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________________ बिड़ला जी को अनन्य भक्ति हिन्दू जगत् के यशस्वी समाजसेवी एवं भारतीय उद्योग जगत् के मूर्धन्य नेता धर्मप्राण श्री जुगल किशोर बिड़ला जी की महाराजश्री में अन्यतम आस्था थी । वह उन्हें अपने धर्मगुरु के रूप में स्वीकार करते थे और प्रायः प्रात:काल के समय आचार्यश्री के दर्शन के लिये अकेले ही आया करते थे । आचार्य चरणों में वे शोभासम्पन्न सुवासयुक्त कमल या गुलाब के पुष्प अर्पित करते थे। कुछ अवसरों पर वह चांदी की थाली में मेवा एवं अन्य फल भी लाया करते थे । आचार्यश्री से वह केवल आध्यात्मिक चर्चा किया करते थे। उनकी वाणी से जन-जन को परिचित कराने की भावना से उन्होंने मुनिश्री के वर्षायोग में दिये गये प्रवचनों को पुस्तकाकार के रूप में मुद्रित कराया था। आचार्यश्री के तेजोमय आध्यात्मिक व्यक्तित्व के प्रति जैनेतर समाज का ध्यान आकर्षित करने के निमित्त उन्होंने महाराजश्री से थी बिरला मन्दिर में प्रवचन देने के लिये विशेष आग्रह किया। आचार्यश्री की बिरला मन्दिर जी के निमित्त होने वाली पदयात्रा में वह श्रद्धा से सम्मिलित हुए थे और उन्हीं को उस दिन आचार्यश्री का कमण्डलु अपने हाथ में पकड़ने का गौरव मिला था । विदेशियों के अध्यात्म गुरु ___ इटली के एक प्रोफेसर दम्पत्ति ने आचार्यश्री के चरणों में यह प्रतिज्ञा ली थी कि वे जीवनपर्यंत रविवार को मांस नहीं खायेंगे । साथ ही साथ उन्होंने यह भी कहा था कि अपने देश पहुंच जाने पर वह सर्वदा के लिये मांस का त्याग करने का प्रयास करेंगे । एक डच महिला आचार्यश्री के दर्शन करने श्री दिगम्बर जैन लाल मन्दिर जी में प्राय: आया करती थी। महाराजश्री ने उसे महामन्त्र णमोकार का सस्वर पाठ सिखाया। महामन्त्र का पाठ करने से उस महिला को शान्ति मिलती थी। वह प्रायः महाराज के सम्बन्ध में भक्तिपूर्वक कहा करती थी कि आचार्यश्री के स्मरण से मेरे सभी मनोरथ सिद्ध हो जाते हैं । एक बौद्ध साधु कम्बोडिया से भगवान बुद्ध की जन्मभूमि एवं अन्य बौद्ध तीर्थों के दर्शन के लिये आया था। वह नालन्दा में रहता था। आचार्यश्री से उसकी भेंट दिल्ली में हुई। उनके भव्य व्यक्तित्व से वह चमत्कृत हो उठा । श्रमण परम्परा के महान उन्नायक आचार्य श्री देशभूषण जी महाराज को वह अपने देश में देखना चाहता था। उसने महाराजश्री से निवेदन भी किया कि आप हमारे देश चलें तो हमारे देशवासी आपके दर्शन से बहुत प्रसन्न होंगे। उसने आचार्यश्री को सुझाव दिया था कि यहां से वे कलकत्ता होकर ब्रह्म देश पहुंचे। वहाँ से वे बैंकाक होते हुए कम्बोडिया पहुंच जायेंगे। यवन की श्रद्धा आचार्यश्री के सम्बन्ध में प्रचलित लोकगीत की एक पंक्ति इस प्रकार है खोये हुए बालक को तुमने बुलाया था प्रभो! फांसी से रिहा करवा दिया एक मुस्लिम बंधु आपने । भजन की इस पंक्ति के प्रति किसी का भी जिज्ञासा भाव जाग उठना स्वाभाविक है। आचार्यश्री के संघस्थ साध-साध्वियों से इस बारे में प्रकाश डालने का अनुरोध किया गया। क्षुल्लिका राजमती जी ने बताया कि आचार्य ससंध धलिया (महाराष्ट्र) में विद्यमान थे। उन्हीं दिनों एक मस्लिम बन्धु नियमित रूप से आचार्यश्री की धर्मसभा में आने लगा। उस मसलमान के अत्यन्त निकटवर्ती रिश्तेदार पर कत्ल का अभियोग चल रहा था। अभियोग में उसके परिचित को दण्ड मिलने की सम्भावना थी। उसने महाराजश्री के चरणों में निवेदन करते हुए कहा कि हम बड़ी मुसीबत में हैं। आपसे प्रार्थना है कि आप हमें ऐसी दुआ दें जिससे हमारी मसीबत टल जाए। महाराजश्री ने उस दुःखी मुस्लिम से कहा कि अब तुम्हारी मुसीबत दूर हो जायेगी। भविष्य में सदाचार एवं धर्म का पालन करते रहना । किसी भी जीव को कष्ट मत पहुंचाना । अन्ततः अदालत का निर्णय उस मुसलमान के सम्बन्धी के पक्ष में हो गया। वह और उनका सम्बन्धी महाराज को सिद्ध पुरुष मानकर उनकी पूजा करने लगे । मुनिश्री के संघ को धुलिया से प्रस्थान करना था। अतः संघ की व्यवस्था के लिये संघपति ने गाड़ी लाने के लिये स्थानीय श्रावकों की सेवा प्राप्त की। संयोग से एक श्रावक ने मियाँ जी से २०-२५ रुपये प्रतिदिन के हिसाब से गाड़ी किराये पर ले ली। दो घण्टे बाद मियाँ साहब गाड़ी को सजाकर महाराजश्री के सम्मुख उपस्थित हुए और निवेदन किया कि मैं आपकी कोई खिदमत अभी तक नहीं कर पाया और अब संघस्थ श्रावक-श्राविकाओं की सुविधा के लिये यह गाड़ी संघ को भेंट करना चाहता हूं। आचार्यरत्न श्री देशभूषण जी महाराज अभिनन्दन ग्रन्थ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012045
Book TitleDeshbhushanji Aacharya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorR C Gupta
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year1987
Total Pages1766
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size56 MB
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