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________________ लगभग आठ या नौ वर्ष की शैशवावस्था में मैंने सर्वप्रथम आचार्यश्री देशभूषण जी महाराज के दर्शन श्री दिगम्बर जैन मन्दिर जी पहाड़ी धीरज में किए। उसी अवसर पर आचार्यश्री ने आशीर्वाद देते हुए मुझे सर्वप्रथम णमोकार मन्त्र का मंगल उपदेश दिया । जीवन की अनेक विषम परिस्थितियों में णमोकार मन्त्र की आवृत्ति मेरे लिए वरदान सिद्ध हुई है। आचार्यश्री द्वारा प्रदत्त यह महामन्त्र मेरे जीवन के लिए एक अद्भुत प्रकाशपुंज सिद्ध हुआ है। परमपूज्य आचारत्न श्री देशभूषण जी महाराज श्रमण संस्कृति के सूर्य हैं। उन्होंने अपनी ज्ञानाराधना एवं तपश्चर्या से 'स्व' एवं 'पर' का कल्याण किया है। आचार्यश्री के महान् उपकारों से जैन समाज कभी भी उऋण नहीं हो सकता । पश्वन भक्ति से उत्प्रेरित होकर भारतवर्ष का जैन समाज आचार्यश्री की वन्दना करता है । श्री महेन्द्र कुमार जैन अध्यक्ष, जैन समाज, दक्षिणी दिल्ली उपाध्यक्ष, आचार्यश्री अपने सम्पर्क में आने परमपूज्य आचार्यरत्न श्री देशभूषण जी महाराज के चरणश्री में मेरी गहरी आस्था है। वाले श्रावकों को जीवन में सदाचार एवं मानवीय मूल्यों को अपनाने की सलाह देते हैं। समय-समय पर आचार्यश्री मेरा और मेरे पतिदेव का भी मार्गदर्शन करते रहे हैं। उन्हीं के आशीर्वाद से हमारे परिवार में धर्म के संस्कार विकसित हुए हैं। आचार्यथी के अभिनन्दन की बेला में मैं स्वयं और परिवार के समस्त सदस्यों की ओर से उनकी वन्दना करती हूं । श्री धनेन्द्र कुमार जैन जैन युवक निर्माण समिति, दिल्ली श्री श्री १०८ श्री देशभूषण जी के चरण-कमलों में इस तुच्छ सेवक का प्रणाम स्वीकार हो ! महान् त्यागी श्री महाराज जी हमारे जैसे अज्ञानियों के लिए ज्ञान के प्रकाश स्तंभ हैं । इस धर्म संकट के समय में आप ज्ञान के प्रकाश की विशाल ज्योति लिए कितनी निर्भीकता से हमारा मार्गदर्शन कर रहे हैं। धर्म की नैय्या के निपुण बिया आप ही हैं आपके प्रवचनों का गुणगान करने में हमारी वाणी और लेखनी सक्षम नहीं है। आपके प्रवचनों से समस्त संसार में जो धार्मिक चेतना आई है, वह अलौकिक है । दुनिया के कोने-कोने से आई आवाज - जय जय श्री देशभूषण जी महाराज । कालजयी व्यक्तित्व श्रीमती संतोष जैन वकीलपुरा आचार्य रत्न श्री देशभूषण जी महाराज साक्षात् में धर्म के रूप हैं। उनके चरणों की वन्दना बड़े भाग्य से मिलती है । सुशील जैन सुपुत्र स्व० श्री जुगन लाल जैन आचार्यरत्न श्री देशभूषण जी महाराज को स्मरण करने से सभी प्रकार के संकटों का स्वयं निवारण हो जाता है । अधिक क्या कहूं। वे साक्षात् भगवान् हैं। Jain Education International श्रीमती शकुन्तला देवी जैन रामनगर, पहाड़गंज For Private & Personal Use Only पंचपरमेष्ठी के प्रति श्रद्धानत होना स्वाभाविक है। वर्तमान में निष्परिग्रही स्वात्मखोजी तपस्वी साधुओं का समागम वास्तव में कठिन है। आचार्य रत्न श्री देशभूषण जी महाराज की अप्रतिम सेवाओं के सम्मानार्थ प्रकाशित होने वाले अभिनन्दन ग्रंथ के लिए मैं समिति एवं सम्पादन मंडल को साधुवाद देता हूं। जिनमार्ग की प्रभावना के लिए दिगम्बरत्व का गुणगान अत्यावश्यक है। श्री महावीर प्रसाद जैन, सर्राफ चांदनी चौक, दिल्ली श्री पुरुषोत्तम जैन सुपुत्र स्व० श्री जुगन लाल जैन १४७. www.jainelibrary.org
SR No.012045
Book TitleDeshbhushanji Aacharya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorR C Gupta
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year1987
Total Pages1766
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size56 MB
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