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राजस्थान की भूतपूर्व रियासत सिरोही के वसन्तगढ़ नामक स्थान से प्रारम्भिक मध्य युग में निर्मित अनेक तीर्थंकरों एवं जैन धर्म के अन्य देवी-देवताओं की धातु मूर्तियाँ प्राप्त हुई थीं। इन्हीं प्रतिमाओं में सरस्वती की भी एक सुन्दर मूर्ति है जो अपने उठे दाहिने हाथ में पूर्ण विकसित कमल तथा बाएं हाथ में पुस्तक पकड़े हैं। देवी ने एक अत्यन्त आकर्षक मुकुट, गले में एकावली, ऊर्ध्वसूत्र, कुण्डल एवं साड़ी आदि पहन रखी है। इस स्थानक देवी के पद्मासन के दोनों ओर एक-एक मंगल कलश है जो शुभ का प्रतीक है। इनके शीश के पीछे एक प्रभा मण्डल है । कला की दृष्टि से यह सुन्दर मूर्ति लगभग ६५०-७०० शती ई० की बनी प्रतीत होती है । " यह मूर्ति अब पींडवाड़ा के महावीर स्वामी के मन्दिर में स्थित है
प्रारम्भिक मध्य युग में बनी दो अन्य सरस्वती मूर्तियाँ कुछ वर्ष पूर्व गुजरात के अकोटा नामक स्थान से अन्य जैन प्रतिमाओं के साथ प्राप्त हुई थीं। इनमें से प्रथम मूर्ति जो कुछ खण्डित है, उपर्युक्त वर्णित वसन्तगढ़ से प्राप्त प्रतिमा से काफी साम्यता रखती है । इस मूर्ति में भी देवी ने अपने दाहिने हाथ में कमल तथा बाएं हाथ में पुस्तक ले रखी है, इसका अलंकरण भी पर्याप्त रूप से सुन्दर है । लगभग ७०० वीं संवत् में बनी इस मूर्ति का आसन तथा शरीर का कुछ भाग टूटा हुआ है। यह मूर्ति अब बड़ौदा संग्रहालय में प्रदर्शित है।
अकोटा से प्राप्त सरस्वती की अन्य मूर्ति भी बड़ौदा संग्रहालय में खण्डित है, परन्तु इसका सौम्य मुख एवं शरीर की बनावट बड़ी कलापूर्ण है। एवं पुस्तक ले रखी है । मूर्ति पर खुदे लेख से पता चलता है कि इसिया नामक यह दो पंक्तियों का लेख निम्न प्रकार है :
१. ॐ देवधर्मो निवुय कुलिक २. स्य इसिया (?) गणियो लिपि के आधार पर इस मूर्ति
(१) (भी ?) ।
का निर्माण काल लगभग ६०० ६२० का माना गया है।
श्री चिन्तामणि जैन मन्दिर, बीकानेर में भी धातु की बनी जैन प्रतिमा प्रतिष्ठापित है। देवी समभंगमुद्रा में खड़ी हैं और वसन्तगढ़ तथा अकोटा से प्राप्त अन्य सरस्वती मूर्तियों की भांति यह भी अपने दाहिने हाथ में सनाल कमल तथा बाए में पुस्तक लिए हैं। इनका केश विन्यास बड़ा सुन्दर है तथा इनके कानों में गोल कुण्डल, गले में हार और नीचे के अधोभाग में साड़ी पहन रखी है । इनकी आखों में चांदी लगी हुई है । यद्यपि इस प्रतिमा का प्रभा मण्डल एवं पीठिका खण्डित हो गई है फिर भी यह पर्याप्तरूप से कलापूर्ण है और लगभग वीं शती ई० की बनी प्रतीत होती है। खजुराहो में बने देवालयों पर भी अनेक सरस्वती प्रतिमाएं उत्कीर्ण यहाँ के जैन मन्दिरों में आदिनाथ एवं पार्श्वनाथ देवालय विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। पार्श्वनाथ मन्दिर पर बनी एक मूर्ति में सरस्वती को पद्मासन मुद्रा में बैठे दिखाया गया है। इस चतुर्हस्ता देवी के ऊपर के हाथों में पुस्तक एवं पद्म है तथा नीचे वाले दोनों हाथ खण्डित हैं । इनके बाएं पैर के पास इनका वाहन हंस दिखाया गया है। इनके शीश के ऊपर ध्यानी तीर्थकर की लघु मूर्ति बनी है और पैरों के निकट दोनों ओर उपासक आदि दिखाए गए हैं। पार्श्वनाथ मन्दिर पर बनी एक अन्य मूर्ति तथा निचले हाथों से वह वीणा वादन कर रही हैं ।
मध्य प्रदेश के विश्वप्रसिद्ध चन्देल कालीन
में उपर्युक्त मूर्ति की ही भांति ऊपर के दो हाथों में कमल एवं पुस्तक है इसी देवालय पर उत्कीर्ण एक अन्य प्रतिमा में भी वह ऊपर के दो हाथों में पुस्तक तथा कमल लिए हैं, जबकि इनका निचला दाहिना हाथ वरद मुद्रा में तथा साथ वाला बायां हाथ कमण्डलु पकड़े हुए है। पार्श्वनाथ देवालय पर ही हमें ६: भुजी सरस्वती प्रतिमा के भी दर्शन होते हैं जिसमें देवी भद्रासन में विराजमान हैं। इनके ऊपर वाले हाथों में वैसे ही कमल एवं पुस्तक हैं, मध्य वाले दो हाथों से वह बीणावादन कर रही है और नीचे वाले दो हाथ वरद मुद्रा में तथा कमण्डलु पकड़े हैं। देवी के दोनों ओर चंवरधारी सेवकों का अंकन है । शीश के ऊपर 'जिन' तथा पैर के समीप भवतगण दर्शाये गये हैं । इस प्रकार से पार्श्वनाथ देवालय पर हमें सरस्वती का अंकन विभिन्न प्रकार से मिलता है ।
विद्यमान है। यद्यपि इसकी पीठिका भी काफी इसमें भी देवी ने अपने दोनों हाथों में कमल एक गणिनी ने इसकी प्रतिष्ठापना की थी ।
१. उमाकान्त प्रेमानन्द शाह, 'ब्रोन्ज होर्ड फाम वसन्तगढ़', ललित कला, नई दिल्ली, नं० १ २, पृ० ६१, चित्र XV, १५.
२. उमाकान्त प्रेमानन्द शाह, 'स्टडीज इन जैन घार्ट', बनारस, १९५५, चित्र, ३४.
३. उमाकान्त प्रेमानन्द शाह, 'अकोटा ब्रोन्जेज', बम्बई, १९५६, चित्र १८.
४. प्रकाश चन्द्र भार्गव, 'ए न्यूली डिस्कवर्ड जैन सरस्वती फ्राम बीकानेर', जर्नल ग्राफ इन्डियन म्यूजियम्स, नई दिल्ली, न० ३०-३१, पृ० ७६, चित्र १८.
५. मारुतिनन्दनप्रसाद तिवारी, 'शेप्रजेन्टेशन ग्राफ सरस्वती इन जैन स्वल्पचर्स ग्राफ खजुराहो; जर्नल ग्राफ दी गुजरात रिसर्च सोसाइटी, बम्बई, घक्टूबर, १६७३, पृ० ३०७ ३१२.
जैन इतिहास, कला और संस्कृति
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