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प्रणामांजलि
डॉ० उदयचन्द्र जैन
पंचपरमेष्ठी अपने मूलगुणों और उत्तरगुणों के कारण सदा ही अभिनन्दनीय और अभिवन्दनीय होते हैं । पंचपरमेष्ठियों में आचार्य परमेष्ठी का स्थान तीसरा है। भरतक्षेत्र में वर्तमान काल में अर्हन्त परमेष्ठी का सान्निध्य हम लोगों को संभव नहीं है । सिद्ध परमेष्ठी तो सिद्धशिला में विराजमान हैं। ऐसी स्थिति में आचार्य और साधु परमेष्ठी ही संसार के प्राणियों का कल्याण करने में समर्थ हैं । उनके द्वारा अदिष्ट मार्ग पर चल कर हम लोग अपना कल्याण कर सकते हैं । श्री देशभूषण जी महाराज आचार्य ही नहीं किन्तु आचार्यरत्न हैं । आपके द्वारा विशाल साहित्य का निर्माण हुआ है और अनेक भव्य जीवों का कल्याण हुआ है। इसे मैं अपना दुर्भाग्य ही समझता हूं कि ऐसे दीर्घ तपस्वी और महान् संयमी आचार्यरत्न के दर्शनों का अवसर अभी तक मुझे नहीं मिल सका है। फिर भी परोक्ष रूप से मैंने आपकी विद्वत्ता, तपस्या, संयम आदि के विषय में बहुत कुछ पढ़ा या सुना है। अभिनन्दन ग्रन्थ समर्पण द्वारा ऐसे आचार्य रत्न का सार्वजनिक अभिनन्दन करके हम उनके प्रति अपनी कृतज्ञता ही ज्ञापित कर रहे हैं । इस मंगलमय अवसर पर मैं आचार की देशभूषण जी महाराज के चरणों में अपनी साष्टाङ्ग प्रणामति समर्पित करता है ।
देश और समाज के भूषण
श्री लक्ष्मीचंद्र 'सरोज'
धर्मध्वजी बालब्रह्मचारी सरस्वती सुपुत्र आचार्य देवभूषण जी महाराज की संज्ञा सार्थक है। ये सही अर्थों में देश और समाज के भूषण हैं। वे प्रशान्त वीतरागी प्रखर मनस्वी बहुश्रुताभ्यासी पद यात्री हैं। आत्मा की आराधना के साथ लोकजीवन मांगल्य उनके जीवन का प्रमुख लक्ष्य रहा है। उनकी साहित्यिक धार्मिक सामाजिक सेवायें स्वर्णिम अक्षरों में लिखने लायक हैं। भरतेश वैभव, परमात्म प्रकाश, धर्मामृत, निर्वाण लक्ष्मीपति स्तुति जैसे कन्नड़ भाषा के ग्रन्थों का आपने हिन्दी गुजराती मराठी में अनुवाद करके अतीव स्तुत्य कार्य किया है। आपकी विद्वता और तेजस्विता, निरीहता और निस्पृहता, दयालुता और सहिष्णुता अपूर्व क्षमता की परिचायक है।
महान व्यक्तित्व
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मेरा आचार्यश्री से पिछले २०-२५ वर्षों से सम्पर्क है। उनका दिल्ली से बहुत सम्पर्क रहा है । भारत जैन महामण्डल के माध्यम से जैन समाज के सभी सम्प्रदार्थों के आचार्यो को एक मंच पर लाने व समाज के कुछ मुख्य-मुख्य एकता सम्बन्धी विषयों पर विचार-विमर्श करने के लिए जिस समय भी आचार्य देशभूषण जी से प्रार्थना की गई उन्होंने इसे सहर्ष स्वीकार किया और अपने बहुमूल्य विचारों से पूर्ण सहयोग दिया। जैन समाज की ओर से जब भी किसी प्रकार के आयोजन हुए उनमें सहर्ष सम्मिलित होकर समाज की एकता की महत्ता पर समाज को प्रेरणा दी। उनके मन में हर समय जैनधर्म के व्यापक प्रचार-प्रसार की भावना रही
है मैं उनके चरणों में श्रद्धासुमन अर्पित करता हूँ।
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श्री भगतराम जैन मंत्री, अखिल भारतीय दिगम्बर जैन परिषद्
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आचार्य रत्न श्री देशभूषण जी महाराज अभिनन्दन ग्रन्थ
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