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________________ 'आस्था का अर्घ्य के अन्तर्गत साहित्यकारों, राजनेताओं, केन्द्रीय मंत्रियों, राज्यपालों, संसद् सदस्यों, मुनिगणों एवं समाज के प्रतिष्ठित धावकों द्वारा आचार्यश्री के प्रति शुभकामनाएं व्यक्त की गई हैं। 'कालजयी व्यक्तित्व' के अन्तर्गत इस महान साधक के दिव्य व्यक्तित्व, उनके जीवन की अलौकिक घटनाओं, उनकी प्रेरणा से निर्मित विभिन्न तीर्थक्षेत्रों तथा मानव-कल्याण सम्बन्धी योजनाओं की जानकारी, उनके द्वारा सम्पन्न विभिन्न चातुर्मासों आदि का उल्लेख किया गया है। 'रसवन्तिका' के अन्तर्गत पालि, प्राकृत, अपभ्रंश, शौरसेनी, संस्कृत, हिन्दी तथा उर्दू भाषा में देश के अनेक रससिद्ध कवियों द्वारा आचार्यश्री की गुण- गरिमा का काव्यमय उल्लेख किया गया है। 'अमृत कण' में आचार्यरत्न श्री देशभूषण जी द्वारा देश के विभिन्न भागों में दिये गए प्रवचनों में से तथा उनके द्वारा सम्पादित, लिखित महत्त्वपूर्ण धर्म-प्रन्थों में से चुने हुए अंश प्रस्तुत किये गए हैं और 'सृजन संकल्प' खंड में आचार्यश्री के साहित्यिक अवदान का मूल्यांकन किया गया है। 1 इस अभिनन्दन ग्रन्थ का दूसरा खंड 'चिन्तन' के रूप में है जिसे सात उपखंडों में विभाजित किया गया है -- ( १ ) जैन दर्शन मीमांसा, (२) जैन तत्व चिन्तन आधुनिक सन्दर्भ (२) जैन प्राप्य विद्याएं, (४) जैन साहित्यानुशीलन (2) जैन धर्म एवं आचार, (६) जैन इतिहास, कला और संस्कृति, (७) मोम्मटेश दिग्दर्शन इन खंडों में देश-विदेश के शीर्षस्थ विद्वानों विभिन्न विश्वविद्यालयों के कुलपतियों, विभागाध्यक्ष, आचायों, विद्या विशेषज्ञों, अनुसन्धित्सुओं एवं जैन पीठाधीश्वरों के शोधपूर्ण निबन्ध समाकलित किये गए हैं। यह अभिनन्दन ग्रन्थ वास्तव में जैन धर्म, दर्शन, कला, संस्कृति, इतिहास, साहित्य आदि के सन्दर्भ में विश्वकोश के समान महत्त्वपूर्ण बन गया है और आचार्य रत्न श्री देशभूषण जी के व्यक्तित्व की अनेक चमत्कारी घटनाओं के प्रामाणिक उल्लेख, उनके सम्पर्क में आने वाले मुनियों और श्रावकों के आस्थामय वचनों और आचार्यरत्न के धार्मिक प्रवचनों का सार-संक्षेप व अमृत तुल्य सूक्ति-वचनों के समाहार से इसमें जैन समाज को ही नहीं, सम्पूर्ण मानव जाति को दिशा देने की सामर्थ्य है । प्रस्तुत 'ग्रंथ के अभिनन्दनीय महापुरुष आचार्यरत्न श्री देशभूषण जी महाराज के चरणों में भक्ति का अर्घ्य समर्पित करते समय लोकमंगल की पृष्ठभूमि में जैन धर्म के गौरवशाली अतीत एवं महान् परम्परा का स्वर्णिम इतिहास मेरी आँखों में तैर रहा था। अपनी इस कल्पना को मूर्त रूप देने के लिए मैंने महानगरी दिल्ली की साहित्यिक एवं सांस्कृतिक गतिविधियों के प्राण, सुधी समालोचक, सहृदय कवि, साहित्यकार एवं पी० जी० डी० ए० वी० सांध्य कालेज (दिल्ली विश्वविद्यालय) के वरिष्ठ प्राध्यापक डॉ० रमेशचन्द्र गुप्त से सम्पादन कार्य के सम्बन्ध में आवश्यक विचार-विमर्श किया। धर्मप्राण डॉ० रमेशचन्द्र गुप्त ने इस सारस्वत अनुष्ठान के लिए अपनी ओर से भरपूर सहयोग देना सहर्ष स्वीकार कर लिया। उनके द्वारा दिये गए आश्वासन के उपरान्त पुराणपुरुष, परमाराध्य, आद्य तीर्थंकर