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ग्राम मुखिया ( village head ) की संज्ञा दी गई है तो कौवेल' के अनुसार इसे वयोवृद्ध बुजुर्ग (aged elders) के रूप में
स्पष्ट किया गया है। ३. दण्डी के दशकुमारचरित में शतहलि नामक व्यक्ति को जनपद के प्रशासक के रूप में 'जनपदमहत्तर' की संज्ञा दी गई है। ४. कल्पसूत्र की टीका में आए कौटुम्बिका (कौटुम्बिया) को 'ग्राममहत्तर' के तुल्य स्वीकार करते हुए उसे ग्राम-प्रभु,अवलगक, कुटु
म्बी आदि शब्दों से स्पष्ट किया गया है।' ५. जिनसेन के आदि पुराण में विभिन्न राजदरबारी अधिकारियों के प्रसंग में 'महत्तर' का भी उल्लेख आया है। इसके दूसरे पाठ
में 'महत्तम' का प्रयोग भी उपलब्ध होता है। ६. सोमदेव के यशस्तिलक चम्पू की टीका में राज्य के अठारह प्रकार के अधिकारी पदों में से 'महत्तर' नामक पद का उल्लेख भी
मिलता है। मंत्री के एकदम बाद महत्तर का परिगणन करना इसके महत्त्व का द्योतक भी है। ७. वीरनन्दिकृत चन्द्रप्रभचरित महाकाव्य (९७०-६७५ ई०) में युद्ध प्रयाण के अवसर पर राजा पद्मनाभ तथा उसकी सेना के
अहीरों के घोष ग्रामों के निकट से जाने पर कम्बल ओढ़े हुए गोशालाओं के अहीरों-'गोष्ठम हत्तरों द्वारा दही तथा घी के उपहार से राजा का स्वागत करने का उल्लेख आया है। ऐसा ही संदर्भ कालिदास के रघुवंश में भी आया है किन्तु उन्होंने वहां पर गोष्ठम हत्तर' के स्थान पर घोषवद्ध' का प्रयोग किया है जो इस तथ्य का सचक है कि कालिदास युगीन घोष ग्रामों के मुखिया (घोषवृद्ध) नवीं दशवीं शताब्दी ई० में 'गोष्ठमहत्तर' के नाम से प्रसिद्ध हो गए थे। चन्द्रप्रभ महाकाव्य की टीका चन्द्रप्रभ काव्यपंजिका में 'गोष्ठमहत्तर' को 'गोपाल-प्रभु' अर्थात् 'अहीरों के स्वामी' के रूप में स्पष्ट किया गया है है। चन्द्रप्रभचरित के प्रस्तुत उल्लेख से ज्ञात होता है कि अहीरों के ग्रामों में भी ‘महत्तर' पद का अस्तित्व आ चुका था। ये 'महनर' युद्ध प्रयाण आदि अवसरों पर राजा को उपहार देकर प्रसन्न करते थे तथा राजा द्वारा दान में दी गई भूमि के अनुग्रह का भुगतान भी करते थे। दशवीं शताब्दी ई० में निर्मित पुष्पदन्त कृत जसअरचरिउ (यशोधर चरित) में कवि पुष्पदन्त का राजा नरेन्द्र के निजी महत्तर नन्न के निवास पर रहने का उल्लेख मिलता है। महत्तर नन्न मंत्री भरत का पुत्र था तथा अपने पिता के उपरांत वह ही मंत्री पद पर आसीन हुआ। इस उल्लेख से ज्ञात होता है कि दशवीं शताब्दी ई० में दक्षिण भारत के राष्ट्रकूट शासन में ‘महत्तर' पद
एक गौरवपूर्ण पद हो गया था जो मंत्री पद से थोड़ा ही कम महत्त्वपूर्ण पद रहा होगा। १. हरिषेण कृत बृहत्कथाकोश (१० वीं शताब्दी ई०) में अशोक नामक धनाढय 'महत्तर' द्वारा गोकुल की भूमि अधिग्रहण करने के
१. हर्षचरित, सम्पादक, कोवेल तथा थोमस, दिल्ली, १९६१, प० २०८. २. तुल० 'गृहपतिश्च ममान्तरङ्गभूतो जनपदमहत्तरः शतहलिरलोकवादशीलमवलेपवन्त:' दशकुमारचरित, उच्छवास ३, पृ० ७७.
'कोम्बिका: कतिपय कुटुम्बप्रभवोवलगका: प्रामम हत्तरा:, कल्पसूत्र २.६१ पर उद्धृत टीका, Stien Otto. The Jinist Studies Ahmedabad, 1948, p. 79. 'सामन्तप्रहितान् दूतान, द्वाः स्थैरानीयमानकान् । संभावयन यथोक्तेन संमानेन पुनः पुनः ।। परचक्रनरेन्द्राणामानीतानि महत्तरैः। महत्तमैः। उपायनानि संपश्यन् यथास्वं तांश्च पूजयन ॥' आदिपुराण, ५.१०.११ 'सेनापतिर्गणको राजश्रेष्ठी दण्डाधिपो मन्त्री महत्तरो बलवत्तरश्चत्वारो वर्णाश्चतुरङ्गबलं पुरोहितोऽमात्यो महामात्यश्चेत्यष्टादशराज्ञां तीर्थानि भवन्ति' यशस्तिलक १.१६ पर उदधृत टीका.
Kane, P.V., History of Dharmasastra, Vol. III, p. 113, fn. 148. ६. चन्द्रप्रमचरित, १३.१-४१. ७. तुल० 'रुचिररल्लकराजितविग्रहैविहितसंभ्रम गोष्ठमहत्तरैः ।
पथि पुरो दधिसपिरुपायनान्युपहितानि विलोक्य स पिप्रिये ॥ चन्द्रप्रमचरित, १३.४.१. 'हैयङ्गवीनमादाय घोषवृद्धानुपस्थितान् ।
नामधेयानि पृच्छन्तो बन्यानां मार्गशाखिनाम् ॥ रघुवंश, १.४५. ६. तुल.. गोष्ठमह तरै:-गोपालप्रभुभिः उपहितानि मानीतानि । चन्द्रप्रभ, १३.४१. पर पञ्जिका टीका.. १०. तुल०- कोंडिल्लगोत्तणह दिणययारासु वल्लहणरिंदधरम हय राम् ।
णण्णहो मंदिर णिवसंतु संत अहिमाणमेरुकइ पुप्फयंत् ।। पुष्पदन्त कृत जसहरचरिउ, १.१.३-४, सम्पा. हीरालाल, दिल्ली, १९७२. ११. पुष्पदन्तकृत जसह रचरिउ, भूमिका, पृ० १. जैन इतिहास, कला और संस्कृति
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