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________________ २. सूती वस्त्रोद्योग - सूती वस्त्रों का निर्माण, उन पर चित्रकारी, वस्त्र सिलाई, कढ़ाई एवं रंगाई ।' ३. रेशमी वस्त्रोद्योग रेशम के कीड़ों का पालन-पोषण एवं रेशमी वस्त्र निर्माण । ४. बर्तन-निर्माण-काँसे के बर्तनों का निर्माण अधिक होता था । स्वास्थ्य के लिए हितकर होने की दृष्टि से उसका प्रचलन अधिक था। आयुर्वेदीय सिद्धान्त के अनुसार उसमें भोजन-पान करने से प्रयोक्ता को विशिष्ट ऊर्जा-शक्ति की प्राप्ति होती थी। ५. सुगन्धित पदार्थों का निर्माण शारीरिक सौन्दर्य के निखार हेतु जड़ी-बूटियों एवं लोध बादि पदार्थों से स्नान-पूर्व मर्दन, अभ्यंगन की सामग्री का निर्माण, मिट्टी के सुवासित मुख-लेपन चूर्ण (Face Powders) एवं अन्य वस्तुएँ।" ६. ७. औषधि निर्माण । ८. आभूषण निर्माणमुकुट, अंगद, हार, कड़े आदि बनाने के साथ-साथ लोहे पर सोने का मुलम्मा अथवा पत्ता-पानी चढ़ाना' तथा लाख की चूड़ियाँ बनाना ।" रत्न छेदन घर्षण - रत्नों की खराद एवं उनमें छेद करना । ६. मूर्ति निर्माण' । १०. चित्रनिर्माण। मुद्राएँ (सिक्के) - ११. युद्ध सामग्री का निर्माण (दे० गाथा० १२२२) १२. नौका निर्माण (दे० गाथा ० १२२२) १२. लौह उद्योग (दे० गाथा - १२२२) दैनिक आवश्यकताओं की वस्तुएँ तैयार करना। मुद्राएँ मानव समाज के आर्थिक विकास की महत्त्वपूर्ण प्रतीक मानी गई हैं । ईसापूर्व काल में वस्तु-विनिमय का प्रमुख साधन प्रायः वस्तुएँ ही थीं, जिसे आधुनिक अर्थशास्त्रियों ने Barter System कहा है। किन्तु इस प्रणाली से वस्तु-विनिमय में अनेक प्रकार की कठिनाइयों के उत्पन्न होने के कारण धीरे-धीरे एक नये विनिमय के माध्यम की खोज की गई, जिसे मुद्रा (सिक्का) की संज्ञा प्रदान की गई। मूलाराधनाकाल चूंकि मुद्राओं के का विकास-काल था, अतः उस समय तक सम्भवतः अधिक मुद्रा-प्रकारों का प्रचलन नहीं हो पाया था । ग्रन्थकार ने केवल ३ मुद्रा प्रकारों की सूचना दी है, जिनके नाम हैं- कागणी, " कार्षापण" एवं मणि । कागणी सिक्के की सम्भवतः अन्तिम छोटी इकाई थी । Jain Education International विनिमय के साधन (Medium of Exchange) वस्तु-विनिमय के माध्यम यद्यपि पूर्वोक्न मुद्राएँ थी, किन्तु मुनाराधना के टीकाकार अपराजित गरिने वस्तु-विनिमय प्रणाली अर्थात् Barter System के भी कुछ सन्दर्भ प्रस्तुत किए हैं। हो सकता है कि उस समय अधिक मुद्राओं की उपलब्धि न होने अथवा उनका प्रचार अधिक न हो पाने अथवा मुद्राओं की क्रय शक्ति कम होने के कारण विशेष परिस्थितियों में वस्तुविनिमय प्रणाली (Barter System) भी समानान्तर रूप में उस समय प्रचलन में रही हो। अपराजितसूरि के अनुसार यह प्रणाली दो प्रकार की थी १. तुण्णई उण्णइ जाचइ गाथा ६१७ चित्तपढं व विचित्तं गाया २१०५ २. कोसेण कोसियारव्वगाथा ६१६ कसियभिगारोगाथा ५७६ ३. ४. गंधं मल्लं च धूव वासं वा संवाहण परिमद्दणगाथा १४ ... गंधेण मट्टिया गाथा ३४२ पाहाणधातु गणपुढवितया स्विस्ति मूलेहि गृहसास बोललेहि धूवेहि ...गोसीसं चंदणं च गंधेसु गाथा १८९६ ५. वरंरयणेसु... बेलियं व मणीणं गाथा १८६६ ... चिंतामणि गाथा १४६५ ६-७. रसपोदयं व कड्यं श्रहवा कवडुक्कडं जहा कडयं । श्रहवा जदुपूरिदयं गाथा ५८३ -- ८. दे गाया सं० १५६६ (लोहपडिमा ) गाथा सं० २००८ - ( पुव्वरिसीणंपडिमा ) ६. दे० गाथा १३३६ १०-११-१२ दे० कागाणि लाभे कार्षापणं वाञ्छति गाथा सं० ११२७ की विजयोदया टीका, पृ० ११३६. कागणीए विक्केs मणि वहुकोडिसयमोल्लं । गाथा सं० १२२१ जैन इतिहास, कला और संस्कृति For Private & Personal Use Only ५६ www.jainelibrary.org
SR No.012045
Book TitleDeshbhushanji Aacharya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorR C Gupta
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year1987
Total Pages1766
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size56 MB
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