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________________ मुनि सुशील कुमार जी ने मुझे और अहिंसा मन्दिर के डायरेक्टर को यादव साहब के पास भेजा। मैंने कहा हमारे भगवान् महावीर तो नग्न थे। शिवजी भी नग्न थे। हमारे साधु भी नग्न होते हैं। हमने ढाई हजार वर्षों से निर्वाण-महोत्सव सरकार से पैसे लेकर नहीं मनाया । हम अपने मंदिर में मना लेंगे। यह प्रतिबन्ध की बात क्यों? उन्होंने कहा यह सरकार की तरफ से ढील नहीं, तुम्हारे समाज की तरफ से ढोल है। इतनी बात सुनकर मैं मुनिश्री डॉ० नगराज डी० लिट, जो पालियामेंट जाने की तैयारी में थे, के पास पहुंचा और बोला-आप जयसिंहपुरे के मन्दिर चलिए। हमें ऐसे प्रतिबन्ध के रूप में महावीर निर्वाण महोत्सव नहीं मनाना। उन्होंने कहा-- मैं वृद्ध पहले जयसिंहपुरा चलू और फिर पालियामेंट जाऊँ तो थक जाऊँगा। इस पर हमने कहा कि हम तो आपके कार्य में आधी रात तैयार रहें और अब आप जाकर पालियामेंट में बैठ जाओ, हमारा साधु मन्दिर में बैठा रहे। जब मुझे नाराज होते हुए देखा तो तेरापन्थी समाज के अध्यक्ष सेठ मोहनलाल जी कठौतिया बोले-महाराज! आप जैसा पंडित जी कहें, वैसा करो। तब नगराज जी बोले अच्छा मैं आपके साथ चलता हूं और मुनि महेन्द्र कुमार जी द्वितीय को प्रधानमंत्री के पास भिजवाता हूं। उन्होंने ऐसा ही किया। वे मेरे साथ जयसिंह पुरा के मन्दिर जी पहुंचे जहाँ चारों समाजों के आचार्य मुनि विराजमान थे। थोड़ी देर में यादव साहब आए और बोले-महाराज, आप नहीं चलेंगे तो महावीर निर्वाणोत्सव कैसे मनेगा? हमने कहा---अब सब भगवान् महावीर की जय बोलकर ही चलेंगे। ढाई हजार वर्ष के बाद यह अवसर आया है। आज कोई भी अपने आचार्य की जय नहीं बोलेंगे। ऐसा ही हुआ । इस प्रकार आचार्य महाराज पालियामेंट भवन की मीटिङ्ग में सम्मिलित हुए। उन्होंने बहुत ही उत्तम ढंग से आशीर्वाद दिया जिसका सभी उपस्थित समुदाय पर व्यापक प्रभाव पड़ा। इसी प्रकार बड़ी कमेटी के द्वारा तत्त्वार्थ-सूत्र-टीका पं० सुखलाल जी संघवी द्वारा सभी भारतीय भाषाओं में प्रकाशित करने का निश्चय किया गया। आचार्य महाराज ने यह बात मुझ से कही । मैंने प० सुखलाल जी का एक लेख 'अनेकान्त' मासिक पत्र में पढ़ा जिसमें उन्होंने सर्वार्थसिद्धि के कर्ता आचार्य पूज्यपाद, राजवार्तिक के कर्ता भट्टाकलंक देव, और श्लोक वार्तिक के कर्ता स्याद्वाद विद्यापति आचार्य विद्यानंदि को रागी द्वेषी बताया। यह बात मुझे बहुत बुरी लगी। मैंने तत्त्वार्थ सूत्र और संभाष्य तत्त्वार्थाधिगम के सूत्रों की तुलना की और एक विस्तृत लेख लिखकर टाइप कराकर उन सभी सदस्यों को भिजवाया जो दिगम्बर समाज के प्रतिनिधि थे। उसमें बताया कि मूल तत्त्वार्थ सूत्र में इतने सूत्र अपने माने हुए सिद्धान्तों की पुष्टि के लिए बढ़ाये गये हैं । किन-किन बातों में हमारा और उनका अन्तर है। हम इसे नहीं मान सकते । ग्रंथ चारों की ओर से वही छपेगा जिसमें चारों एक मत हों। ऐसा ही हुआ। दिल्ली में आचार्य महाराज के ठहरने से कई महत्त्वपूर्ण कार्य हुए। कहीं भी कोई विवशता आती तो आचार्य महाराज के पास सभी इकठ्ठ हो जाते और थोड़े ही प्रयत्न से कार्य सिद्ध हो जाता। वे एक चलती-फिरती संस्था हैं। जंगम तीर्थ हैं। प्रतिभाशाली हैं। सभी को साथ लेकर चलने में उन्हें हर्ष होता है। जब वे दिल्ली से दक्षिण की ओर विहार करने के लिए तत्पर हुए तो हमने उनसे कहा-आचार्य श्री ! हमारे मन में एक इच्छा है कि जैसे सबने मिलकर भ० महावीर का निर्वाणोत्सव मनाया, ठीक उसी प्रकार भगवान् पार्श्वनाथ का तपकल्याणक बड़े समारोह के साथ मनाया जाय। सभी सम्प्रदायों के आचार्य, मुनि, गृहस्थ इस कार्य में पूर्ण सहयोग प्रदान करेंगे। उन्होंने इस प्रकार का विशेष आयोजन होने पर पुन: दिल्ली आने की स्वीकृति दी। हमारी श्री जिनेन्द्र देव से प्रार्थना है कि वे दीर्घायु हों और जिन शासन का सदैव उद्योत करते रहें। उनके पदचिह्नों पर अन्य मुनिराज चलते रहें जिससे जैनधर्म की प्रभावना होती रहे। विश्व में अहिंसात्मक भावनाओं का प्रचार हो। जगत् में सुख-शान्ति की वृद्धि हो। आचार्यरत्न श्री देशभूषण जी महाराज अभिनन्दन ग्रन्थ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.012045
Book TitleDeshbhushanji Aacharya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorR C Gupta
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year1987
Total Pages1766
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size56 MB
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