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________________ देवी की पूजा होती रही है । 'पद्मावती देवी - लब्ध- वर प्रासाद' जैसे विशेषण मिलते हैं। कुछ लोग इसकी मान्यता द्वितीय शताब्दी से मानते हैं, परन्तु इसके व्यापक प्रभाव के प्रमाण प्रायः दसवीं से १५वीं शती तक के मिलते हैं। अनेक ग्रन्थ, माहात्म्य और लोककथाएँ इस देवी का उल्लेख करते हैं। ग्यारहवीं शती में मल्लिषेण द्वारा रचित 'भैरवपद्मावती कल्प' प्रसिद्ध है। मन्त्रविद्या और सम्जसमुदाय की विधि द्वारा इन देवियों की पूजा होती थी। परवर्ती काल की बहुत सारी प्रतिमाएँ इस बात को प्रमाणित करती हैं पद्मावती देवी के स्वतन्त्र रूप में मन्दिर भी बनाये गये हैं जिनमें नागदा का प्रसिद्ध मन्दिर भी है । I प्रायः यह देवी पार्श्वनाथ जी के साथ ही पायी जाती है। बारहवीं शताब्दी की पाषाणमूर्ति बरा में पायी गई है। इसी प्रकार की एक धातु मूर्ति जयपुर के सिरमौरिया मन्दिर में स्थित है । इसका काल १६०० ई० बतलाया जाता है। देवी के दोनों हाथों में शिशु है आर मुकुट पर पार्श्वनाथ की प्रतिमा बनी हुई है। जयपुर के दूसरे मन्दिर में पद्मावती को पाषाण मूर्तिस्थापित है। देवी की चार भुजाएँ है, शान्तमुद्रा है एवं चारों भुजाओं में चार पदार्थ हैं। तमिलनाडु में प्राप्त प्रतिमाओं में इनकी मूर्ति भी मिली है। एक चरण कमल पर स्थित, दूसरा नीचे की ओर लटका हुआ है। सिर पर सर्पकणों का मुकुट है। चार भुजाएँ हैं, एक में सर्प, दूसरे में फल, एक में गदा तथा एक से दूसरे का स्पर्श है। दो परिचारिकाएँ भी सेवारत हैं। पद्मावती देवी के साथ सर्प का सम्बन्ध सदा से रहा है तथा वह पातालवासिनी हैं। मूर्तिकला में सर्प तथा कमल दोनों ही सुस्पष्टतया अंकित किये जाते रहे हैं। बंगाल में मनसा देवी सर्पों की देवी के रूप में पूजी जाती हैं। पर ये दोनों देवी एक ही हैं अथवा मिन्न-२ हैं ऐसा कोई निर्णय अभी नहीं किया जा सकता है। महाकाली - श्वेताम्बर सम्प्रदाय में यह देवी कमलों पर स्थित है। चार भुजाओं वाली है तथा वरदमुद्रा, अंकुश, पाश और कमल धारण किये हुए है। यह यक्षी भी है। विद्यादेवी के रूप में प्रसिद्ध है तथा मन्दा देवी है। विद्यादेवी के रूप में गुर्गे पर बैठी हुई है तथा वज्र और कमल हाथ में लिए हुए हैं ।" इस देवी का नाम दिगम्बर सम्प्रदाय में वज्रशृंखला भी है। हंस इसका वाहन है तथा इसकी भुजाओं में सर्पपाश, एवं फल सुशोभित हैं' - यह भी यक्षिणी तथा विद्यादेवी दोनों हैं । श्वेताम्बर पन्थ में इसकी काली, महाकाली, कालिका आदि नामों से पूजा करते हैं । देवी का रंग काला है, कमल पर स्थित हैं । तन्त्रों की देवी काली भी इसी प्रकार की है परन्तु वह कमलासना नहीं है । * चक्रेश्वरी - श्वेताम्बर तथा दिगम्बर दोनों सम्प्रदायों में देवी को चत्रधारिणी एवं गरुडवाहिनी बतलाया गया है। श्वेताम्बर सम्प्रदाय के अनुसार देवी अष्ट भुजा है तथा बाण, गदा, धनुष, वस्त्र, शूल, चक्र एवं वरद मुद्रा के चिह्न हैं । दिगम्बर सम्प्रदाय में देवी की या तो चार भुजाओं वाली प्रतिमाएँ हैं या द्वादश भुजाएं होती है। द्वादशभुजा देवी की आठ भुजाओं में चक्र विद्यमान है। यह देवी पहले तीर्थंकर ऋषभदेव की शासन देवता है । गरुड एवं चक्र आदि लक्षणों से एवं नाम से भी यह देवी हिन्दुओं की देवी वैष्णवी से या तो पर्याप्त समानता रखती है या उससे बहुत अधिक प्रभावित है। कुछ मूर्तिकारों ने हाथों में पाश अंकित करके इस देवी को यक्षी परिवार की देवता माना है । परन्तु चक्र ही इसका मुख्य लक्षण है । बहुत सारी प्रतिमाएं स्वतन्त्ररूप में या तीर्थंकर के साथ प्राप्त होती हैं । यथा — देवगढ़ तथा मथुरा से प्राप्त मूर्ति दस भुजाओं वाली है। उदयगिरि (उड़ीसा) से प्राप्त प्रतिमा द्वादश भुजा है ।" १५६ १. २. ३. ४. ५. तथा पद्मावती देवी कुटोरवाहना। स्वर्णवर्णा पद्मपाशभृद्दक्षिणकरद्वया । फलांकुशधराभ्यां च वामदोर्भ्यां विराजिता ॥ तथोत्पन्ना महाकाली स्वर्णहुक् पद्मवाहना । दधाना दक्षिणो बाहुः सदा वरदफाशिनी । मालिङ्गांकुरी परी बाहू च विभ्रतो हेमचन्द्र वरदा हंसमारूढा देवता वज्रशृंखला । नागपाशाक्षसूत्रफलहस्ता चतुर्भुजा ॥ ( प्रतिष्ठासारसंग्रह) कालिकादेवी श्यामवर्णां पद्मासनां चतुर्भुजाम् । वरदपाथाधिष्ठितदक्षिणां नागाङ कुशान्वितवामकराम् ॥ (निर्वाण कलिका) जैन इकोनोग्राफी, पृ० -१४४४५. Jain Education International - माला - हेमचन्द्र For Private & Personal Use Only आचार्यरत्न श्री वेशभूषण जी महाराज अभिनन्दन पंच www.jainelibrary.org:
SR No.012045
Book TitleDeshbhushanji Aacharya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorR C Gupta
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year1987
Total Pages1766
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size56 MB
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