर्म, निग्रंथ (दिगम्बर) धर्म आदि । जैन धर्म में दया का बड़ा महत्त्व है, इसलिए वह दया धर्म है। स्याद्वाद का अर्थ है पक्षपात-रहित ! समभावका समर्थन करने से जैन धर्म स्याद्वाद धर्म है । राग, द्वेष, मोह, अज्ञान से मुक्त होने के कारण यह अहंत धर्म है। निर्ग्रन्थ का अर्थ है-संपूर्ण लंगोटी तक के परिग्रह से रहित होना। जैन धर्म परिग्रह का अर्थात् धन सम्पत्ति के संग्रह का त्याग बतलाता है, इसलिए वह निग्रन्थ साधु धर्म है ।
जैनधर्म कब से चला? जैन धर्म नया नहीं चला है, वह अनादि है। दया ही तो जैन धर्म है और संसार में जिस प्रकार दु:ख अनादि है, उसी प्रकार जीवों को दुःख से बचाने वाली दया भी अनादि है । अनादि दया का मार्ग ही जैनधर्म कहलाता है।
जिन भगवान् का कहा हुआ धर्म ही तो जैन धर्म है, इसलिए अनादि कैसे हुआ? जिन भगवान् कोई एक नहीं हुए हैं। पूर्व काल में जिन भगवान् अर्थात् तीर्थंकर अनन्त हो गये हैं, और भविष्य में भी अनन्त होते रहेंगे, अत: जैन-धर्म अनादि काल से चला आता है । समय-समय पर होने वाले जिन भगवान् उसे अधिकाधिक प्रकाशित करते हैं, देश-काल व परिस्थिति के अनुसार उसकी नवीन पद्धति से पुनः स्थापना करते हैं। जिन भगवान् जैन धर्म के चलाने वाले नहीं, वरन् उसका समय-समय पर सुधार करने वाले उपचारक हैं।
___ सच्चा जैन किसे कहते हैं ? धर्म का मूल दया है, अस्तु जो जीव-मात्र को अपने समान समझ कर उनकी हिंसा से बचता है, प्राणी मात्र के लिये दया भाव रखता है, वही सच्चा जैन है । - जैन धर्म का पालन कौन कर सकता है ? जैन धर्म का कोई भी भव्य प्राणी पालन कर सकता है। जैन धर्म में जाति और देश का बन्धन नहीं है। किसी भी जाति का और किसी भी देश का मनुष्य जैन धर्म का पालन कर सकता है। हिन्दू हो, मुसलमान
"अमत-कण
..
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org