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अलौकिक जीवन
आर्यिका अभयमती जी
लोकप्रसिद्ध आचार्यरत्न देशभूषण जी को कौन नहीं जानता-जिनकी गौरव-गाथा यशःपताका अखिल भारत भू पर व्याप्त हो रही है। यह कौन जानता था कि कर्नाटक प्रान्त के कोथली ग्राम में जन्म लेकर यह आत्मा श्रमण संस्कृति के रूप में आदर्श बनकर जैन संस्कृति का देश के कोने-कोने में प्रचार करेगी। वास्तव में आपका जीवन अलौकिक है। आपके द्वारा अनेक स्थानों पर पाठशालाओं, विद्यालयों तथा गुरुकुलों की स्थापना कराई जा चुकी है जिनके माध्यम से हजारों छात्र अध्ययन में तल्लीन होकर धर्म के मर्म को पहचान रहे हैं। आपके द्वारा लिखित गद्य-पद्य रूप में सैकड़ों महान ग्रन्थ प्राणियों को आत्मविकास एवं तत्त्वज्ञान कराने में निमित्त रूप हैं । जितने रूप में विश्व प्राणियों का आपके द्वारा उद्धार हुआ एवं वर्तमान में हो रहा है उसे समाज कभी भुला नहीं सकता। उत्तरप्रदेश के अतिशय क्षेत्र अयोध्या जी में जिन बिम्ब, पंचकल्याणक प्रतिष्ठा एवं गुरुकुल की स्थापना से जो आज तक उत्तरोत्तर उन्नति हो रही है, वह सब आप ही का सत्प्रयास है। जयपुर खानिया चलगिरि जहां पर एक दिन जंगल-सा दिख रहा था, आज वहीं मंगलमय अतिशय तीर्थ रूप में जो दिख रहा है वह भी आपकी पावन देन है। भविष्य में "श्री देशभूषण नगर" बसेगा जिसमें श्रेष्ठ गुरुकुल आदि तथा सुन्दर-सुन्दर बगीचों का आवास रहेगा। वर्तमान में पूज्य एलाचार्य विद्यानन्द जी व आर्यिकारत्न ज्ञानमती जी द्वारा भारत में जैन धर्म का जो डंका बज रहा है, वह भी प्रथम रूप में आपकी ही देन है। अभी तक आपने सैकड़ों दीक्षाएँ देकर शिष्यों को सच्चे मोक्ष मार्ग में लगाया है। जिस प्रकार किसी से कोई पूछे कि भाई शरीर में रोम कितने हैं, आकाश में तारे कितने हैं, वह व्यक्ति किंकर्तव्यविमूढ़ होकर उत्तर देने से असमर्थ हो जाता है, उसी प्रकार हम जैसे प्राणी द्वारा सद्गुरुओं के गुणों का वर्णन करना मानो सूर्य के आगे दीपक दिखाना है। आपकी महिमा अपरंपार है। आपके द्वारा जो साहित्य का सृजन हुआ है, वह अमूल्य है। अहिंसावाद, अनेकांतवाद एवं सत्यं शिवं को लिये हुए आपकी सरस ओजस्वी वाणी द्वारा जनता मंत्रमुग्ध हो जाती है। एक समय वह था जब उत्तरप्रदेश जिला बाराबंकी, टिकैत नगर में आपका चातुर्मास हुआ। उस समय प्रायः सारा समाज अज्ञान रूपी अन्धकार में डुबा हुआ था- आपके द्वारा धर्मामृत का पान करके समाज को नई चेतना मिली । उसी के फलस्वरूप "मैना सती" आज आर्यिकारत्न ज्ञानमती जी के रूप में प्रसिद्ध हैं। मैंने सोचा जब उन्होंने कीचड़ में पग नहीं धरा तो मैं क्यों कीचड़ में पग धरू? अतः संसार की असारता का विचार कर एवं विरागता प्राप्त कर सभी गृहजंजाल से मुक्त होकर स्त्री-पर्याय को छेदने के लिये तथा संसार के बन्धन से छुटकारा पाने के लिये अमूल्य संयम तप को स्वीकार किया। अन्त में यही आशा करती हूं कि हमारा संयम और चारित्र हमेशा अटल दृढ़ रहे। हमारे अन्दर वह आत्मज्योति जगे जिसके द्वारा हम अपने जीवन को सफल कर सकें एवं सदैव हमारे उपर आचार्यश्री का शुभाशीर्वाद बना रहे एवं सद्गुरुओं के प्रति सदैव हमारी भक्ति बनी रहे ।
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पावन धर्मतीर्थ
क्षुल्लक जयकीर्ति जी महाराज
(अक्कल कोट) आचार्यरत्न परम पावन धर्मतीर्थ हैं। अनन्त गुणों के सागर हैं । धर्मवात्सल्य के धारक हैं । धीर गम्भीर करुणानिधि हैं। सबके हृदयों में श्रद्धारूप से विराजमान हैं । कर्मशत्रु के नाशक हैं । ज्ञान-सूर्य समान हैं। गर्वरहित हैं। निरभिमानी बालब्रह्मचारी परम तपस्वी गुणनिधि हैं । रत्नत्रयधारी मोक्षमार्गदर्शक हैं । आचार्य परमेष्ठि के सभी गुणधारी हैं । ऐसे परम गुरुओं की आयु आरोग्य समृद्धि-वृद्धि हो और वे सभी जीवों का परम कल्याण करें। ऐसी भावना वाले आचार्यरत्न श्री देशभूषण जी महाराज के चरण कमल को त्रिवार नमोऽस्तु करके भाव सहित आदराञ्जलि अर्पण करता हूं।
___ समिति ने आचार्यरत्न श्री देशभूषण जी महाराज की प्रतिष्ठा में जो अभिनन्दन ग्रन्थ निकालने का प्रयास किया है और तन मन धन से सद्कार्य की प्रेरणा को जागृत किया है, उसके लिए अनेकशः धन्यवाद । कालजयी व्यक्तित्व
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