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________________ भारत गौरव क्षुल्लक सन्मतिसागर 'ज्ञानानन्द' जी 1 प्रातःकाल का समय था । बालारुण अपनी स्वर्णिम किरणें पृथ्वी पर बिखेरता हुआ अपनी गति से उभरता हुआ आ रहा था। इसी बीच दर्शन किये आचार्य यो १०० देशभूषण जी महाराज के दायें-बायें सुशोभित थे आचार्य विमलसागर जी महाराज एवं पूज्य उपाध्याय भरतसागर जी महाराज तथा गणधर मुनि कुंथूसागर जी महाराज एवं पूज्या आर्यिका विजयामती माता जी आदि अनेकों आर्यिका माताएँ, क्षुल्लक क्षुल्लिकाएँ, अनेकों विद्वान् एवं असंख्य श्रावक-श्राविकाएँ आपके दर्शनों का प्रथम बार सौभाग्य हमें सन् १९७४ में दिल्ली से कोथली की ओर विहार करते समय जयपुर नगरी में प्राप्त हुआ था। उसी समय आपके करकमलों द्वारा 'मुक्ति पथ की ओर' पुस्तक का विमोचन हुआ था । विमोचन के समय दिए गए आपके आशीर्वचन प्रेरक सिद्ध हुए हैं। उसी समय हमने आपसे मुनि निवास के लिए स्थान की निर्मिति हेतु आशीर्वाद लिया। कुछ ही क्षणों में दातारों की कतार लग गई। फलतः आज पार्श्वनाथ भवन के नाम से जयपुर नगर में मुनि-निवास शोभा पा रहा है। जितने भी मुनि त्यागी, वृतिगण पधार रहे हैं, सभी वहां आनन्द से धर्म ध्यान करते हैं । यह जानकर परम प्रसन्नता हुई कि ऐसे भारत गौरव, सम्यक्त्व चूड़ामणि, आचार्य शिरोमणि, वयोवृद्ध, श्री १०८ आचार्यरत्न देशभूषण जी महाराज का अभिनन्दन ग्रन्थ प्रकाशित किया जा रहा है। पूज्य आचार्य श्री की गौरव गाथा अखिल विश्व वसुन्धरा पर प्रसारित है । आपके यशगान घर-घर में जन-जन के मुख से सुनने को मिलते हैं । आपने अपने जीवन में देश एवं समाज का जो उपकार किया है, उसके लिए सभी नतमस्तक हैं। श्री विद्यानन्द जी जैसे विश्वधर्म प्रवक्ता एवं अन्य अनेक मुनिराज आपकी ही देन हैं। कर्नाटक में शांतिगिरि, राजस्थान में चूलगिरि जैसे पवित्र अनेकों क्षेत्रों का निर्माण आपके उपदेशों का ही प्रभाव है । अबोध छात्रों में धार्मिक एवं लौकिक ज्ञानहेतु आपने अनेकों कालेज, विद्यालय एवं गुरुकुलों की स्थापना कराकर समाज का विशेष उपकार किया है । आपके निमित्त से सैकड़ों ग्रन्थों का निर्माण हुआ है। ऐसे स्वन्परोपकारी आचार्य को के दीर्घ जीवन की कामना करते हुए आपके चरण-कमलों में श्रद्धा-सुमन शुभकामना सहित समर्पित है। संत शील के भूषण हे गुरु तेरे गुण गौरव की गाथा, मैं पामर क्या लिख पाऊंगा । जैसे चांद चमकता आकाश बीच, मैं बौना क्या छू पाऊंगा !! आचार्य परमेष्ठी पद को प्राप्त करके आप विशाल चतुविध संघ का नेतृत्व कर रहे हैं। आपने सारे विश्व में जैन धर्म का झंडा लहराया और लहराते चले जा रहे हैं। आपके द्वारा सर्वत्र धर्म-प्रभावना हो रही है। आप सिंह के समान दिगम्बर मुद्रा धारण कर पैदल विहार कर घर-घर में आत्मज्ञान का दीपक जलाकर मिथ्यात्व रूपी अन्धकार को दूर करने में प्रयत्नशील हैं। आपने अपनी सबल लेखनी एवं धर्मोपदेशों के द्वारा अनवरत धर्म-भावना की है तथा आपके द्वारा दीक्षित एलावा मुनि श्री विद्यानन्द जी जैसे परम तपस्वी भी सारे विश्व के प्राणियों एवं तीन लोक के प्राणियों का कल्याण करने में जुटे हुए हैं। आप वात्सल्य मूर्ति पर शान्त निर्भीक . साधुराज हैं। आपमें अत्यन्त गम्भीरता है । पूर्व आर्ष परम्परा के संरक्षण में आप सहयोग दे रहे हैं। आप भारत देश की विभूति हैं । आपके द्वारा धर्म का उद्योत हो रहा है । क्षुल्लक कामविजय नन्दी जी आपके गुण 'अनिर्वचनीय हैं | आगम रक्षा की भावना आप में कूट-कूट कर भरी हुई है । आपके द्वारा अनेक भव्य जीवों को आत्मसाधना का मार्ग प्राप्त हुआ है। वीतराग वाणी को जीवन में साकार रूप देने वाले, आर्त और रौद्र ध्यान से सदा दूर रहने वाले, धर्म ध्यान एवं शुक्लध्यान की भावना भाने वाले, स्वपर कल्याण में तलर रहने वाले, प्रेरणासद व्यक्तित्व के धनी, दिव्य ज्योति, करुणा के सागर, प्रवचनपटु, शान्त स्वभावी, भद्र परिणामी, ज्ञान-ध्यान तप में विरत, अद्वितीय सन्त शील के भूषण, विद्या के भूषण, भारत का गौरव श्री देशभूषण जी महाराज के पावन चरणों में कोटि-कोटि नमन करते हुए अपनी भावाजवि समर्पित करता हूं। ७६ आचार्यरन की देशभूषण जी महाराज अभिनन्दन ग्रन्थ Jain Education International For Private & Personal Use Only כ www.jainelibrary.org
SR No.012045
Book TitleDeshbhushanji Aacharya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorR C Gupta
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year1987
Total Pages1766
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size56 MB
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