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________________ प्राचीन जैन स्थल भद्दिलपुर : ऐतिहासिकता डॉ० के० सी० जैन प्राचीन समय में भद्दिलपुर जैन धर्म का एक बड़ा केन्द्र रहा है। जैन अनुश्रुतियों के अनुसार यह दसवें जैन तीर्थंकर शीतलनाथ का जन्म स्थल था, और बाईसवें जैन तीर्थकर अरिष्टनेमि भी यहां आ चुके हैं। यह भी कहा जाता है कि चौबीसवें जैन तीर्थंकर महावीर ने भी यहां पर पांचवां चौमासा किया था। करीन चौथी सदी के लेखक संघदास गणि के ग्रंथ वासुदेव हिडि में उल्लेख मिलता है कि वासुदेव ने अभ्युमंत के साथ भद्दिलपुर नगर की यात्रा की जहां उसने राजकुमारी पुडा से विवाह किया। जैन पट्टावलियां एक मत से उल्लेख करती हैं कि मूल संघ के पहिले छब्बीस भट्टारकों की पीठ भद्दलपुर रही है। सत्ताईसवाँ भट्टारक महाकीर्ति भद्दलपुर में हुआ था किन्तु वह अपनी पीठ यहाँ से उज्जैन ले गया। भदिलपुर मलय राज्य की राजधानी रहा है। मलय २५ आर्य देशों में एक माना जाता था। भगवती सूत्र में सोलह महाजनपदों में भी इसे गिना जाता है । मलय देश के भद्दिलपुर की स्थिति विद्वान् अभी तक ठीक नहीं बतला सके हैं, और इसके बारे में उनके विभिन्न मत हैं। मूल संघ की चार प्रकाशित पट्टावलियों से पता चलता है कि भद्दलपुर मालवा में था, किन्तु ये इस स्थान की निश्चित स्थिति का उल्लेख नहीं करतीं । बहुत बाद की लिखी होने के कारण पट्टावलियों पर विश्वास भी नहीं किया जा सकता। प्राचीन साहित्य और अभिलेखों से भी मालवा में किसी प्राचीन स्थल का नाम भद्दलपुर होने का पता नहीं चलता है। इसके अतिरिक्त प्राचीन समय में मालवा मलय के नाम से भी नहीं जाना जाता था। ऐसा प्रतीत होता है कि पट्टावलियों के लेखकों ने भ्रम से मालवा को मलय मान लिया। प्रोफेसर जगदीश चन्द्र जैन का विचार है कि भद्दिलपुर की पहिचान बिहार में हजारीबाग जिले के भदिया ग्राम से की जानी चाहिए। प्राचीन समय में मलय देश बिहार में पटना के दक्षिण गया के दक्षिण-पश्चिम में स्थित था। यह विचार भी ठीक प्रतीत नहीं होता क्यों कि यह प्रदेश प्राचीन समय में मलय देश नहीं जाना जाता था। भदिया की पहिचान भद्दिलपुर से नहीं की जा सकती क्योंकि इसके लिए साहित्य और अभिलेख का कोई प्रमाण नहीं मिलता है। यह स्थान मूल संघ के प्राचीन भट्टारकों की पहली पीठ के रूप में भी नहीं रहा है। ऐसा प्रतीत होता है कि प्राचीन समय में जैन धर्म से संबन्धित भद्दिलपुर दक्षिण में स्थित था। यह मलय राज्य की राजधानी थी। चुकि मलय शब्द की उत्पत्ति द्रविड़ भाषा के शब्द 'मलइ' जिसका अर्थ 'पहाड़ी' से हुआ है यह असंभव नहीं है कि इस नाम का राज्य दक्षिण में स्थित था । अमरकोश और कालिदास के रघुवंश में मलय प्रदेश को दक्षिण भारत में बतलाया गया है। बिल्वदी के अभिलेख में भी यह उल्लिखित मिलता है कि त्रिपुरी के कल्चुरी राजा शंकर गण (८७८-८८८ ई०) ने मलय देश पर आक्रमण आवश्यक नियुक्ति, ३८३ अन्तगडदसाओ, ३, पृ०७ ३. लाइफ इन ऐंश्यंट इण्डिया एज डिपिक्टेड इन द जैन कैनन्स, पृ० २५४ वासुदेवहिण्डि, पृ० ७४ पीटरसन रिपोर्ट, १८८३-८४ ; इण्डियन ऐण्टीक्वेरी, २१, पृ० ५८ पन्नवणा, १,३७, पृ० ५५६; बृहत्कल्पभाष्य वृत्ति, १,३२६३; प्रवचन सारोद्धार, पृ० ४४६ लाइफ इन ऐंश्यंट इंडिया एज डिपिक्टेड इन द जैन कैनन्स, पृ० २५४ ८. रघुवंश, ४, ६, ६, ४६-४८, ६, ६४; अमरकोश, २-६ १३८ आचार्यरत्न श्री देशभुषण जी महाराज अभिनन्दन ग्रंथ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012045
Book TitleDeshbhushanji Aacharya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorR C Gupta
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year1987
Total Pages1766
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size56 MB
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