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________________ आचार्य रत्न की ऋद्धि-सिद्धि का दक्षिण में प्रतीक कोथली का भव्य पंचकल्याणक और मंदिर-प्रतिष्ठापन है तो उत्तर में जयपुर में श्री पार्श्वनाथ चूलगिरि क्षेत्र , जो स्वतः ही विकसित हो रहा है। यहां जंगल में मंगल हुआ है। गुरुदेव ने इन कार्यों में मुझे भी संलग्न रखा है। चाहे मंदिर-निर्माण हो, चाहे मूर्ति-प्रतिष्ठा हो या साहित्य-प्रकाशन हो, इन सभी में आपने मुझे सुयोग्य समझ कर धन एकत्र कराने और कार्य का संयोजन व निष्पादन करने का भार देकर पुण्य प्राप्त करने का अवसर दिया है। आपकी आज्ञानुकूल मैंने उत्तम कार्य के लिए धन सहायता कराना अपना अहोभाग्य मानकर लक्षांतर रुपये का योगदान कराया है। वर्तमान में भी मैं विगत १०-११ वर्षों से जयपुर में श्रीपार्श्वनाथ चूलगिरि पर रह कर कार्य की प्रगति का मार्गदर्शन और अवलोकन कर रही हूं। आचार्य श्री के आशीर्वाद से यहां अनेक कठिनाइयों और बाधाओं के उपरान्त भी कार्य कराने में सफलता मिल रही है। आचार्यरत्न १०८ श्री देशभूषण जी महाराज के मस्तिष्क मे इस अतिशय क्षेत्र के निर्माण कराने का विचार आज से लगभग २० वर्ष पहले आया था। जिस वर्ष जयपुर निवासियों के अनुरोध पर आचार्य श्री राणा जी की नशिया में चातुर्मास के लिए पधारे थे, तो उस समय वहाँ के पहाड़ों के प्राकृतिक सौंदर्य एवं साधुओं की तपश्चर्या इत्यादि को दृष्टिगत करते हुए आचार्य महाराज के मन में यह विचार आया कि पहाड़ पर ऐसी रमणीक तपोभूमि बनानी चाहिए, जिससे विभिन्न स्थानों से पधारे साधु एवं अन्य त्यागीगण यहाँ आकर अपनी साधना को निरन्तर विकसित कर सकें। प्रारम्भ में आचार्यश्री ने जैन धर्म के आदिप्रवर्तक भगवान् ऋषभदेव के चरणों की स्थापना कराई। भगवान् के चरणों की स्थापना करते समय इस प्रकार के विचार महाराज के मन में आये कि इस क्षेत्र का उद्धार होना चाहिए और उन्होंने परिकल्पना की कि उत्तर भारत में ही श्री सम्मेदशिखर जी का लघु संस्करण धर्मानुरागियों की सुविधा के लिए बनाया जाए । इसी योजना को साकार करने के लिए महाराज श्री के प्रयास से थोड़े ही समय में वहां पर चौबीसों तीर्थंकरों की २४ टोंकों तथा मनोज्ञ मूर्तियों के निर्माण हुए। विशेष रूप से निम्नलिखित तीन मूर्तियों की स्थापना की परियोजना बनाई गई (1) भगवान् पार्श्वनाथ की काले पाषाण की 6 फुट ऊंची (2) भगवान् महावीर की पद्मासन, लगभग 3 फुट ऊंची (3) भगवान् नेमिनाथ की पद्मासन, लगभग 32 फुट ऊंची चलगिरि पर साधुओं के निवास के लिए अनेक गुफाओं का निर्माण किया गया। प्रकृति की रम्य गोद में बैठकर लगभग ५०० साधु वहां उपासना इत्यादि कर सकते हैं । श्रावक समुदाय की सुविधाओं का भी पूरा-पूरा ध्यान रखा गया है। लगभग २००० व्यक्ति वहां किसी भी समय जाकर ठहर सकते हैं । जिस समय खानिया जी की पंच-कल्याणक प्रतिष्ठा हो रही थी। उस समय जयपुर के राजघराने को भी वहां उत्सव में भाग लेते हुए देखा गया । राजमाता सुश्री गायत्री देवी समारोह में पधारों। उस अवसर पर लगभग २,००,००० जैन-अजैन भी उत्सव में भाग लेने के लिए वहां एकत्र हुए थे। आचार्यश्री को खानिया जी के निर्माण में विशेष रुचि थी । इसीलिए वे वहां की परियोजनाओं का स्वयं निरीक्षण किया करते थे और समय-समय पर आयोजकों का मार्ग-दर्शन किया करते थे। क्षेत्र में काम करने वाले मजदूरों-स्त्रियों, पुरुषों और उनके बच्चों की सुख-सुविधा का महाराज श्री पूरा ध्यान रखा करते थे। महाराज श्री मजदूरों की समस्याओं में भी गहरी रुचि लिया करते थे और उनके समुचित पालन-पोषण एवं हितों के संरक्षण एवं उनके परिवार के समुचित विकास का पूरा-पूरा ध्यान रखते थे। प्रायः वे सामायिक के उपरान्त मजदूरों के मध्य जाया करते थे और उनके भोजन इत्यादि की व्यवस्था में विशेष रुचि लिया करते थे। मजदूरों के आहार का निरीक्षण करने के उपरान्त जब उन्होने यह अनुभव किया कि इनके आहार में पोषक तत्त्व कम मात्रा में हैं तो उन्होंने आयोजकों को आदेश दिया कि खानिया जी में काम करने वाले सभी स्त्री-पुरुष मजदूरों के लिए भोजन की विशेष व्यवस्था की जाए। उन्होने आदेश दिया कि इनके लिए तेल, मसाले, घी एवं अन्य खाद्य पदार्थ वहां एकत्र किए जाएं और उन्हें रोज मजदूरों में वितरित किया जाए। साथ ही साथ फल एवं चाय आदि की सुविधा का भी वह विशेष ध्यान रखा करते थे । खानिया जी में काम करने वाले मजदूरों को यह अनुभव होता था कि हमारे साथ हमारे भगवान् एवं मार्गदर्शक स्वयं चल रहे हैं। इसीलिए उन्होंने भी कठोर परिश्रम कर अतिशय क्षेत्र खानिया जी के निर्माण में अभूतपूर्व सहयोग किया। ७८ आचार्यरत्न श्री वेशभूषण जी महाराज अभिनन्दन अन्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012045
Book TitleDeshbhushanji Aacharya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorR C Gupta
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year1987
Total Pages1766
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size56 MB
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