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________________ महाराजश्री ने कहा-अच्छा तुम दोनों पति-पत्नी चार लाख परिमाण का नियम ले लो। इससे अधिक सम्पत्ति का त्याग कर दो। और अपने भाग्य की विडम्बना का परिहास करते हुए दोनों ने चार लाख की सम्पत्ति का परिमाण अणुव्रत लेकर चरणों में सिर झुकाया । तभी आहार का समय हो आया था, अतः सब उठ खड़े हुए। इस परिवार से मैं विशेष परिचित-सा हो गया था। ___ समय व्यतीत हुआ। मैं फरवरी सन् ७३ में चम्पापुर गया हुआ था। मन्दिर से दर्शन कर बाहर निकल ही रहा था कि दोनों पति-पत्नी ने मुझे टोका-अरे बसन्तजी ! आप यहाँ ? मैंने उन्हें गौर से देखा । पहचानने की कोशिश की। दिमाग पर जोर देकर सोचने लगा कौन हैं ये लोग ? मुझे कैसे जानते हैं ?-तभी पत्नी ने मुझे झकझोरा...अरे ! आप हमें भूल गए !-आपसे हमारी भेट हुई थी जयपुर खानिया जी में, आचार्य देशभूषणजी महाराज के पास । मेरी स्मृति जागी । मैंने उन्हें गौर से देखा और बोला...लेकिन आप तो......। मुझे उन्होंने बोलने नहीं दिया। बीच में ही पति महोदय बोले-उस वक्त हम बहुत गरीब थे। भाग्य ने पलटा खाया तो आज लाखपति हो गए। हम महाराज के पास ही होकर आए हैं। हर वर्ष जाते हैं। और वे मुझे अपनी कार में बिठा कर भागलपुर घुमाने ले गए। भागलपुर में बने अपने सादा बंगले पर ले गए । अन्त में कहने लगे-भैया ! महाराजश्री का आशीर्वाद और उनकी दूरदर्शिता अपार है। आचार्य श्री मेरठ पधारे तो रानी मिल के जैन मन्दिर में रात्रि को विश्राम किया। दूसरे दिन सुबह महाराजश्री ने अनेक मार्मिक अनुभव सुनाए जो आध्यात्मिक जीवन में एक पारसमणि के समान हैं। जी चाहता है कि निरन्तर आचार्यश्री का सान्निध्य मिलता रहे। यगाचार्य महान् सन्त श्री पन्नालाल जैन पंच, प्राचीन श्री अग्रवाल दिगम्बर जैन पंचायत, बिल्ली भारत में महाराजश्री दिगम्बर जैन सम्प्रदाय के महान् सन्त हैं। महाराष्ट्र, पश्चिमी बंगाल, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश,, गुजरात, राजस्थान, हरियाणा, दक्षिण कर्नाटक और दिल्ली सभी प्रांतों में आप ने पदयात्रा करते हुए अहिंसा धर्म का प्रचार किया है। वृद्ध अवस्था में भी आप घोर तपस्या कर रहे हैं। भगवान् ऋषभदेव की जन्मभूमि अयोध्या जी में नाममात्र के दो-तीन जैन घर थे। इस स्थान पर महाराज श्री के सान्निध्य में एक बहुत ही आलीशान भगवान् ऋषभदेव के विशाल जिनमंदिर का निर्माण किया गया है। जयपुर नगरी के चूलगिरि पहाड़ पर भी भगवान् पार्श्वनाथ जी का एक भव्य जिनमंदिर लाखों रुपये की लागत से निर्मित किया गया है। कोथली गांव कर्नाटक राज्य में एक सुन्दर पहाड़ी पर लाखों रुपये की लागत से एक सुन्दर मंदिर बनाया गया है। अभी तक भी इस मन्दिर जी के लिये निर्माण कार्य हो रहा है। दिल्ली में भी देहली कैण्ट, शक्तिनगर, बर्फखाना सब्जीमण्डी आदि कई स्थानों पर मन्दिर जी व अन्य धार्मिक संस्थाओं का निर्माण कराया गया है। महाराजश्री ने अनेक बड़े-बड़े ग्रन्थ लिखकर प्रकाशित कराये हैं। दिगम्बर जैन आचार्यों, मुनियों पर कितने ही उपसर्ग आए। कई प्रांतों में विहार करने पर अजैनों ने आपत्ति उठाई। कलकत्ता, हैदराबाद, जबलपुर आदि स्थानों पर भी उपसर्ग हुए। महाराजश्री ने इन उपसर्गों को अपनी घोर तपस्या से सहन किया है और वहाँ की राज्य सरकारों ने मुनि संघ को पूरी तरह मान्यता दी है और इन उपसर्गों को दूर कराया है। जो व्यक्ति महाराजश्री के विहार में आपत्ति या उपसर्ग कर रहे थे उनको कामयाबी नहीं मिल सकी और निराश होना पड़ा। यहां तक कि बाद में उन्होंने महाराजश्री के चरणों में आकर नमस्कार किया है । वास्तव में महाराजश्री इस युग के सबसे बड़े आचार्य और महान् संत हैं। उनके सम्मुख जैन या अजैन, छोटा या बड़ा कोई भी व्यक्ति आता है तो वह महाराजश्री का सम्मान करता है और महाराजश्री की तपस्या को देखकर उसका मन श्रद्धालु हो जाता है । कालजयी व्यक्तित्व १०७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012045
Book TitleDeshbhushanji Aacharya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorR C Gupta
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year1987
Total Pages1766
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size56 MB
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