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सन्त-रत्न
सन् १९७४ में श्रमण भगवान् महावीर के २५०० वें निर्वाण महोत्सव का भव्य आयोजन भारत के विविध अंचलों में उल्लास के साथ चल रहा था। संगठन की ऐसी सुनहरी लहर लहराई थी कि जन-जन के अन्तर्मानस में एक ही विचार तरंगित हो रहा था - हम सभी एक हैं, और हमें मिल-जुल कर जैनधर्म की विजय बैजयन्ती फहरानी है। गुरुदेव अध्यात्मयोगी, राजस्थान केसरी, - उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि जी महाराज अपने शिष्य समुदाय के साथ अहमदाबाद का यशस्वी वर्षावास सम्पन्न कर बम्बई पधारे । इधर दिगम्बर समाज के मूर्धन्य आचार्य देशभूषण महाराज देहली का वर्षावास सम्पन्न कर बम्बई पधारे श्वेताम्बर मूर्तिपूजक समाज के आचार्य श्री धर्मसूरि जी बम्बई में ही अवस्थित थे। भारत जैन महामण्डल की ओर से तीनों समाज के प्रतिनिधि मुनिप्रवरों का भात बाजार में प्रवचन का आयोजन था। हजारों की जनमेदिनी इस मधुर त्रिवेणी संगम के दर्शन हेतु ललक उठी। तीनों ने जैन धर्म की उन्नति के लिये विविध पहलुओं पर प्रकाश डाला। तीनों अधिकारी मुनि जिस स्नेह व सद्भावना के साथ मिले और वार्तालाप किया, उसे देखकर जनमानस आनन्द-विभोर हो उठा। मैंने अनुभव किया कि आचार्य देशभूषण जी महाराज एक पुरानी परम्परा के सन्तरत्न होने पर भी उन में सहज स्नेह है । गुणों के प्रति उनमें अनुराग है ।
श्री देवेन्द्र मुनि जी शास्त्री
जब मैंने आचार्यप्रवर को अपना भगवान् महावीर एक अनुशीलन ग्रन्थ समर्पित किया तो वे मम हो उठे और उनकी हृतन्त्री के तार झनझना उठे। उन्होंने कहा - "यह ग्रन्थ बड़ा अद्भुत है, मैंने इसकी पहले ही प्रशंसा सुन रखी है, श्वेताम्बर और दिगम्बर परम्परा के आलोक में लिखा गया यह ग्रन्थ एकता का सच्चा प्रतीक है । मैं ऐसे उत्कृष्ट साहित्य के लिये तुम्हें साधुवाद देता हूं।"
मैं देखता ही रह गया। दिसम्बर परम्परा के आचार्य प्रायः पारंपरिक मान्यताओं की दृष्टि से अत्यधिक कट्टर होते हैं, पर देशभूषण जी महाराज में मैंने इस का अपवाद पाया। श्रद्धय गुरुदेव श्री के साथ भी उन्होंने जिस स्नेह का परिचय दिया, वह कभी भी विस्मृत नहीं किया जा सकता ।
महावीर जयन्ती का भव्य आयोजन था। चौपाटी के विशाल प्राङ्गण में बम्बई महानगरी के सभी प्रतिष्ठित व्यक्ति उपस्थित थे । लगभग ६०-७० हजार की जनमेदिनी उस भव्य आयोजन में सम्मिलित थी । बम्बई में विराजित सभी पूज्य मुनिवर व महासती वृन्द भी इस भव्य आयोजन में चार चांद लगाने के लिये पधारे थे । एक मंच पर पहली बार सभी सम्प्रदाय के प्रतिनिधियों को देखकर ऐसा लग रहा था कि साक्षात् महावीर का ही समोसरण हो । मैंने देखा कि सभी के मन में एक ही विचार अंगड़ाइयां ले रहा था कि हम अतीत काल में सम्प्रदाय की मान्यता को लेकर खूब लड़े, हमने अपनी शक्ति का अत्यधिक अपव्यय किया है, अब हमें एक बनकर विश्व को यह दिखा देना है कि जैन धर्म के उदात्त सिद्धान्त विश्व के लिये वरदान के रूप में हैं ।
मैंने दोनों प्रवचनों में और दोनों दिन के स्वल्प परिचय में ही यह अनुभव किया कि आज के युग में समन्वयवादी विशाल दृष्टिकोण वाले आचार्यों की ही आवश्यकता है जो अपने नियमोपनियम का पालन करते हुए एकता के वातावरण का निर्माण कर
- सकें ।
आचार्य देशभूषण जी के स्वल्प परिचय ने मन में एक स्नेह की ज्योति जाग्रत की है । मुझे यह जानकर हार्दिक आह्लाद है कि आचार्यप्रवर को अभिनन्दन ग्रन्थ समर्पित किया जा रहा है जो उनके तेजस्वी व्यक्तित्व के अनुरूप है । मैं इन पुण्य क्षणों में यही मंगल कामना करता हूं कि वे पूर्ण स्वस्थ रहकर संयम की साधना करते हुए जैन समाज का मार्गदर्शन करते रहें ।
कालजयी व्यक्तित्व
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