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________________ 1 शिवा ने जोगिसलेसो' (बज्रलेपः), रसपीदय' (रसरसितम्) कवक (तनुस्वर्णपत्राच्छादितम्) जदुपुरिय (जपूर्णम्) जैसी रासायनिक प्रक्रियाओं की सूचना देते हुए स्वर्ण राच्छादित लोक स्वर्णादित नौट तथा किमिशन कंवल जदुरागवत्थ' स्वर्ण के साथ जाला किया आदि उदाहरण के रूप में प्रस्तुत किए हैं एवं अन्य रासायनिक प्रक्रियाओं की विधि ग्रन्थ में नहीं बतलाई गई है किन्तु इतना अवश्य है कि जन सामान्य के लिए उनकी जानकारी हो चुकी थी । अन्य प्रमाणों से भी यह सिद्ध हो चुका है कि वज्रलेप कई प्रकार का होता था तथा चमड़े एवं पत्थर पर उसका लेप कर देने से अल्पमूल्य की सामग्रियाँ भी बहुमूल्य, सुन्दर एवं टिकाऊ बन जाती थीं। कहा जाता है कि प्रियदर्शी सम्राट अशोक के स्तम्भ वलुई पत्थर" से निर्मित थे किन्तु वज्रलेप के कारण ही लोगों ने प्रारम्भ में उन्हें फौलादी मान लिया था। बरावर (गया, बिहार) की पहाड़ी गुफाओं में भी अशोक द्वारा आजीविक परिव्राजकों एवं निर्ग्रन्थों के लिए निर्माणित गुफाओं में वज्रने ही किया गया था, जिनके कारण वे आज भी शीशे की तरह चमकती हैं । आयुर्विज्ञान - मूलाराधना में आयुर्विज्ञान-सम्बन्धी प्रचुर सामग्रा उपलब्ध है। चरक एवं सुश्रुत संहिताओं को दृष्टि में रखते हुए उसका वर्गीकरण निम्न भागों में किया जा सकता है १. ३. ४. ५. ७. 5. सूत्रस्थान - जिसमें ग्रन्थकार ने चिकित्सक के कर्तव्य को सूचना देते हुए कहा है कि प्रारम्भ में उसे रोगी से तीन प्रश्न ( तिक्खुतो, गा० ६१८) करना चाहिए कि तुम क्या खाते हो, क्या काम करते हो और तुम अस्वस्थ कब से हो ? इसके साथ-साथ इसमें औषधि के उपयोग" रोगोपचार" भोजन विधि" का वर्णन रहता है। " " निदान स्थान जिसके अन्तर्गत कुष्ठ" विमान स्थान जिसके अन्तर्गत रोगनिदान शारीर स्थान - जिसमें शरीर का वर्णन " एवं " बांसी" आदि रोगों के उल्लेख मिलते हैं। आदि रहते हैं। शरीर तथा जीव का सम्बन्ध" बताया जाता है । इन्द्रिय स्थान- जिसमें इन्द्रियों का वर्णन, उनके रोग एवं मृत्यु का वर्णन किया जाता है" । चिकित्सा स्थान इसमें श्वास, कास, कुद्धि (उदरशूल), मदिरापान एवं विषपान के प्रभाव नेत्ररुष्ट, मच्छ [अस्मक व्याधि] आदि के वर्णन मिलते हैं। Jain Education International कल्प स्थान - जिसमें रेचन मन्त्रोच्चार आदि का वर्णन किया गया है । सिद्धि स्थान -- जिसमें वस्तिकर्म ( एनिमा) आदि का वर्णन है। मानव शरीर संरचना ( Human Anatomy ) -मानव शरीर संरचना का वर्णन ग्रन्थकार ने विस्तार पूर्वक किया है, जो संक्ष ेप में निम्न प्रकार है - १. २. ३. ४. - मानव शरीर में ३०० हड्डियां हैं जो मज्जा नामक धातु से भरी हुई हैं। उनमें ३०० जोड़ लगे हुए हैं । मक्खी के पंख के समान पतली त्वचा से यदि यह शरीर न ढंका होता तो दुर्गन्ध से भरे इस शरीर को कौन पता ? मानव शरीर में 8०० स्नायु, ७०० शिराएँ एवं ५०० मांसपेशियां हैं । उक्त शिराओं के ४ जाल, १६ कंडरा एवं ६ मूल हैं । १. दे० गाथा ३३७ की सं० टीका, पृ० ५४८ तथा गाथा ३४३. २. दे० गाथा ६०८ की सं० टीका, पृ० ७८६. ३७. वही ११ - १५. ८९. वही १६-१७ दे० गाथा ५६७ एवं उसकी सं० टी०, १० ७७६ १०-११. दे० भारतीय संस्कृति (ज्ञानी) पृ० ३१४. १२. दे० गाथा ३६०, १०५२. १३. दे० गापा ६८८, १२२३. १४. दे० गाथा २१५. १५-१६. दे० गाथा १२२३. १७-१८. दे० गाथा १५४२. १६. दे० गाए १०५३ - वाइयपि त्तिपसिभियरोगा तव्हाछ हा समादीया । णिच्च तवंति देहं महिदजलं र जह प्रग्गी ।। २०-२१. ० गाया - १०२७-८०. जैन इतिहास, कला और संस्कृति For Private & Personal Use Only ६५. www.jainelibrary.org
SR No.012045
Book TitleDeshbhushanji Aacharya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorR C Gupta
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year1987
Total Pages1766
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size56 MB
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