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________________ उपासना नहीं की जाती। यहां तो गणों का चिन्तवन किया जाता है। णमोकार मंत्र का विश्लेषण सुनकर अनेक अजैन तथा जैन भाई आनन्दित हुए थे । जैन संतों की चर्या और जिनवाणी की महिमा के विषय में उस समय जो भावना उत्पन्न हुई, उसका श्रेय महाराजश्री के पवित्र प्रवचन को ही जाता है । जैनेतर जनमन में व्याप्त नंगे बाबा आज के पूजनीय सुधी संत बन गए । साक्षर और निरक्षर सभी महाराजश्री के दर्शनों के लिए लालायित रहते । अनेक हिन्दू आर्यसमाजी तथा मुसलमान भाई अनाहूत प्रवचन सभा में उपस्थित देखे गए। यहां सभी के विरोध अनुरोध में बदलते देखे गए। महाराजश्री के अलीगढ़ प्रवासकाल में मध्यप्रदेश, दिल्ली, राजस्थान, महाराष्ट्र आदि प्रान्तों से पधारे भक्त जनों ने अलीगढ़ नगरी को प्रान्त-प्रान्त की संस्कृतियों का संगम ही बना दिया। अलीगढ़ एक में अनेक और अनेक में एकमुखी हो उठा। अनेक मुसलमान भाइयों ने उपस्थित होकर धर्म-लाभ उठाया। यद्यपि महाराज की मातृभाषा हिन्दी नहीं है तथापि उनकी अभिव्यंजनात्मक प्रभावना वस्तुत: उल्लेखनीय है । उनके मुख से जो भी शब्द निकलता वह होता पूरा का पूरा उनकी चारित्रिक चारुता से ओत-प्रोत । पढ़े-अनपढ़े एक साथ उनके प्रवचन को सुनकर सुखानुभूति करते । आचार्यश्री की आचार-चर्या देखकर, सुन-समझकर सामान्य लोग दांतों तले उंगली दबा उठते । इतना बड़ा विद्वान और चौबीस घंटे में एक बार सीमित अन्न-जल और वह भी आन्तराय उत्पन्न न होने पर। इस प्रकार की कठोर और विरल आहार-विधि संसार में दूसरी जगह देखने को नहीं मिल सकती । वाणी संयम कोई उनसे सीखे। किसी भी परम्परा का विरोध किए बिना अपनी बात सरल शब्दावली में उपन्यस्त कर सन्मार्ग पर चलने की आदर्श देशना सुनते ही बनती थी। आचार्यश्री के चारित्र से प्रभावित होकर अनेक व्यक्तियों ने छने पानी तथा दिवाभोजन करने का संकल्प लिया था : अनेक मुसलमान और सरदार भाइयों ने मांसाहार का त्याग किया था। आचार्यश्री का अलीगढ़ प्रवास जैनों के अतिरिक्त जैनेतर समुदाय में भी समादृत रहा। प्राचार्यरत्न श्री देशभूषण जी महाराज डॉ० कैलाशचन्द्र जैन (राजा टॉयज) परमपूज्य आचार्य देशभूषण जी महाराज जैन समाज की ही नहीं, अपितु राष्ट्र की विभूति हैं। भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ० राजेन्द्र प्रसाद जी ने महाराज जी की शक्ति को समझा था। महाराजश्री ने भूवलय ग्रन्थ की शोध की थी, प्रकाशन भी कराया था। डॉ. राजेन्द्र प्रसाद जी को भी दिखाया था। वे उससे इतने प्रभावित हुए थे कि उन्होंने शासन की ओर से भूवलय ग्रन्थ की माइक्रो फिल्म तैयार कराकर महाराज श्री को भेंट की थी। महाराजश्री ने वह फिल्म मुझे दी थी। मैंने कई बार उसका प्रदर्शन भी किया था । यह करीब १५ वर्ष पहले की बात है, परन्तु मैं उसकी ठीक-ठीक सुरक्षा नहीं कर पाया। शायद भाई रघुवर दयाल जी शक्तिनगर निवासी को कुछ पता हो । वह कहीं खो गयी मालूम पड़ती है। भूवलय ग्रन्थ में शब्दों को गणित के १ से १ तक के अंकों में परिणित किया गया था और गणित के अंकों को महाराजश्री ने शब्दों में परिवर्तित कराया था। कैसी मीनाकारी से अंकों में GEOMETRICAL SHAPES से वह ग्रन्थ लिखा गया था। मेरा पूर्ण विश्वास है कि यदि किसी बड़े विश्वविद्यालय में राष्ट्रीय स्तर पर उस ग्रन्थ पर शोध कराया जाये तो COMPUTER SCIENCE को एक बड़ी भारी मदद मिल सकती है। यदि भाषाओं को गणित के अंकों में परिणित किया जा सके तो विश्व की समस्त भाषाएँ एक ही लिपि में लिखी जा सकती हैं । __ आचार्य श्री देशभूषण महाराज जी ने करीब १५ वर्ष पहले पूजा पाठ संग्रह नामक एक विशाल ग्रन्थ प्रकाशित कराया था। उसमें सम्बन्धित विषय का अपूर्व संग्रह था। वैसा संकलन कहीं अन्यत्र नहीं दिखा। महाराज श्री के सान्निध्य में जितने भी ग्रन्थ प्रकाशित हुए हैं, उनको बहुत सावधानी और मेहनत के साथ किसी अच्छे संग्रहालय में रखने की आवश्यकता है। उनकी रचनाओं में अमूल्य निधि संगृहीत है । पूज्य एलाचार्य विद्यानन्द जी महाराज और आर्यिकारत्न ज्ञानमती माताजी पूज्य आचार्य महाराज की समाज को देन हैं, जिनके द्वारा समाज के आध्यात्मिक वैभव को चार चांद लग रहे हैं और भविष्य में और भी अधिक लाभ संभावित हैं। ऐसे आचार्य श्री के चरण-कमलों में मेरा सश्रद्वा प्रणाम निवेदित है । कालजयी व्यक्तित्व १०५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012045
Book TitleDeshbhushanji Aacharya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorR C Gupta
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year1987
Total Pages1766
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size56 MB
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