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________________ प्रोत्साहन एवं सक्रिय सहयोग दिया। समिति के पदाधिकारी श्री अजितप्रसाद जैन ठेकेदार (अध्यक्ष); डॉ. कैलाशचन्द्र जैन (उपाध्यक्ष); श्री सुभाषचन्द जैन (मन्त्री), श्री महेन्द्र कुमार जैन (कोषाध्यक्ष) भी उपयोगी मन्त्रणा और कार्य में सहयोग देते रहे हैं। अभिनन्दन ग्रंथ के सफल समापन के अवसर पर वैद्यराज प्रेमचन्द जैन (मन्त्री) की अविस्मरणीय सेवाएं विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। समिति की संयोजना, गठन, अर्थव्यवस्था का नियंत्रण एवं अन्य अनेक प्रकार के दायित्वों का उन्होंने निष्काम भाव से निर्वाह किया है। आचार्यरत्न श्री देशभूषण जी महाराज अभिनन्दन ग्रन्थ समिति के विधान के अनुसार इस महान कार्य की गतिविधियों को दिशा देने के लिए ग्यारह सदस्यीय समिति का गठन किया गया है। श्री अनन्त कुमार जैन (जैन मेडिकोज) के संयोजकत्व में संचालन समिति अपना कार्य पूर्ण मनोयोग से कर रही है । इस संचालन समिति के सभी सदस्य धन्यवाद के पात्र हैं। 'आस्था और चिन्तन' के विशद भावलोक में निरन्तर सात वर्षों तक विचरण करते रहने के कारण सम्भवतः मैं अपने पारिवारिक एवं सामाजिक दायित्वों के प्रति न्याय नहीं कर पाया। इस सात्विक संकल्प को मूर्त रूप प्रदान करने में मेरे परिवार जनों-धर्मपत्नी ऊषा जैन तथा पूत्रों संजय, संदीप और शरत्---का प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष समर्पित सहयोग रहा है। प्रस्तुत अभिनन्दन ग्रन्थ के सफल प्रकाशन पर उन सबका हषित होना स्वाभाविक है । इस प्रकार के धर्म कार्यों में उनकी निरन्तर रुचि बने रहे, यही मेरी कामना है। भगवान श्री जिनेन्द्रदेव, जिनवाणी एवं धर्मगुरुओं की भक्ति के निमित्त निष्काम भाव से आयोजित इस सारस्वत अनुष्ठान की समापन बेला के अवसर पर युगप्रमुख दिगम्बराचार्य श्री देशभूषण जी महाराज ने कृपा-प्रसाद के रूप में मुझ जैसे अल्पज्ञ एवं साधारण व्यक्ति को 'सम्यक्त्व रत्नाकर', 'साहित्य मनीषो' और 'जैन विद्याभूषण' जैसे गौरवशाली पदों से समलंकृत किया है। विश्वधर्म-प्रेरक आचार्य सुशील कुमार जी ने भी दिनांक ५ मई १९८७ को इस असाधारण कार्य की प्रशंसा करते हुए मुझे ‘परमार्हत् धर्मोपासक' का पद प्रदान किया है। इस सबसे मैं एक ओर तो संकोच का अनुभव कर रहा हूँ, किन्तु दूसरी ओर मुझे सुखद सन्तोष का भी अनुभव हो रहा है। एक प्रकार से इन महाने धर्मगुरुओं द्वारा यह मेरे श्रम और साधना की सामाजिक स्वीकृति है। मैं उनका हृदय से आभारी हूँ। वास्तव में उन्हीं की अज्ञात प्रेरणा से यह कार्य सम्पन्न हो सका है। सुमतप्रसाद जैन अवैतनिक महामन्त्री एवं प्रबन्ध सम्पादक दिनांक १०-५-१९८७ आचार्यरत्न श्री देशभूषण जी महाराज अभिनन्दन ग्रन्थ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012045
Book TitleDeshbhushanji Aacharya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorR C Gupta
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year1987
Total Pages1766
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size56 MB
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