भगवान् ऋषभदेव और उनकी गौरवशाली परम्परा के चरणों में आस्था का दीप प्रज्ज्वलित करने की भावना से श्री १०८ आचार्यरत्न देशभूषण जी महाराज न्यास, दिल्ली के पदाधिकारियों एवं सदस्यों ने दिनांक ३१ अगस्त १६८० को आचार्यचरण के प्रति आस्थाशील श्रावकों की एक विशेष बैठक बुलाई जिसमें अभिनन्दन ग्रन्थ समिति का विधिवत् गठन किया गया। समिति की साधारण सभा द्वारा अनुमोदित इस मंगल अनुष्ठान को मूर्त रूप देने के लिए द्रुतगति से कार्य का शुभारम्भ कर दिया गया। आवश्यक प्रबन्ध व्यवस्था एवं साधनों के निरन्तर अभाव में भी समिति ने धैर्यपूर्वक अपने दायित्व का कुशलतापूर्वक निर्वाह कर एक अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत किया है। रविवार दिनांक २६ अक्तूबर १६८० को आयोजित बैठक में समिति का संविधान स्वीकृत किया गया और प्रस्तावित अभिनन्दन ग्रन्थ की योजना की संस्तुति के उपरान्त श्री सुमतप्रसाद जैन (अवैतनिक महामंत्री) एवं प्रधान सम्पादक डॉ० रमेशचन्द्र गुप्त को यह अधिकार दिया गया कि वे परामर्शदाता मंडल तथा सम्पादक मंडल का स्वयं ही गठन कर लें । कार्यारम्भ के समय इस अभिनन्दन ग्रन्थ को ११०० पृष्ठों में पूर्ण करने का विचार किया गया था, किन्तु देश-विदेश के विद्वानों और आस्थाशील श्रावकों द्वारा इस दिशा में अत्यधिक उत्साह दिखाने के कारण वर्तमान में यह लगभग २००० पृष्ठों का कलेवर ग्रहण कर गया है। इसके सम्पादन-मंडल में विभिन्न विषयों के अधिकारी विद्वानों और जैन विद्या के अध्ययन-अध्यापन में समर्पित मनीषियों डॉ० रमेशचन्द्र गुप्त (पी० जी० डी० ए० बी० सांध्य कालेज, डॉ० मोहनचंद (रामजस कालेज), डॉ० दामोदर शास्त्री (श्री लालबहादुर शास्त्री संस्कृत विद्यापीठ), डॉ० पुष्पा गुप्ता (लक्ष्मीबाई कालेज), डॉ० महेन्द्र कुमार 'निर्दोष' ( हंसराज कालेज), प्रो० पी० सी० जैन (इंडियन इंस्टीट्यूट आफ टैक्नोलोजी, बम्बई), श्री बिशनस्वरूप रुस्तगी (रिसर्च स्कॉलर, संस्कृत विभाग, दिल्ली विश्वविद्यालय), श्री जगबीर कौशिक ( रिसर्च स्कॉलर, बौद्ध दर्शन विभाग, दिल्ली विश्वविद्यालय) का सहयोग प्राप्त हुआ है। डॉ० महेन्द्र कुमार को 'अमृत कण', डॉ० मोहनचन्द को 'जैन तत्त्व चिन्तन : आधुनिक सन्दर्भ' श्री विशनस्वरूप रुस्तगी को 'जैन दर्शन मीमांसा' प्रो० पद्मचन्द जैन को 'जैन प्राच्य विद्याएं', डॉ० पुष्पा गुप्ता को 'जैन साहित्यानुशीलन', डॉ० दामोदर शास्त्री को 'जैन धर्म एवं आचार' और श्री जगबीर कौशिक को 'गोम्मटेश दिग्दर्शन' शीर्षक खण्डों का सम्पादन करने का दायित्व दिया गया था जिसे उन्होंने पूर्ण मनोयोग से सम्पन्न किया। ' आस्था का अर्घ्य', 'कालजयी व्यक्तित्व', 'रसवन्तिका', 'सृजन संकल्प' का सम्पादन 3 आचार्य रत्न श्री देशभूषण जी महाराज अभिनन्दन ग्रन्थ ६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012045
Book TitleDeshbhushanji Aacharya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorR C Gupta
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year1987
Total Pages1766
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size56 MB
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