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________________ ही रहा है। भ्रमण धर्म के प्रति आपके हृदय में शुरू से ही गहरी आस्था है और अन्ततः आप उस पथ के अनुयायी बने रहे। आपके व्यक्तित्व में एक विलक्षण प्रतिभा है जो आपको हिताहित विवेकपूर्ण कर्तव्य का बोध कराती रहती है। दीक्षाग्रहण कर श्रमण-धर्म को अंगीकार करने एवं सक्रिय आत्मसाधनापूर्वक स्व तथा पर कल्याण के प्रति अपना जीवन सदा सर्वदा के लिए अर्पित करने के उपरान्त आपकी प्रतिभा में और अधिक असाधारणता एवं विलक्षणता उत्पन्न हो गई। आपका तेजस्वी व्यक्तित्व और अधिक प्रखर हो गया और आपका संदेश जन-जन तक पहुंच कर उन्हें सन्मार्ग पर अग्रसर करने लगा। आपने वस्तुतः धर्म के मर्म को समझा और उसे सर्वजन -सुलभ कराया। आज के युग में जब कि लोगों को धार्मिक उपदेशों से अरुचि होती है, आपके उपदेशों में इतना तीवाकर्षण होता है कि सहस्रों लोग अनायास ही खिने पते आते हैं आपके उपदेश इतने सुरुचिपूर्ण सायमिन और मानस को आन्दोलित करने वाले होते हैं कि सुदीर्घ काल तक उनकी छाप मानस पटल पर अंकित रहती है। ऐसे अनेक उदाहरण देखने को मिले हैं जो आपके उपदेशों की प्रभावकारिता को सुस्पष्ट करते हैं। व्यसनरत कुमार्गगामी और भ्रष्ट आचरण वाले अनेक व्यक्ति आपके प्रभावपूर्ण सदुपदेशों से प्रभावित हुए। आपके उपदेशों ने उन लोगों को ऐसा प्रभावित किया कि सहज ही उनका हृदय परिवर्तन हो गया और आजीवन उन्होंने सदाचरण की प्रतिज्ञा ली इस प्रकार हृदयपरिवर्तन की अनेक घटनाओं के उदाहरण हमारे सामने हैं। श्री देशभूषण जी यद्यपि दिगम्बर जैन साधु हैं और दिगम्बर समाज में आपकी लोकप्रियता अद्वितीय है; तथापि यह एक विवाद तथ्य है कि आप समता-भाव की एक जाग्रत मूर्ति और समन्वयवादी महान् सन्त हैं । यह सच है कि आपकी दीक्षा दिगम्बर समाज में हुई है किन्तु आपका कार्यक्षेत्र केवल दिगम्बर समाज तक ही सीमित नहीं रहा, अपितु संपूर्ण जैन समाज को आपने आह्वान और संदेश का लक्ष्य बनाया । आप श्रमण परम्परा के एक ऐसे सूर्य हैं जिसने समाज को आलोक दिया, दिशा-दृष्टि प्रदान की और अपने सत्साहित्य के द्वारा प्रेरणाप्रद संदेश दिया। विभिन्न स्थानों पर आयोजित अपने चातुर्मास काल में आपने अपने सदुपदेशों के माध्यम से असंख्य लोगों का उद्धार किया। आपका जीवन इतना संयत, सदाचारपूर्ण एवं आडम्बर विहीन रहा है कि उसने प्रायः सभी को प्रभावित किया। आप अहिंसा आदि का पालन इतनी सूक्ष्मता एवं सावधानी से करते हैं कि उसे देखकर लोगों को आश्चर्य होता है । आपके व्रत - नियम कठोर होते हुए भी उदात्त हैं । आप सुदक्ष वाक्पटु हैं और आपकी वाणी एवं वक्तृत्व शैली में गजब का सम्मोहन है, फिर भी आपकी 'वक्तृता में वाक्पटुता की अपेक्षा जीवन का यथार्थ ही अधिक छलकता है। एक ओर जीवन को ऊँचा उठाने वाला और नैतिकता का बोध कराने वाला आपका संदेश और दूसरी ओर आपका अनुकरणीय आदर्शमय जीवन लोगों के हृदय पर स्थायी प्रभाव डालता है । आप मानव जाति के नैतिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक उत्थान के लिए दिव्यता- विभूषित एक देवदूत की भूमिका का निर्वाह कर रहे हैं। आपने प्राणिमात्र की जो सेवा की है, वह अविस्मरणीय है। हम चिरकाल तक आपके जीवन से, जो स्वयं ही एक दिव्य संदेश है, प्रेरणा लेते रहेंगे और सन्मार्ग पर चलने का उपक्रम करेंगे आपका पाचन संदेश एवं अलौकिक ज्योतिःपुंज मताब्दियों तक हमारा पथप्रदर्शन करता रहेगा । नमन है । ऐसी अमर विभूति हमारे लिए सदा सर्वदा वन्दनीय है। आपके चरण-कमलों में विनयावनत वन्दनपूर्वक हमारा शतशः 回 कालजयी व्यक्तित्व Jain Education International O अमृत कल For Private & Personal Use Only ૨૭ www.jainelibrary.org
SR No.012045
Book TitleDeshbhushanji Aacharya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorR C Gupta
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year1987
Total Pages1766
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size56 MB
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