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(साउथ इंडिया)' एक उपयोगी ग्रंथ सिद्ध हुआ है । इस कड़ी को विकसित करने के लिए उत्तर भारत, पूर्व भारत, पश्चिम भारत के कला वैभव पर भी पृथक् से इसी प्रकार के ग्रन्थ प्रकाशित होने चाहिए।
हमारे लिए सौभाग्य का विषय है कि हम स्वतन्त्र भारत में सर्वधर्म सद्भाव के सिद्धान्त को अंगीकार कर सार्वभौम भारतीय गणराज्य के नागरिक के रूप में 'आस्था और चिन्तन' की सृजना कर रहे हैं। इस ग्रन्थ के अभिनन्दनीय महापुरुष श्री देशभूषण जी ने अपने को जैन इतिहास, कला और संस्कृति के प्रचार-प्रसार में समर्पित किया हुआ है। उनके भागीरथ प्रयास से जैन संस्कृति एवं कला को पर्याप्त संरक्षण एवं दिशा मिली है।
उदार चिन्तकों एवं इतिहासप्रेमियों को अतीत की सही जानकारी देते समय पर्याप्त सावधानी रखनी चाहिए। सत्य का विवेचन करते समय राष्ट्रीय हित में कट्टरवादी विचारधारा की निन्दा करनी चाहिए। स्वतन्त्रता प्राप्ति से पूर्व की पुरातात्विक सामग्री का अध्ययन, एवं विश्लेषण इतिहास की परम्पराओं को जोड़ने एवं आवश्यक जानकारी के लिए होना चाहिए। साम्प्रदायिक एवं आग्रहवादी दृष्टि की अवहेलना वास्तव में युगीन परिस्थितियों की मांग है।
१६१७, दरीबा कलां दिल्ली-११०००६
सुमतप्रसाद जैन प्रबन्ध सम्पादक
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आचार्यरत्न श्री देशभूषण जी महाराज अभिनन्दन ग्रन्थ
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